पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१५८

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गणेशकुण्ड-गणेशचतुर्थों महाराज ईश्वरीनारायणसिंहको मभामें उपस्थित रहते रहते हैं। इसके निकट दूसरे दूसरे अगरेजोंके रहनेके और १८८३ ई० को जीवित थे। रसचन्द्रोदय ग्रन्थ के | लिये स्वतन्त्र घर हैं। रचयिता ठाकुरप्रमादमे इनकी मित्रता थी। गणेशगुहा (गणेशलेना) १ बम्बई प्रदेशमें पूना नगरके गणेशकुगड़ ( सं० क्लो० ) १ नर्मदा नदीक तौरवर्ती एक | निकटस्थ कई एक गुहा, जहां पर हाटकेश्वर और सुले- कुगड । स्कन्दपुराणके गणशखण्डमें इस कुण्डका उत्पत्ति मान पहाड मिले हैं, वहांसे एक छोटा पहाड़ निकल विषय इस प्रकार लिखा हुआ है -एक दिन पार्वती कर पूना नगरकै उत्तरकी ओर गया है। इस छोटे और शिव घोर निद्रामें पड़े थे । इमो ममय सिन्दर नाम पहाड पर कई जगह गहा खोदे हये हैं, उनमें सबसे का एक दुष्ट दैत्य वहां आ पहुंचा। पार्वती और शिवको बड़ी गुहाका नाम गणशलेना है। इसमें गणेशपतिका घोर निद्रामें देखकर पार्वतीके उदरमें प्रवेश मदिर अवस्थित है। नगरके उत्तर भागसे उख, इमली, कर गया और उमर्क गर्भस्थ मन्तानका मस्तक काटकर और आमका उद्यान हो कर मदिर पर जाना होता है। निकान आया इम गर्भमें गणिशका जन्म था। मिन्दरदैत्यने १७७४ ई में हटा पेशवा रघुनाथ रावके पुत्र अमृत राव गणेशक मम्तकको नर्मदाके किनारे जिम स्थान पर रखा ने इन सब आम्रवृक्षांको रोपा था। इसके बाद मदिरके था, उमा ममय उम स्थान पर एक कुण्ड गया जी । ऊपर जानेके रास्ते पर पहाड़ के नोचे गणपतिके भक्तों- गणेशकुण्डमे मशहर है । इस कुगड़ के निकट रक्तवण की बनाई हुई मोपान थेणी है मोपान और असम शिनाखंड है, कोई कोई इसे गणशशिला कहा करते हैं। पहाड़की भूमि पार हो कर मदिर पर जाना होता है। गणेशकुम्भ ( मं० पु० ) उड़ीमाको एक पहाड़ी कन्दरा। एकादि क्रममे इसमें २४ गुहाम दिर हैं जिनमें भिन्न गणेशकुसुम ( मं० क्लो०) गणेशवद रक्त कुसुम । १ रत | भिन्न तरहकी देवदेवियोंकी मूर्ति यां और अनेक तरह करवोर, लाल कर्नर । २ रक्तकुसुम, लाल फल । के शिलालेख हैं । २ उड़ीसके अन्तर्गत उदयगिरि पहाड़- गणक्रिया ( मं० स्त्री० ) योगको एक क्रिया जिसमें उंगली का एक गुहा मन्दिर है । पहाड़के उपरमें यह गुहा अव- आदिको सहायतासे गुदाका मल माफ करते हैं। स्थित है। इस मन्दिरमें गणेशदेवकी मूर्ति तथा और गणेशखगष्ट ( म० क्ली० ) स्कन्दपुराणका एक अंश । इसमें कई तरहकी मूर्तियां हैं । इस गुहाका शिल्पनेपुण्य गणेशके आविर्भाव प्रभृतिका वर्णन है। देख कर आश्चर्य मानना पड़ता है। गणेशखिन्द, बम्बई प्रदेशमें पूना जिन्नाके अन्तर्गत एक गणेशचतुर्थी ( सं० स्त्री० ) भाद्र और माघको शका चतुर्थी । प्रसिद्ध बड़ा ग्राम । यह बंबई जानकी राह पर अवस्थित इस दिन गणेशका व्रत और पूजन किया जाता है। . है। यहां चतरसिंही देवीका मन्दिर है। भोमवर्डा पहाड गणेशचतुर्थी (स. स्त्री०) दक्षिणापथवासियोंका करणीय अश्वखुराकारमें इस ग्रामसे मिला हुवा है। इस पहाड़के एक प्रधान व्रत, गणेश चौथ । बम्बई और पूना अञ्चलमें ऊपर एक गुहामन्दिर विद्यमान है। जिसकी लम्बाई। इसके उपलक्षसे विशेष उत्सव हुआ करता है। स्कन्द- प्रायः २० फुट, चाड़ाई १५ फुट और ऊचाई १० फुट होगा। पुराणके मतमें भाद्रपदी चतुर्थीको गणशका जन्म हुआ अभी इस गुहामन्दिरमें एक साधु वास करते हैं। यहां शिव- था। उसीके उपलक्षमें इस व्रतको उत्पत्ति है। इसके लिङ्ग तथा लक्ष्मीकी मूर्ति है। उससे २० हाथ पश्चिम लिये बम्बई प्रदेशके बहुतसे घरों में स्वतन्त्र स्थान निर्दिष्ट पहाड़के ऊपरको ओर दो गुहे हैं। उममे भी कुछ दूर होता है। इस व्रतमें पूजाका आडम्बर यथेष्ट है । व्रतक . जन्न रखमका एक कुण्ड है । प्रत्ये क शुक्रवारको यहां हाट कई दिन पहले उक्त स्थान कलाईसे परिष्कार किया जाता सगता है। आश्विन मासमें नवरात्रिके समय मन्दिरमें है। लोग अपने साध्यानुसार आलोकमालासे ग्राहक. कुछ उत्सव हुआ करता है। जाटराजासे प्रतिष्ठित एक सज्जित करते हैं। गणेशचतर्थी के दिन प्रातःकाल अधूरा कुआ है । गणेशखिन्दमें बम्बईके लाट साहबका .भविष्योत्तर पुराणक मतानुसार फाणा न भासको चतुर्थी तिथिको एक घर। पाषाढ माससे पाश्विन मास तक ये यहां तर माखन मास तक य यहा। परना चाहिये।