पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१२९

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भाग ठोस होता है। काट करके अलग करने पर उसको विदेश भेजा जाता है। बढ़ई ही पारीसे हाथ दांत 'पाकाशाश' कहते हैं । यह विलायतको भेजा जाता है। काटते हैं। इसकी मजदूरी वह नहीं पाते। काटने इससे बिलियार्ड खेलनका गोला बनाते हैं। हाथीदांत को बुकनी निकलती, वही उनको मिलती है। यह का बिचला भाग पोला रहता, है इसका नाम 'च ड़ी- बुरादा वह ग्वालोंके हाथ बेच देते हैं। ग्वालोको दार' है। च ड़ियां बनानेका इसका अधिकांश भारतमें | विश्वास है कि गाय भैसको वह बुकनों खिलानेसे एन बिकता है। दांतका मूलभाग विदे शको प्रेरित होता है। अधिक होता है। मनुष्यके लिये भी गजदन्सका पूर्ण पोले भागको एक निकष्ट आति भो है। उसको ‘चीना | बलकारक औषधीमें गिना जाता है। प्राइवरी' कहते हैं। वह चीन देशको भेजा जाता है। इसके बाद हाथोदांत तीन आढ़तोंमें पहुंचता है । फिर हाथीदांतका व्यवसाय दिन दिन घट रहा है । वहाँसे दूसरी जगहोंको प्रेरित होता है। इन तीनों ५० वर्ष पहले बम्बई नगरमें अफ्रीकासे कमसे कम पाढ़ताका नाम है-पालो, सूरत और अमृतसर । ना- २५००० जोड़ा हाथीदांत पाता था। आजकल उसका रिया मम्प्रदायके माड़वारा हाथीदांतका बड़ा कावसाय प्राधा भी नहीं मंगाते। अधिकांश हाथीदांत पहले करते हैं। यह जैन धर्मावलम्बी है, हाथोहात अफ्रीकाके मध्यवर्ती स्थानसे लाते हैं। फिर वह समुद्र छनसे इन्हें महापातक लगता है। इमोसे वह पफी के किनारे जहानों पर लादा और नाना देशोंको भेजा भाप हाथीदांत नहीं छूते। हाथोदातको म्पर्श करखा, जाता है। रग्वमा, ढकना, तौलना आदि जो कुछ आवश्यक पाना, ___ बहुत पुराने समयसे भारतवर्ष में हाथीदांतका कारु मुसलमान नौकरोंसे ही करा लिया जाता है। चूकिडी- कार्य प्रचलित है । मृहत्संहिताके मत में खाट या को छोड़ करके इस देशमें हाथीदांत कंधियां बनानमें पलंग बनाने के लिये हाथीदांत जैसो दूसरी चीज नहीं ही अधिक लगता है। कंधियोंकी बड़ी जगह द्विती होती। वराहमिहिरने लिखा है कि पलंगके पार्व और अमृतसर है। कंधियां बना करके जो हाथीदांत हाथीदांतके बनाने चाहिये। फिर दूसरा भाग लकड़ी बचता, दूसरे लोग खरीद करके ले जाते हैं। वह इस से बना करके उसके ऊपर हाथीदांत जड़ देनेसे भी हाथीदांतकी पत्तियां सन्द क आदि लकड़ीकी चीजोंमें काम चल सकता है। जड़ देते हैं। मुलतान, डेराइस्माइल खाँ, होशियारपुर, रामपूताना, पजाब प्रादि देशों में हिन्दू मुसलमान | स्यालकोट, सूरत, वङ्गलोर, विशाम्बपत्तन प्रभृति स्थानों सभी जातिको स्त्रियां हाथीदांतकी चूड़ियां पहनती है। में हाथीदांतसे जड़ी लकड़ीकी ऐसी ही बहुत सादर विवाहके समय कन्याका मामा उसको हाथीदांतको | चोजें तैयार होती है। चूड़ियां खरीद देता है। सीपकी तरह हाथीदांतकी मुशिदाबादमें केवल गजदतसे प्रस्तुत होनेवाले चूड़ियों पर भी कई रङ्ग चढ़ाते हैं। फिर इस पर | द्रव्य बहुत अच्छे होते हैं। ऐसा अच्छा कार गरो और अभ्रक पादि चमकीली चोजें भी लगा देते हैं। बड़े। कहीं देख नहीं पाती। मुर्शिदाबादक कारीगर हाथी. घरानकी स्त्रिया विवाहके पीछे एक वर्ष तक यह चूड़िया दांतसे दुर्गाको मूर्ति, कालीको प्रतिमा, हाथी, गाडी, पहने रहतौं, गरीब दुःखी सियां चिरकाल तक इन्हें । मोरपक, नाव आदि बहुतसी चीजें बनाते है। गया, महीं छोड़ती। राजपूतानकी रेलवेसे जहां योधपुर | डुमरांव, दरभङ्गा, कटक, रङ्गापुर, वर्धमान, चट्टपास, जानकी गाथा फटी, उसीके पास पाली गांवमें प्रचुर ढाका, पटना पादि स्थानोंमें भी गजदन्तक द्रव्य मिलते परिमारसे हाथीदांतकी चूड़ियां बनती हैं। हाथीदांत- हैं। हाथीदांतक बारोक रेशे उतार करके भामरी की चूड़ियां नाना प्रकारकी होती है। परन्तु साधा- | तैयार करते हैं। फिर उसे वुन करके चटाई भी रणत: यह सीपकी जैसी चूड़ियां दीख पड़ती है। बनायो जा सकती है। पहले समयमै श्रीहने हाथ बम्बईमें हाथीदांत नाना भागों में काट करके देश | दांतको बहुतसी चटाइयां बनती थी। ऐसो चटायोंका