पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१५६

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१५४ मयश N Pr पहले करते हैं। गणेश अनेक प्रकारके हैं। तन्त्रमें प्रस्यन्दमदगन लुथमधुपवद्यालोलगपस्थलम् ॥ ५० गणेशका उल्लेख है। यथा---१ विघ्नेश, २ विघ्न- दन्तापासविदारितारिरुधिर : सिन्दूरगामा करम् । वन्दे शलमुतामत गणपति मिद्धिपद कमस" राज, ३ विनायक, 8 शिवोत्तम, ५ विघ्नवत्, ६ विघ्न- प्रायः मब कोई डमी ध्यानमे गणेशको पूजा किया हर्ता, ७ गण, ८ एकदन्त, ८ अदन्तक, १० गजवक्त्र, करते हैं । तन्त्रमारमें गणशका और दूसरा धान लिखा ११ निरञ्जन, १२ कपर्दी, १३ दीर्घ जिह्वक, १४ शङ्क: है। तान्त्रिकगण इमो धानसे गणश पूजा करते हैं- कर्ण, १५ वृषभध्वज, १६ गणनायक, १७ गजेन्ट्र, १८ सूर्प- गणशका तान्त्रिक ध्यान यथा--- कर्ण. १८ त्रिलोचन, २० लम्बोदर, २१ महानन्दा, २२ मृत “सिन्दूराम ति नेव पथ तरजठर' सपनो दधाम। मूर्ति , २३ मदाशिव, २४ प्रामोद. २५ दुर्मुख, २६ / दन्त पाशाङ शेष्टान्य रसरविलसद बौनपुराभिरामम् ॥ सुमुग्व, २७ प्रमोदक, २८ एकपाद, २८ दिजिव, ३० वालेन्दुदगोतमोलि करिपतिवदन दानपरागगड । पुरवीर, ३१ षण्म ख, ३२ वग्द, ३३ वामदेव, ३४ वक्र- भोगीन्द्रावहभूषम भगत गपपप्ति रक्तवस्त्रागरागम्॥ (मन्त्र सार) तुगड़, ३५ हिरगड़क, ३६ सेनानो, ३७ ग्रामणी, ३८ मत्त, इम ध्यानसे जाना जाता है कि गणेशके चार हाथ ३८ विमत्त, ४० मत्तवाहक, ४१ जटी, ४२ मण्डौ, ४३ | और तीन नेत्र हैं, इनकी मूमेको मवारी है जिम पर चढ़ खङ्गो, ४४ वर्गण्य, ४५ वषर्कतन, ४६ भतप्रिय, ४७ गणेश, ४८ मेघनाद, ४८ व्यापी और ५० गणश्वर । गणश- के उपरोक्त पचास नामंकि फिर पचाम शक्तियां हैं। यथा....१ ह्री, २ श्रो, ३ पुष्टि, ४ शान्ति, ५ स्वस्ति, ६सर- स्वतो, ७ स्वाहा, ८ मंधा, ८ कान्ति, १० कामिनी, ११ मोहिनी, १२ नटो, १३ पार्वती, १४ ज्वलिनी, १५ नन्दा, १६ सुषमा, १७ कामरूपिणी, १८ उमा, १८. तेजोवती, २० मत्या, २१ विघ्ने शानी, २२ सुरूपिणी, २३ कामदा, २४ मजिह्वा, २५ भूति, २६ भौतिक, २७ मिता, २८ रमा, २८ महिषी, ३० शृङ्गिणी, ३१ विकर्ण ण, २२ / कर ये त्रिभवन भ्रमण किया करते हैं । बहत स्त्रियोंका भ कुटि, ३३ दोघंघोणा, २४ धनुछ रा, ३५ यामिनी, ३६ विश्वास है कि गणशकी आराधनासे गृहमें इन्दुरका उप- राधि, २० कामान्धा, ३८ शशिप्रभा, ३८ लोलासो, ४० ट्रव नहीं रहता है । इमलिये बहुतमी गृहस्थ महिला चञ्चना, ४१ दीति, ४२ सुभगा, ४३ दुर्भगा, ४४ शिवा, विजयाकै दिन दुर्गाप्रतिमा पार्श्व स्थित गणेशमूर्ति के ४५ भर्गा, ४६ भगिनी, ४७ शुभदा, ४८ कालरात्रि, ४८.! पद पर मूसेको मट्टी रख देती हैं और उनका दौरात्मा कालिका, और ५० लज्जा । (शारदातिलक टोकामें राधयम) निवारणके लिये प्रार्थना करती हैं। गणशके शरीर स्थूल तथा खव, मुख हाथीमा और गणेशका बीजमन्त्र :- उदर लम्बा है। इनके कपालसे मदजल निसत होता गोदबाव नमः, गौ शिरसे स्वाहा, इत्यादि क्रमसे अङ्गन्यास है, जिसके सौरभमे भाकुल हो कर मधुपकुल गगस्थलके और करन्याम करना पड़ता है। गणेशका पौराणिक निकट मबदा भ्रमण करते रहते हैं। बृहत् दन्तकी मन्त्र, 'षों नमा गणेशाय।" गणेश गायत्रो। भाघातसे अरिकुल निधन हो कर उनका रक्त सिन्दुरकोसी "एक द'ट्राय विभाहे वक्रतुण्डाय धीमही सतो विघ्र प्रचोदयात्।" शोभा देता है । गणेश यथार्थमें बहुत सुन्दर हैं और इनकी (प्रायतोषियो) आराधना करनेसे विघ्न नाश तथा मिचि होती । है (सम्ब) गगीशका नमस्कार मंत्र- गणेशका ध्यान ! यथा-- "देवेन्द्र मालिमन्दार-मकरन्द-कपारण। . "खयानतन गजेन्द्रबदन लम्बोदर' सन्दरम् । विमान् हरन्तु रब घरवापस रेषा