पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१२

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खान्देश वर्षको अकबरने अपनी फोजके साथ खान्देश पर के बने है । यह सब इमारत पहाडी को काट काट कर चढ़ाई की थी। सम्होंने पसीरगढ, अधिकार किया बनायी गयी है। कुछ स्थानों के पत्थर इतने बड़े है, कि पौर शासनकर्ता राजा बहादुर खाँको गिरफ्तार करके सोग देवतापोंके हाथका बमा समझते हैं । सिवा इसके ग्वालियर के दखाने में भेज दिया। फिर खानदेश खानदेशमें कुछ मुसलमानी इमारते भी, जिनमें दिल्ली माम्राज्यमें मिलाया गया । १७वें शताब्दके मधमे बड़ो एरण्डोलको मसजिद है । चालीसगांव मध्यभाको रसको बड़ो बढ तो हुई । १६७० ई०मै नल्लुकको पोतलखोरा उपत्यकामें एक टूटा फूटा मगठा पाक्रमण प्रारम्भ हुए पौर मौ वर्ष से अधिक चैत्य पौर विहार है। यह बोहों को बहुमती पुगमी ममय तक इमको भीमगे बाहरी सब प्रकारको विपद् इमारन है और सम्भवतः ईमासे २०० वर्ष पहले बनी झेलनी पड़ी। शिवजीने दूसरी बार सूरतको सहम होगी। दररेके नीचे पाटनका उजाड़ नगर है, जिसमें महम करके चौथ मांगने के लिये अपना एक अफसर पूगनी कारोगरीके मन्दिर और शिनालिपियां वर्त- खा देश भेजा था। मराठीने साल्हेर किना जोन कर मान हैं। फिर मामनेकी ओर पहाड. पर टूमरी पार अपने को किया और खांडेराव दाभाड़ेने पश्चिमी पोकेको बनी गुहाए है। वाघलीके कृष्णमन्दिरमें पहाड़ो में पडा जमा दिया। फिर इस जिले में कई दालानकी भोसगे दीवार पर तीन बढि.या खुदा हुई बार टमार हई । शिवजी, शम्भु जी और पौरङ्गजेबने सखतियां लगो है। बारी बारीमको खूब लूटा खसोटा था । १९२० ई०को म जिलेमें ३१ शहर और २६१४ गांव बसे है। निजाम-उम्न -मुल्कने खानदेश अपने राज्य में मिनाया लोकसंख्या १४२७३८२ होगी। प्रधान नगरों के नाम था। परन् १९६• ई०को मराठों ने समके लड़के को हैं-धूलिया, भुसावल, धारमगांव, नसीराबाद, नन्दुर- यहांमे निकाल बाहर किया और पेशवाने इमका कुछ बार, चालोमगांव, भड़गांव, जामनेर, पदाबाद, भाग होसकर पौर कुक्क भाग मेंधिया को दे दिया। सोपडा, जलगांव, पारोग, एरण्डोन, पमसमर, फौज- १८.२०को सकरकी सेनाम इसका सहस पुर, चोड़, मंगरदेवर, भोड़वार । खानदेश जिलेके मास किया था। दो साल तक जमीन को कोई परवा परिमी भागको पाबादो बहुत हलको है । परन्तु की गयी और घरवादीके सववसे कठोर दुभिक्ष को यावन और जलगांवकी बसती सबसे घनी लगती गोबत पापड़ी। फिर दूसरे साल पेशवाको बद इन्त- है। गुजराती खान्देशको व्यापारिक भाषा है । किन्तु ___ सरकारी दफतरों और स्क लो में चसमे मराठी मसमन्मौका काम काज छोड दस बांधा पार चारो भोर जबान का पादर बढ़ता जाता है। घरमें लोग खान् धूम घूम कर खूब लूटा मारा था । १८१८ ई०को इसी देशी या पहिरामी बोलते हैं, जो गुजराती, मराठी, हाससमें यर.जिसागरबोंके साथ पाया। मत नेमाडी और हिन्दुस्थानीकी खिचड़ी है। मामों तक सवाई भीम सा करते रहे । १८२५.कुनबी, भील, महार, मराठा, मासो, कोलो, ब्राह्मण, को पाउटरामने भीलों को फौज खड़ी करके यह उप बानी, गजपूत, धांगड़, वमजारा, तेली, सोमार, नाई, प्रय मिटाया था। १८५२ ० को फिर सख्त बसवा चमार, सुतार ( बढ़ई ), शिम्पी (दरजी) पौर मांग- Sठ बड़ा पा और १८५७ ई.को भागोजी पौर खानदेशकी प्रधान जातियां हैं। कुनबी, पारधी, राजपूत पानरसिंह नायक के नेतत्वमें भीस लोग बिगड़ पड़े। और गूजरवानी खेती करते है। यहां के व्यापारी पधि- किन्तु यह उपद्रव दबाने में कोई बड़ी तकलीफ नहीं कांश दूसरे प्रान्तोंसे पा पाकर बसे है। पावादीमें पादिम पधिवासी पौर खानबदोश बहुत है। बहुत से समयमै पत्थरके मन्दिर, कुण्ड और कुएं बात भोस पुसिस सामष्ट बिलों और चौकीदारों का काम में अधिकांश सम्भवतः १२वें या २३वे शताब्दकरते है। निरधी मातमानाके नीचे रहनेवाले हैं। 'दया ।