पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१५७

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गणेश पश्चिम-उत्तर अञ्चलमें वक्रतुण्ड और ढुण्डराज ये | स्थिराभवेद गहलमो: पुनीवमिगई नौ । दोनों गणेश प्रति प्रमिद्ध हैं । ब्रह्मवैवर्तपुराणके मतमे- सर्व मिहप्राप्य अन्त विपद मभन । फलञ्चापि च सौर्षानां यज्ञानां यहवेत ध्रुवम् । भोंगो को हो' गणेश्वराय नझारुपाय सर्वसिद्धि प्रदेशाब विघ्ने शाय महता सर्व दानानां योगणेशप्रसादतः ॥ नमो नमः। इसो मन्त्रमे गणेशपूजा करनी उचित है। इति यो ब्रह्मा व वात पुरावे गणेशन रहे विश्ण कृत' गणेशस्तोत" तुलसीपत्र हारा गणेशपूजा करना निषिद्ध मानी जाती गणेशपूजा मिफ भारतवर्षम हो नहीं होती वरं और है । गणशक इम मन्त्रको पचाम लाख बार जपनेसे मंत्रको भी देशों में यथा नेपाल, चीन, जापान और मङ्गोलियाम मिद्धि होती है । गणेशपूजा शेष होन पर म्तवपाठ करना होती है। नेपालके हिन्द और बोडावलम्बियोंको पूरा चाहिये। गणिशका म्तव, गथा - विश्वाम है कि गणशको पूजाम अभीष्ट मिड होता है। मौवि गुरुवाच । नेपालमें पशुपतिनाथ मन्दिरक उत्तरमें एक प्राचीन तथा "ईश! त्वां स्तानमामि ब्रह्म ज्याति: मनातमम् । अमित गणेशमन्दिर है जिसे अशोककी लडको चारुमतीने निकम्तिमय 5 पनरुपमहकम। निर्माण कगया है। यवहोपमें भी गणशके कई एक प्रवर सब वामां सिद्धानां योगिनो ग्राम । स्वरूपको मूर्तियोंकी पूजा होतो है । मन्त्रमहोदधिर्म अप्रवरूप' सर्वेश जानराशिस्ववियम्॥ अयनमा नित्य मयमात्मस्वरूपिणाम् । गणेशका ध्यान यों है- वायतन्यासिनन्निस चावत मर्व माक्षिणाम। " विषाणांकुशरणम वध दधान करमौदक एकरण। मसारा वारे च मायापोते मुटुल भम् । स्वपमा य हमभषामराठय गाग ममुहिने शाभमोड़।। कण धारस्वरूपच भकानुग्रह कारकम् ॥ गणशके हाथों में पाश, अंकुश, पद्म और परशु हैं परी घर' बरेगा वरद' वादामामपीश्वरम् । मुडके अग्रभाग पर मिठाईयां हैं। ये अपने माथ सह सिह मिनिम्वरूपञ्च सिद्धिद' मिहिमाधनम् ॥ बामिनी लिये हुए हैं और अपने सुवर्ण अलङ्कारोंगे ये मूर्य- ध्यानातिरिक्रय यच ध्यानामाध्यच धामि कम् । के जैसे दीखते हैं। धम स्वरूप धम धर्माधम फग्नप्रदम्॥ वी' म'सारखाणामहरम सदाश्रयम् । २ एक विख्यात योतिविद । इन्हनि आपप्रश्न- स्वानपुमकानावरूवमेतदतिन्द्रियम् ॥ जातक कल्पलता, तिथिचिन्तामणि-पञ्चाङ्गमाधन, तिथि- सामग्रजाच पार प्रकृमः परम् । चिन्तामणि, मारणी, पाटीटीका, भावाध्याय, रत्नावनी त्वो नोतुमसम'ऽनन्त: महम वनेन च। पति, स्त्रीजातक प्रभृति मंस्क,त ज्योतिषको रचना की नामः पचय नक्षमयतरानमः । है। ३ हिरण्यकेशिकारिका रचयिता । ४ पिष्टपशु- सरबती मशाच मशका तव स्तुती। मरणो और महिषोत्सर्गविधि नामक धर्मशास्त्र मंग्रहकार । इन्य व स्तवन कत्वा सुरेश सुरम'मदि। सुरेशश्च सुर: माज विरगम रमापतिः । ५ भागवतवादितोषिणोके रचयिता । ६ रमतरङ्गिणीके १८' विमा कम तो गणेशमा त य: पठेत् ॥ रमोदधि नामका टीकाकार । ७ स्म तिचन्द्रोदय- सायप्रसय मध्याह्न भनियुक्त : समाहितः ॥ प्रणिता । ८ कशाभट्टके पुत्र, ऋग्वंद पाठानुक्रमणदीपिका सहि निघ्नं कुरुते शि : मसत सुने। के रचयित।। ८. गोपाल पुत्र । उहनि १६१४ ई०को बई ये सत्या ' ल्यापजनक: सदा ॥ जातकालङ्कार नामक संस्कत ग्रन्थको रचना की है। १० यावा काल पति वा त यो याति भक्तिपूर्वकम्। दण्डिराजके पुत्र । इन्होंने गांणतमञ्जगे, ताजिकचन्द्रिका- तसा सर्वाभीष्टसिद्धिर्भवत्य व न संशयः ॥ विनोद, ताजिकभूषण प्रभृति मंस्क त ग्रन्थ प्रणवन तेन दृश्व दुःवत' सुश्वप्रमुपजायते। कदापि न भवेत् तम्य यहचौकाच दारणा ॥ किये हैं। ११ बबालसेनके पुत्र, शिवतोषिणी नामक मवेद विनागः शत्र वां वध नाव विवईनम् । लिङ्ग-पुराणके टीकाकार । १२ रामदेवके पुत्र, नालोदय शबद विघ्नविनाशव शत्रत सम्पत्तिवनम्। टीका-रचयिता । १३ बनारमके एक हिन्दी कवि। या