पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इन नक्षत्रों में जन्म होनेसे मरगण; चित्रा, मघा, विशाखा, बाद पावं तीनन्दन गणेशजीने उसो दैत्यके एहमें अव- ज्येष्ठा, शतभिषा, मूला, धनिष्ठा, अश्लेषा और कृत्तिकामे | तोण होकर उसका नाश किया। सकानाथ किया। राक्षसगण तथा अश्विनी, रेवती, पुष्या, स्वाती, हस्ता, (स्कन्द पुराण गणेशस्खण्ड ६७०) पुनर्वसु, अनुराधा, मृगशिरा और श्रवणामें जन्म लेनसे "मग पाय मपरिवाराव सायुधाय समनिकाय इन्द्राय नमः।" देवगण होते है। (विधान-पारिजात) वर और कन्याका एक गण होना अच्छा है। अगर १४ दूत, मेवक पारिषद । १५ एक संस्कृत चिकित्सा- एकने देवगणमें और दूसरेने नरगणम जन्म लिया हो | शास्त्र रचयिता। ये दुर्भलके पुत्र थे। इन्होंने अश्वायु: तो मध्यम फल है, देवगण और राक्षसगणमें जन्म बंद या मिडयोगसंग्रह नामक ग्रन्थ की रचना की है । होनेसे प्रधम सौहृद्य हो कर रहता है, किन्तु नरगण १६ दि. जैन मतानुसार-आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, और राक्षसगणमें होसेसे नरगणवालेको मृत्य होती शक्ष,ग्लान, गण, कुल, मंच, माधु और मनोज दून दश- है।(मोतिष ) ७ ध्र वादि संज्ञक नक्षत्रसमूह। प्रकारके मुनियोंमेंसे एक। जो बड़े मनियोंको परिपाटी- "यापूर्व मधानका ध्र गए।" (जगोलिय) के हों, उनका नाम 'गण' है। ८ वाणिज्यकारी वणिकसमुह । "भाचार्यो, ध्यायत-स्वियं क्षग्ल नगणक नस घमा मनोसामा । "गएट्रवाद यस्तु सम्बिद यय लायन।" (याज्ञवल क्य) (तृत्वायं मना प० २४ सूत्र ) १७ महावीर स्वामीके एक शिष्य ८ व्याकरणप्रसिद्ध भ्वादि, अदादि, जुहोत्यादि, | गणक ( सं० त्रि०) गणयति मव्यां करोति. गण णिय दिवादि, स्वादि, तुदादि, रुधादि, तनादि, क्रमादि और | रख ल । १ मंख्याकारक, जो राशि स्थिर करता हो। चुरादि इन दशोंको गण कहते हैं। १० गणपाठग्रन्थ ।। (पु०) २ माटकादेवोभक्त मुनिविशेष, एक मुनो २१ पाणिनिरचित स्वरादि स्वरूप प्रतिपादक पाठग्रन्थ । जो माकादेवीके भक्त थे। ३ ज्योतिषी । इसका १२ दैत्यविशेष, एक असुरका नाम । स्कन्दपुराणके पर्याय-साम्बत्मर, ज्योतिषिक, दैवज्ञ, ज्योतिर्विद, गणेशखगडमें इसका उपाख्यान इस तरह है- मोहूर्तिक, मौहूर्त, जान और कान्तिक है। कमो समय अभिजित् नामका एक ब्राह्मण अपनी बहुतोंका मत है कि जो ग्रहनक्षत्रादि विषय गणना स्त्रो गुणवतीके साथ स्नान करनके लिये समुद्र गये। करते, या ज्योतिषशास्त्र अध्ययन या व्यवसाय करते हैं गुणवतीने वृषणासे कातर हो समुद्र-जल पान किया। इम व पतित, निन्दन य और अस्पश्य हैं। शास्त्रमें भी अलक साथ ब्रह्माका वीर्य उमके उदरमें प्रवेश या।। गणकको निन्दा पाई गई है। क्रमानुस र उस अमोघ वार्य मे ब्राह्मण पत्नी गुणवतीको "वर चायालम म्पग : कुर्शत न साधकोत्तमः । गर्भ रहा यथा समय गुणवतीने एकजुन प्रसव तथाप्यम्प य गप सब दातु परित्यजेता किया। यही पुत्र मन समसे प्रसिद्ध देत्याया : ( गाजामन्द तरणि १५ उल्लाम ) अवस्या पाने पर ममी निवजीको आराधना का : शिवजी धमशास्त्रकार सुमन्तका भी कथन है, "मावतमरिको ने तपस्यासे सन्तुष्ट होकर उसे वर दिया-तम स्वर्ग, ऽपाका यः। सवित्मरिक या दैवत अपाङ्तो य है अर्थात् मयं और पातालके ऊपर अपना भाधिपमा सकते इनके साथ एक पक्तिमें बैठ कर पाहारादि नहीं करना हो। इसका परिणाम यह हुआ कि वह गळ देत्य भया- चाहिये महाभारतमें लिखा है। नक पत्याचारी हो गया। किसी दिन उसने महामुनि कुमालया दबल को नव जावान । कपिनाको अपमानित कर उनकी वहुमूल्य चिन्तामणि एतानिक विज्ञानावाद प्राप्रपा पनि दुवकान् ।” को ले लिया। महात्मा कपिलने दुःखित हो कर गणेश नाटक खेलनेवाला. तनखाह पानेवाला, देवपूजक की पाराधना को। इम पर गणेश सन्तुष्ट हो कर गण और जो नक्षत्रग्रह प्रभृति गणना कर जीविका निर्वाः देयको विनाश करने के लिये राजी हुवे। थोड़े दिनके करते हो, उन समस्त ब्राह्मणों को पतिदूषक अर्थान Vol. VI. 37.