पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१६१

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१६ गण्ड-गण्ड कालो गण्ड (सं० पु०) गडि वदनैकदेशे, गड़ि-अच । यद्दा गमड । मियोंसे बालकको मान कराना चाहिये। महमान १ कपोल, गाल । २ हस्तिकपोल, हाथीको कमपटी। मम्बसे सान कराना पड़ता है। बालक दिवागंड-जात इमका संस्कृत पर्याय -कट, करट, कटक और हस्ति हो से अपने पिता, रात्रिगंड-जात होनेसे जननी पौष गण्डक है । ३ गण्डक, गैंडा। ४ वोथ्यङ्गः । ५ पिटक । मन्धागड जात होनेमे पिता माता दोनोंक माथ नहर ६ चित्र, 'नशान् । ७ वोर. बहादुर । ८ अश्वभूषण, घोड़े। लाया जाता है। सूतपूण कांस्यपात्र, सवर्ण और धन का जवर ८. बुबुद्, बुलबुला। १० स्फोटक, फोड़ा। ग्रह विप्रको दान करते और ग्रहगणको पूजत हैं। इसी ११ ग्रन्थि, गांठ । १२ विष्कम्भ आदि योगोंके मधा दशम प्रकार शान्ति करनेसे गडटोष मिटता है। (जातिपत स्व) योग। महतचिन्तामणि और पयषधारा ग्रन्थमं लिखा है कि ___ कोष्ठीप्रदीपर्क मतसे इम योगमें जन्म लेनेमे मनुष्य | नारदक मतानुमार ज्येष्ठा नक्षत्रक शेष चार और मूला स्वार्थ पर, दूमरका अनिष्टकारी, अतिशय धूर्त, कुरूप | नक्षत्रक प्रथम चार कुल आठ दगड हो गड कहलाते और आत्मीयवग की यन्त्रणाका कारण होता है। उमके हैं। एमी प्रकार अश्लेषाक शेष चार और मघाक प्रथम दोनों गंड अपेक्षाकृत स्थूल और कभी कुछ बड़े बड़े | चार दंड भी गड हैं। वशिष्ठक मतमें ज्यं ष्ठा नक्षत्रका शेष एक और मूलाके प्रथम दो-तीन दगडांका ही १३ अश्विनी प्रभृति कई एक नक्षत्रांका दुष्ट अंश । नाम गण्ड है। वहम्पतिने ज्यं ष्ठाकं शेष अर्ध पौर इम विषयमें ज्योतिवि दौंका मतभेद लक्षित होता - मूलाके प्रथम अर्धदगडको गड-जेमा निर्देश किया है। किम नक्षत्र कौन अशको गंष्ट कहत और उसका क्या किसी किमी ज्योतिर्वि दुक मतमें मूलाके प्रथम पाठ फल ममझत हैं। ओर ज्यं ष्ठाके भेष पांच-१३ दगड़का ही नाम मड ___ अश्विन , मघा और मूला नक्षत्रक प्रथम ३ दंड है। पोयषधाराको देखते नारदका ही मत ग्राहै। और ग्वतो, अनषा तथा ज्येष्ठा नक्षत्रक शेष ५ दंड गड गंड में वालक वा वालिकाको जन्म होममे परित्याग करते कहलात हैं। इसमें मूला तथा ज्येष्ठा नक्षत्रक गंडको अथवा ८ वत्मर पर्यन्त पिता उमका मुख महीं देखी। दिवागंड, मघा एवं प्रश्नषाक गंडको रात्रिगड और १४ कोई जाति । गोंस देखो। वती और अश्विनोक गडको सन्धयाग' कहते हैं। गगडक (सं० पु०) स्वार्थ कन । १ गंडा । २ ज्योतिवि. गडयोगमें जात बालकका प्रायः मृत्य होता है। उमर्क द्याविशेष। ३ अवच्छेद, भेद। ४ भूषण, अलार, बच जानिम पिता वा माताका मृत्य निश्चित है। किन्तु जेबर । ५ दुष्ट, मूर्व । ६ मंख्या प्रभेद । ७ देशभेद, वह दिवागंडमें वालिका और रात्रिगंडमें बालकका जन्म देश जिम होकर गडकी नदी बहती है। ८ छन्दोभेद, होनमे किमो प्रकारका विघ्न नहीं पड़ता। मूलाके एक वन्दका नाम । ८ ग्रंथि, गांठ । १० स्फोटक रोग- प्रथम पादमें अर्थात् गंडके मध्य बालक अथवा वालिका- विशेष, एक रोग जिममें बहतसे फोडे निकलत हैं। का जन्म होनसे पिताका विनाश होता है। इसी प्रकार "बने वेवाधात ममि बहुगावगमकम्।" ( कादम्बरो) मुलाक हितोय पादमें जननोको भयानक रोग, तृतीय- ११ नदीविशेष । को देयो। १२ अन्तराय, विघ्न. पादमै धनहानि और चतुर्थ पादमें सम्पत्तिलाभ है। बाधा। अमेषा नक्षत्रमें इसके विपरीत ममझना चाहिये । गंड- | गण्डकारो ( मं० स्त्री०) गगडः भग्नास्थिग्र थिं करोति योगमें जन्म होनेमे बालक वा वालिकाको परित्याग संयोजयति । गडक-अण डोए। १ खदिग्वृत्त, परका करना ही उचित है। यदि सहवशत: उमको परित्याग पड़ : २ गड कममा, एक मकन्नी । ३ वराहकाम्ला, न किया जा मके, पिताको चाहिये कि मास तक बराहीकन्द ४ श्खेतलज्जालुका, लज्जावती। उसका मह न देखे। कारण मुख देख लेनेसे विपद् गण्डकालो ( सं० स्त्री० ) गड-क-अण डीप् यहा गडेषु पड़मेकी सम्भावना है। ऐसे स्थलमें कुछ म, चन्दन, | ग्रथिषु काम्ली यस्या, बहुव्री० । १ काकजला । २ शलकी कुष्ठ और गीरोचनाइसके साथ मिला चार जलपूर्ण कल- वृक्ष । ३खदिरोवृक्ष, खरका पेड़ ।