पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१३४

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गजशाला-गजानन खाना। गजगाला ( सं• स्त्री० ) हाथी बांधनेका स्थान, पोल- गजाध्यक्ष ( सं० पु.) गजस्य अध्यक्ष: ६-तत्। जिसके अपर हाथोका रक्षणावेक्षणका भार दिया जाता है, जो गजशासनयो-गिनी तन्त्रोक्त कामरूपका वायुकोणस्य । हाथोकी देख भाल करता हो, गजकर्ता । पवित्र स्थान । गजाधर ( स० पु०) गजाधर द खो। गजानन ( म०प०) गजस्याननमाननम यस्य, बहवी.। "शाने चेव केदागे वायम्याम् मनशामनः । ( योगिनौतन्त्र ११५.) गजशिक्षा ( सं० स्त्री० ) गजानाम् शिक्षा, ६-तत् । १ गणश। पार्वतीके पुत्र गणशका मजानन होनेकी हाथी चलानेका अभ्याम । कथा ब्रह्मवैवर्तपुराणक गणेशखण्डमें नम तरह लिखा "तर्थव गनशिचायाम गौतिशास्त्र व पारमः।" ( भारत ॥१.८०) गजशिरः (सं० पु०) गजस्य शिर:-इव शिरो यस्य, बहुव्री । ___ दक्षकन्या मतीने पतिको निन्दासे प्राण परित्याग १ देत्यविशेष, एक राक्षसका नाम । ( हरिव'गपु० २५० १०) | करकं जब हिमालयमं जन्म लिया, महादेवन उनसे अपना २ गणेश। विवाह किया था। विवाहक पीछे दोनोका मम्भोग गजमार-एक जैन ग्रन्थकार, ये धवलचन्द्रक शिथ थे। होने लगा, परन्तु कोई सन्तान न निकला। इससे गजमाय ( मं० पु० ) गजेन हस्ति नामक नृपेन मह | पार्वतीक मनमें बड़ा कष्ट हा था । किमी दिन आह्वयो-यस्य बहुव्री० हस्तिनापुर । महादेवके निकट बैठ करके रोते रोते वह विहल ही "निय युः जसायात" ( भारत ॥१. ) गयौं। महादेवने अनेक भावना और चिन्ता करके गजस्कन्ध (मं० पु०) गजस्य स्कन्ध-इव स्कन्धोऽस्य बहुव्री ।। विष्णुको आराधना करनेका उनको उपदेश दिया था। दैत्यविशेष, एक असुरका नाम । पाव तोके विष्णुको आराधना करने पर विष्णुने सन्तुष्ट गजही (हिं० स्त्री० ) दूधसे मकवन निकालनेको एक हो करके उनको पुत्र वर प्रदान किया। थोड़े दिन लकड़ी। इसकी लम्बाई चार पांच हाथकी होती है पोछे पार्वतीक एक पुत्र हुआ। दम्पती आमोदमें मत- और मिरा चार भागमै चिरा रहता है। वाले हो दान करने लगे। स्वर्ग, मत, पातान्न प्रभृति गजाण्य (मं० पु.) गज गजकर्ण आख्याति पत्रण पाख्या सभी स्थानोंमें आमोद प्रमोद मचा था। 4 लोग क । चक्रमदें वृक्ष, चकवडका पेड़ । (राजनि०) गजेन नवजात शिशुको देखने के लिये कैलासमें जा करकं उप- तुम्ब पाख्या यस्य, बहुव्रो० । २ हस्तिनापुर। स्थित हुए। इसके पीछे शनि भी कैलास पहुंच गये। गजाग्रणी ( मं० पु०) गजन्य अग्रणीः येष्ठः, ६ सत् । वह स्त्रीक शापमे जिमकी ओर देखते, वही भस्म हो ऐरावत । जाता था। शनि महाराज इसी भयमे पार्वती नन्दनको मजाजीव ( सं० पु० ) गजेस्तत् पालनादिभिराजीव्यते | देखने न गये। परिशेषको शिवको कथा पर उन्हें घरके जीव-पप् । हस्तिपालक, वह जो हाथोकी रक्षा करता भीतर जाना पड़ा। ग्रहराज पार्वतीके निकट जा करके अधोवदन खड़े हो गये। पार्वतोको यह बात अच्छो गजाण्ड (सं० क्ली० ) गजस्याण्डमिव अण्डमस्य बहुव्री। न लगी। उन्होंने शनिसे बालकको खनेका अनुरोध पिण्डमूल । किया था। शनिने सब कथा खोल करके कही, परन्तु गजादन ( मं० पु. ) अश्वस्थवृक्ष, पीपलका पेड़। पार्वतीने वह ग्राह्य न को और हंसोमें बात उड़ा दी। गजादनि ( म० स्त्री० ) अश्वत्थवृक्ष । अगत्या शनिको बालक देखना ही पड़ा। शनिके.दृष्टि- गजादिनामा (म० स्त्री०) गज इति शब्द पादो यस्य लादृशं । मात्रसे बालकका मस्तक उड़ गया। पार्वती रो रो नाम यस्याः, बहुव्री०। गजपिप्पलो, गजपोपर । करके प्राकुल हुई थीं। फिर विष्णुके निकट यह "सावनतागिय पुनरंबानमादिनामा परहार:॥ . . संवाद भेजा गया। विष्णुने पास समय देखा कि राह में (सघत विविसि .)। कोई हाथी पहा परम सुखसे सोता था. उन्होंने उस