पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१६०

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गणेशबमनो-गणोत्सार द मज्जत करते हैं। दिनको कोली और करमी जातिको गणेशपण्डित-हरिविनोद नामक संस्कृत ग्रन्थकार। स्त्रियां पा करक देवीके मम्मख नृत्यगीत लगातो हैं। गणशपाठक-निण यकौस्सभ नामक न्याय और प्रयोग- तीन दिन अनभोगकै पीछे देवीके भूषणादि पोल उनके कौस्तुभ नामक धर्मशास्त्रप्रणता। . वस्त्र में कुछ खाद्य और 8 पैसे बांध किमी दाम वा दामी गणेशपुराण-एक उपपुगणका नाम । इममें गणेशमाहात्मा के हस्तमें दिया जाता है। दाम उमको ले कर घरसे वणित है। बाहर निकलता है। यही भी जलकी धारा देतो गणेशभट-१ उहाहविवेक नामक मंस्कृत ग्रन्थप्रणता । चली जाती है। शेषमें दाम देवीको जलमें विसर्जन २ शाकुनदीपक के रचयिता। करके वस्त्र और थोडामा जन्न ले यह लौट आता है। गणेशभारतो-शिवताण्डवस्त्रोत्रटीकाके प्रणेता। गणशजननी ( मं० स्त्री० ) गणिशम्य जननी, ६-तत् । दुर्गा । गणेशभिषक्-एक विख्यात चिकित्मक । इन्होंने चिकित्सा- "गण गजाननो दुर्गा राधानमा समस्व ।" ( तम्बमार ) मृत, योगचिन्तामणि, रुग्विनिथयार्थप्रकाशिका प्रभृति गीशदत्त क्रमदीपिका तन्त्रका एक टोकाकार । वैद्यक ग्रन्थ प्रणयन किये हैं। गणेशदत्तशर्मा सह “मेथिल गणेशदत्त शर्मा" नाममे ख्यात गणेशभूषण ( मं० ली. ) गणेश भूषयति गणेश भष तथा मालतोमाधवका बनाया "प्रकरणोद्वार"के टोका- कार हैं। गणेशमहामहोपाधाय हरिभतिदीपिकाक रच यता। गणेशदाम द्रव्यादश नामक वैद्यक ग्रन्थकार। गणेशमिश्र--- हन्दी भाषाके एक कवि । इमका जन्म गणेशदोक्षित-एक विख्यात दार्शनिक । ये भावा विश्व- १५५८ ई०को हुआ था। नाथ दीक्षितक पुत्र, भावा रामकृष्णके पौत्र तथा विज्ञान- गणेशराय-दिनाजपुरके अञ्चलक एक राजाका नाम । भिनक शिष्य हैं। उन्होंन मांख्यसूत्रको टीका, प्रवोधचन्द्रो- ई० १५वे शतकमें गौड़का एकछत्र गजा हुआ था। दयकी चिन्ट्रिका नामकी टीका, तकभाषाको तत्व प्रबो गणेशमिश्र-प्रायश्चित्त पारिजात नामक धर्मशास्त्र मंग्र- धिनी नामक टीका, तत्त्वममाम यथार्थ दीपन, योगानुशा- | | हकार। सनमत्रवृत्ति प्रभृतिको संस्कृत टोकात्रीको रचना की है। गणेशान ( मं० पु. ) गणानामोशान:, ६-तत् । गणेश । गणेशदेव मगीतशास्त्रविद पण्डित । राजा खङ्गवाहुके आदेशमे इन्हीन सङ्गीतकम्पतरकी सुबोधिनी नामको "तमः मम्मार हेरच व्यास: सन्यवतीसुतः। टोका प्रणयन की है। मम तम या गोगनी भन चिन्तितपूर कः ॥ (भारत १।११५.) गणेशदेवस--नन्दीग्रामवासी एक प्रमिड ज्योतिविद् । २ शिव, महादेव। इनका दूमग नाम गणेश्वर आचार्य था। ये केशवार्कके गणेश्वर (सं० पु०) गणानां ईश्वरः, ६-तत् । १ गणेश । पत्र और नृसिंहदैवसके चचा थे। इन्होंने कई एक ज्योति: | २ शिव । ३ गणात्मक ईखर । ११ कद्र, १२ प्रादित्य, ग्रन्थों की रचना की है, जिनमें से ग्रहलाघव, चावुकयन्त्र, ८ वसु और २ अश्विनीकुमार इन तेतीस देवताओंको तर्जनीययन्त्र, प्रतोदयन्त्र, लघूपयन्त्र, वृहत् और लघुतिथि- | गणेश्वर कहते हैं । चिन्तामणि, मङ्गलनिणय ( धमशास्त्र ), श्राद्धादिनिण य, | __'ए दान स्त्रिात सर्व भूते गोराः ।" ( भारत अम १५.प.) सिद्धान्तशिरोमणिविकृति, चन्द्रोण वटीका, पातमारणो, गणश्वर वालेश्वर जिलान्तर्गत एक परगना । इसमें बडिबिलामिनी नामकी लीलावतीवाख्या तथा केशवके | चालुनी और पाडक्रपा नामक दो ग्राम लगते हैं। मुहूर्त तत्त्व और विवाहपृन्दावनको टीका पाई जाती है। गणेश्वरो--एक नदा यह आसामके अन्तर्गत गारो पर्व उक्त ग्रन्थों मे ग्रहलाघव ही प्रधान है। गणेशका के कैलामत से कमश: दक्षिणवाहिनी हो कर मैमन- ग्रहलाघव १४४२ शकमें ( १५२० ई० ) पातसारणी | सिंह जिल्ला होती हुई प्रवाहित है। १४४४ शकर्म ( १५२२ ई०) और लीलावतोवाख्या गणोत्साह ( सं० पु०-स्त्री.) गणे गण भावे सम्भ यकरणे १५४६ में रची गई हैं। उत्साहो यस्य, बहुब्री० । गण्डक, गैड़ा।