पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१५९

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गणेशचतुर्थों ११० घरके बड़े बड़े और लड़के कहार, डोलो और वाद्यकर की विद्याप्राप्तिके लिय प्रार्थना करते हैं। उसके साथ ले करके बाजार जाते और वहां मट्टोकी एक गण- पीके विमर्जन होता है। विमर्जनसे पूर्व राहणी आ पति मूर्ति क्रय कर और डोलोमें रख करके वाद्य करते | करके प्रदीप जला भारति उतार यात्रा अर्थ साथम दधि करते उसको गृह ले आते हैं। बड़े आमदनियाँमें डाल देवमूर्तिको पालकी पर बैठा देती है। पालकी- बहुतसे लोगों के घर पर ही मूर्ति बना करती है। कहाँ को नाना पुष्यसि सुशोभित करके निकटस्थ नदी वा कहीं थालीमें चावल आटेसे ही गणेशमूर्ति अद्भित इदके कूल पर ले जाते हैं। जलक निकर दोनो पल कर ली जाती है। भित्र भिन्न वरीका अलग अलग करके देवमूर्तिको निकाल एक बार प्रदीप ले प्रारति नियम है। मूर्ति प्रायः चतुर्भुज होती है। बाजारों को जाता है। फिर मब लोग रोते रोते देवमूर्तिको जो मूर्तियां बिकतीं, एक श्रेणीके ब्राह्मण के हाथको जलमें विमर्जन करते हैं। उसकी भाषना करकं दुःख बनी रहती हैं। देवमूर्ति निर्माण हो उनका वावमाय शोकसे कातर हो मबके सब घर चले प्रात, फिर एक है। बाजारमे गणेशमूर्ति घर पहुंचने पर गृहिणी वत्सर पीछे वह देखनको मिलेगा या नहीं। प्रदीप ले करके आरति उतारती और लोपो पोती दालान- भाद्रपदकी पञ्चमी अर्थात् गणेश-पूजाके परदिनको में ले जा करके मिहामन पर उसको स्थापन करतो स्त्रियां ‘मप्तभ्रात' वा मात भाइयों के सम्मानार्थ व्रत पालन है। फिर पुरोहित श्रा करके यथाविहित पूजादि करते करती हैं। उस दिन क्षेत्रज वा मानवहस्तप्रस्तत कोई हैं। गणगका वाहन इन्दर भो निकट हो रहता है। ट्रय वह भक्षण नहीं करतों। मभी फलमूल आहार पुरोहितको पूजार्क पोके गृहस्वामी घरक मब लोगोंमें मिल करक दिन यापन करती हैं। भाद्रपदीप अष्टमी और करके उन्नःस्वरसे गणपतिदेवकी महिमाको गान करते नवमीको गणशजननी गारोका व्रत होता है। उस दिन हैं। इमी प्रकार प्रातः और मायं काल का गान घरमै चन्दनका आलिम्पन लगाते और एहहारको चन्दन- होता है। मबैरे मब लोग चावल आटेमे बने लडड वारमै मजाते हैं। तेडदा वृक्षको वस्त्रमें लपेट जा नब- आहार करते हैं। रातको उसका कुछ अंश इन्दरोंको पत्रिका बनतो, वही गौरीको प्रतिमा ठहरती है। इसकी खिलाया जाता है। प्रवाद है-एक दिन गणपति कोई वालिका गोदमें ले लेती है। वालिकाक हायम मूषिक पर चढ़ करके चलते चलते गिर पड़े थे आकाश एक पात्र, एका प्रज्वलित दीप, कई एक शस्य और मिन्दर- से चन्द्र यह देख करके हम पई। गणपतिने उम पर का एक पत्ता रहता है। एक बालक घण्टा बजात का हो करके चन्द्रको अभिसम्पात किया था-कोई। बजाते साथ चला जाता है। गृहस्थ रमणो उम बाग्निका- अब तुम्हें न देखेगा। चन्द्रदेव अपराध स्वीकार करके को घरमै ले जा करके बैठालती और प्रदीप जला करक शाप मोचनके लिये प्रार्थना करने लगे। गणपति तुष्ट गौरी देवीको प्रारीत उतारती हैं। फिर हो गये, परन्तु उनका वाक्य वार्थ होनेवाला न था। एक फल खिला करके कहती है-लक्ष्मी, लक्ष्मी ! क्या इसौमे उन्होंने कहा कि वत्सरमें अन्तत: एक दिन लोग। तुम आयी हो। वालिकाकै उत्तरम कहनमे कि वर चन्द्रका मुख न देण्हेंगे। सुतरां गणपतिके जन्मदिवम आयी थीं, प्रश्न होता है-तुम क्या लायो ही बालिका को नष्टचन्द्र होता है। उस दिन कोई उसके प्रति ! इम पर बोल उठती है-घोडा, हाथो, मैन्य और राशि दृष्टिपात नहीं करता । चतुर्थी व्रतके पीछे कोई राशि धन जिसमे तुम्हारा घर और यह नगर परिपूर्ण १ दिन, कोई २ दिन और कोई २१ दिन पर्यन्त गणपति हो जावेगा। इसी प्रकार एक एक करके सब घरोंमें की प्रतिमाको पूजा करता है। प्रात: और सन्धयाको | जा शेष पर गौरीको मध्यक्ष कमरे में ले जा करके निर्दिष्ट या पूजा होती है। विसजेनके दिन फिर कहार पालकी स्थान पर दीवारमें ठांस करके रखा जाता है। सधाक से पाते हैं। वाद्य बराबर हुआ करता है। पुरोहित पीछे नाना विध फल, दुग्ध और मिष्टान भोग लगता पा करके गणेशको पूजा और एहस्तके मङ्गल तथा बालक है। फिर रात चढ़ने पर नानाविध अलङ्कारोंमे गौरीको Vol. VI. 40