पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१५२

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गणनीय-गणपतिकल्प गणनीय (सं० त्रि०) १ गिनने योग्य । २ नामो, प्रमिङ ।। घाटा पड़ता है । विनायकको शान्ति के लिये याज्ञवल्क्य- गणप ( म० पु०) गणेश। ने इस प्रकार विधान किया है जिसके प्रति .विनायक- गणपति (म पु०) गणानां पति:,-तत्। १ गणेश । को दृष्टि हो, शुभ दिनको खेतमर्षप शिला पर पेषगा २ शिव । ३ वह स्वामी। ४ अथर्व उपनिषदविशेष । करके वृतके माथ उमके शरीरमें लगाना और मत्थे में ५ मृच्छकटिक नाटकका एक ग्रन्थकार । ६ गोपालके पुत्र सौषधि तथा मर्वगन्ध लेपन चढ़ाना चाहिये। फिर उक्त रत्नप्रदीप नामक ज्योतिःशास्त्रकार । ७ वीरेश्वरके पुत्र, व्यक्तिको भद्रासन पर बैठा लेते हैं । अश्वशाला, हम्तिशाला. गङ्गाभक्तितरङ्गि गीी नामक मस्कृतके ग्रन्थप्रणता । ८ राम- वन्न मोक, मङ्गमस्थान तथा इदको मृत्तिका, रोचना उपाध्यायके पुत्र, धोरपञ्चाशिकाके टोकाकार। ८ एक गन्ध और गुगगुलु जलमें निक्षेप किया जाता है। इदसे विशिष्ट राजोपाधि । एक राजाको पदवो। दाक्षिणात्यमें एकवर्ग चार कलमी बना जल लाते और भद्रासनको वरङ्गालक राजा इम उपाधिको धारण करते थे। रक्तवण वृषचर्म पर लगाते हैं। पीछे इसी जलमे उक्त वरङ्गल देखो। वाक्तिको स्नान कराना पड़ता है। उमका मन्त्र है- गमपतिकल्प ( मं० पु.) गणेशको एक प्रजाप्रक्रिया। "मइसाब शसधारमषिभिः पावन' करम् । यह विघ्नशालिके लिये गणपति उद्देशमे किया जाता है। नेम त्वामभिषिचामि पावमान्यः पनमा ते॥ विनायक नामक कोई अपदेवता या भूत होते हैं। वह भगन्स वाणी राजा भग मूर्यो हम्पतिः । समय समय पर सुन्दर नरनारियोंको आश्रय करते या भगमिन्द्रय वायुस भग सप्त यो ६६ः। जिम पर उनकी दृष्टि रहती, लोग भूत ममझने लगते यत्त कैश ष दौभाग्य मोमन्ते यश मध मि। हैं। विनायकका आश्रय वा दृष्टि होनस प्रायः दुःस्वप्न नलाटे का यो र पो गयघन्तु मर्वदा॥ पाता है। वह व्यक्ति स्वप्रम देखता--मानो अगाध जल के इमी प्रकार मान करा करके उमक मस्तक पर तलम प्रवेश करके गीत खाता और कभी कभी कटा उड़ म्बरक म्र वर्म मर्ष पतेल डालना चाहिये । वाम मुण्ड भी देख पाता है । यही विनायककी दृष्टिका प्रधान हस्तमे कुशा ग्रहगा करके इस कार्यका अनुष्ठान करते हैं। लक्षण है। इसके व्यतीत स्वपमें काषायवस्त्र-आच्छादित मित, मम्मित, शालकटकट, कुष्माण्ड और राजपुत्र हिंस्र जन्तु पर अधिरोहम भी किया जाता है। उम मामों के माथ स्वाहा योग करक चतुष्पथमें सुप पर कुश व्यक्तिको मवंदा चगहाल प्रभृति निकृष्ट जातियों, गर्दभी बिका करक उम पर वलि दिया जाता है। कताकत या उष्ट्रो के माथ रहना अच्छा लगता है। जब वह तण्ड ल, पन्नाव, नानावण सुगन्ध पुष्य, मूलक, पूरी, एकाकी कहीं चलता, माल म पड़ता--मानो उसके साथ कचोरो, एरगड़को माला, दधियुक्त अन्न, पायम, पिष्टक किंसने हो दूसरे लोग लगे हैं। इससे वह डर करके आदि दवा विनायकको पूजाका उपहार वा वलि है। चौंक पड़ता है। उसके मनको स्फति बिलकुल विलुप्त यह मकल पूजोपहार एकत्र करके मस्तकको भूमि पर हो जाती है। वह जो कोई भी कार्य करने लगता, | रख विनायक जननीको आराधना करनी चाहिये। दूर्वा ससकी विपरीत फल मिलता है। राजकमारके प्रति और मरमो के फलमे उनको अध्य देना और हाथ ओर विनायककी दृष्टि होने पर वह राजत्वसे वञ्चित रहते | करके यह मन्त्र पढ़ना पड़ता है- हैं। यदि किसी कुमारी पर उनको दृष्टि पड़ जाती, वह "परियशो देहि माग्य भगवति हि मे। स्वामिसुखसे वञ्चित हो करके घोर यातनामें समय पलान् द हिमनदेहि सर्वान् कामांश्च देहि मे ॥" बिताती है । गर्भिणीके प्रति विनायकका आविर्भाव होनेसे इसके पीछे शुक्लवस्त्र परिधान करके मफेद चन्दन सन्तान नष्ट होता है। यदि विद्यार्थी पर इनकी दृष्टि | और सफेद फ लो की माला पहन ब्राह्मण भोजन कराना पड़ी, वह प्राचार्य वा श्रोत्रिय नहीं हो सकता । इनको और गुमको एक जोड़ा कपड़ा पहनाना चाहिये । इमी दृष्टिमे वणिक्का वाणिजा बिगड़ता पौर कषकको कृषि में | प्रकार विनायकको पूजा शेष होने पर नवग्रह, लक्ष्मी गथा