पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१५३

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गणपतिदेव-गणधि १५१ आदित्यका प्रर्चन और महागणपतिका तिलक किया | गणभत ( सं० पु. ) गणानां प्रथमादोना भर्ता ६-तत् । जाता है। इससे मकल दोषों को शान्ति होती है। १ महादेव, शिव । विनायक भो सन्तुष्ट हो करके पीड़ित वाक्तिको परि " मुष्य भरते गवत कथा" (किराता मीय ४।४२ ) त्याग करते हैं। ( याज्ञवस्का) २ गणेश । (त्रि.) ३ बहुजनस्वामी, जो बहुतार गणपतिदेव-दक्षिणदेशमें बरगल राजाके एक राजा, | अधिपति हो । प्रतापचन्द्र के पुत्र । शिलालेख पढ़नसे जाना जाता है | गणभोजन ( म० की. ) साधारण भोज । कि १२२८ई में इन्हों ने चोलों को परास्त कर कलिङ्गन्देश गणमुख ( मं० पु०) गणानां मुख:, ६-तत् । ग्रामणी, पर अधिकार किया था। ग्रामक अधिनायक, गांवके मुखिया। गणपतिनाग-ममुद्रगुहाकै समसामयिक आर्यावर्त वामो “रविले नाम विजित गयामप्या: स्त्र नौविनः पवम्।" एक राजा । ये ममुद्रगुमसे परास्त हुए थे। म. १७१२) गणयन ( मं० पु०) गणस्य भ्रातणां मस्खोना वा ममहस्य गणपतिरावल-एक विख्यात संस्कृत ग्रन्थकार । ये गवल हरिशङ्करके पुत्र और रामदासके पौत्र थे इन्होंने पूर्व- करणीयो यज्ञः । भारवर्ग अथवा बन्धवगका अनुष्ठेय निर्णय, मुहतं गणपति, शान्तिगणपति, श्रोताधानपद्धति मरुतस्तोम नामक यज्ञ, भाइयों या बन्धकि करन योग्य मरुत्म्तोम नामक यन्न। और मम्बन्धगणपति नामक धर्मशास्त्र प्रणयन किये हैं। "सोमदतियाग्निंगी मस्ती गणपतिवाम-१ एक प्राचीन कवि। १२७२ ई.को मे ग पायको यात सखीमा का।" (कान्याय गौत• २२।११।११) इन्हों ने धाराव'म नामक मिहामिक कावाकी रचना गणयाग (मं. पु०) गणो शेन शाम्स्यर्थ यागः । १ गणपति को है । २ योगमारममुच्चय नामक वैद्यकग्रन्थरचयिता। " कम्प, गणशक उद्देशमे करने योग्य प्रजादि । गणपर्वत ( मं० पु० ) गणानां प्रमथादीनां आवामरूपः गणरत्न ( मं० लो० ) गणा: स्वगदि गणाः रत्नानीव यत्र, पर्वतः । कैलामपर्वत । इम पर्वत पर प्रमथ वा शिवक बहती । एक ग्रन्थका नाम । पाणिनिन गणपाठमें जो गण रहत थे, इस लिये दमका नाम गणपर्वत पड़ा। मब गण निर्देश किये हैं, वे ही इम ग्रन्थमें पद्यरूपमे गणपाठ ( स..यु. ) गणानां स्वरादिगुणानां पाठोऽत्र, लिखे हैं । व्याकरणाध्यायोके लिये यह विशेष उप बहनी। पाणिनि प्रणास एक प्रव। हममें स्वरादि गणों के विषय लिखे हुए हैं कारी है। गणपाद (सं०प०) गणस्य व पादोऽस्य, बहखो ! जिसके | गणराव (मं० लो०) गजानीराखीणां ममाहारः, समसार दोनो पैर प्रमथ या शिवगणके जैसे हो । हिगु, अञ्च । रात्रि समूह। गणपीठक (म.ली.) गणरय शिवस्य पोठः आमनमिव | गणरूप ( सं० पु०) गणा बहनि रूपाणि यस्य. कायति क-क। वक्षःस्थल, छाती। अवस, अकवनका पड़ । गणपुङ्गव (म. पु.) गण: पुङ्गव इव उपमितम। गणरुपी (सं० पु. ) गणा बहनि रूपाणि सत्यस्य गणरूप- १ गणश्रेष्ठ । २ देविशेष, एक देशका नाम ३ उस इनि । खे ताकवृक्ष, मफेद प्राकका पेड़। देशक रहनेवाले । ४ उस देशके राजा। गणवत् (सं०वि०) गणोऽस्तास्य गण-मतुप मस्य वः । "कोलिङ्गान् गपपुलवानशिवानयोध्यकान् पार्थिवान् ।" गणयुक्ता, जिसमें गण हो। (नमहिना ४२४) गणवती (सं. स्त्री० ) धन्वंतरि दिवोदासको माताका गणपूर्व (म० पु०) गणानां ग्राम्यादिस्थलोकानां पूर्व : नाम। प्रधान, ६-तत् । ग्रामणी, ग्रामके अधिनायक, गांवके मुखिया। गणशम् (अश्य०) गण वोमायां कारकार्थे शम् । बहुशः, मणप्रमुख (स० पु०) जाति या श्रेणी में प्रधान, वह जी दलका दल, झुण्डका झुगड़ । जाति या समाजमें श्रेष्ठ हो। गणधि (सं० पु.) देवताविशेष, कोई देवता को किसी