पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१२६

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गजकरपोवयुध-गवकुमार मुनि करके कहा-'देखो सुप्रतीक ! हम तुम्हारे व्यवहारसे उन्होंने बहुत दूर जा जनमानवशून्य तुषारमय पर्वत पर बहुत अमन्तुष्ट हो गये हैं। तुमने अन्याय रूपसे बाप-बैठ करके गजकच्छपको उदरसात् किया था। गज. का धन 'टा लेना चाहा है, इस लिये तुम गजयोनिको कच्छपके युद्ध-जमा भयङ्कर युद्ध सम्भवतः दूसरा नहीं प्राप्त होगे।' निर्दोष सुप्रतीक यह सुनते ही अवाक् रह । हुआ। ( भारत १।२८-३००) गये और मोच ममझ करके कहने लगे-'मेरा कोई दोष हाथी कछुवेकी लड़ाई झूठ हो या सच, परन्तु न होते भी आपने दारण शाप दिया है, इस लिये पाप भूतत्त्वविद्याके साहाय्यसे इसका प्रमाण मिलता वि अति को भी कछुवा हो करके जन्म लेना पड़ गा।' उस | पूर्व कालको कच्छप भो भारतीय हस्तोको भांत बड़ा समयके ब्राह्मणोंको बात कभी मिथ्या जानेवालो न थी । बड़ा होता था । बहुत दिनकी बात नहीं, हिरलयके सुतरां एक भाईने हाथी और दूसरेने कछुवा बन करके शिवालिक पहाड़से प्रस्तरीभूत एक प्रकारके कवेका जन्मग्रमण किया। विभावसको कच्छप हो करके काल निकला था। वह भारतीय बबई नायिके गहरे पानी में रहना पड़ा। सुप्रतीक हाथी हो करके कङ्गालसे किमो अंशम छोटा नहीं भी थो दिनों अपने घरमें ही रह सके और इमी अव गजकणा (म. स्त्री० ) गजपिप्पली, गजपोपर। सर पर पैटक धनका बहुतसा भाग संग्रह करके उन्होंने गजकन्द ( म० पु० ) गजो गजदन्त इव । कन्दय मुंडक ब'चम रख लिया। इनका जन्मान्सर तो हो बहुव्री० । हस्तिकन्दवृक्ष । गया, परन्तु विष भाव कुछ भी न घटा। दोनों एक गजकर्ण ( म० पु. ) गजस्य कर्ण इव करें यस्य बहुव्री० दूमरको दबानकी चेष्टामें लगे रहे। यह बतला देना यक्षविशेष, एक असुरका नाम । ( भारत २१० अ० ) उचित है कि हाथोका डोलडौल ६ योजन ऊंचा और गजकर्णाल्लू ( हिं० पु० ) लम्बा कंदवाला अरुवा नाम १२ योजन लम्बा और कछुवा ३ योजन अचा तथा परिधि- लवा। में १० योजन था। कछुवा एक बड़े तलावमें रहता गजकर्ण ( म० स्त्री० ) मूलविशेष, एक जड़क नाम था। भाग्यवश किमी दिन छोटा भाई मरोवरमें पानी इसका गुण-तिता, उष्ण, वात और कफनाशक, स्वा पोने पहुंचा। बडे भाई कछुवेने समय पा करके उमको एवं शीतज्वरविनाशक है। इसके कन्दका गुण-पा पकडा था। हाथो बलवान रहा और कछुवा भो रोग, कमि, लोहा, और गुलमरोगनाशक, ग्रहणी. maa उससे कुछ अधिक निर्बल न था। दोनोंकी घमासान | और विकारन है। लडाई होने लगी। उसे देख सुन करके सभी चकरा गजकणिका ( स० स्त्रो० ) कर्कटो, कोई ककड़ी, गये। परन्तु लड़ाईको कोई रोक न सका। किसी गजकुमारमुनि-दि० जैन सम्प्रदायके एक प्रसिद्ध मुनि या दिन पक्षिराज गरुरूने भूखसे बहुत हो घबरा करके ऋषि इनका जन्म हारकाम हुआ था । इनके पिताका पितासे खानको मांगा था। उनके पिता कश्यपने कहा नाम वासुदेव और माताका गन्धर्वसेना था। ये बड़े हैं. कि वह जा करके युध्यमान गजकच्छप दोनोंको खा वोर पुरुष थे । वासुदेवके राजत्व कालमें पोदनपुरके डालते। गरुड़ पिताके आदेशसे दोनोको पंजे में दबा राजा अपराजितने बहुत ही मिर उठा रकवा था वासु से उड़े। वह मन हो मन सोचने लगे, कहाँ बैठ देवने उमको काबूमलानके लिए यह प्रसिद्ध किया f करके हाथी कछुव को खाते। अन्तको किमी वटवृक्ष | । कोई अपराजितको पकड़ कर मेरे सामने ला देग पर बैठ करके वह उन्हें खाने लगे। इससे गरुड़को | उसे मनचाहा वर मिलेगा। इस पर गजकुमारने ही और भी विपद्ग्रस्त होना पड़ा। । : पेड़ टूटा अपने पितासे अपराजितसे युद्ध करनेको आना लो और था। पक्षिराज गरड़ने देखा गिर पड़नेसे | युद्ध कर उसे पकड़ कर पिताके सामने से पाये। पिताने सपस्थानिरत बालखिल्य मुनिकी । इसीसे खुश होकर इनको मनचाहा वर दिया। उन्हें चोचमें बह टूटी शाखा .. उड़ना पड़ा।। वर पाकर राजकुमारका मन अन्यायकी तरफ