पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१६३

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गण्डको (छोटो)-गण्डदूर्वा १६१ भुज शङ्ख चक्र-गदा-पद्मधारी विष्णुको देख करके भक्ति- जिलेके बीच दक्षिणपूर्व भागमें शीतलपुरक पाम मही महकारसे नानाविध स्तव किया था। इमसे विष्णु और भो नाममे गङ्गामें मिलित हई है गोपालगञ, चौको हसन, प्रसन्न हुए और उससे वर मांगनेको कहने लगे । गंडको- रामपुर, गेवाम, गुरखा और शोतलपुर इमक किनारे ने कहा -जगदोश्वर ! यदि इस दामो पर आपको अवस्थित है। गङ्गामें बाढ़ प्रानमे पानो गुरखा तक पह- करुणा हुई है, तो आप गर्भगत हो करके मरे पुत्र बनें। चता और दिववारा तक मब स्थान जलप्लावित होता दम पर विष्णु खोल उठे-'गडकि : में शालग्रामशिला है। ग्रीष्मकालको इममें मामान्य ही जल रहता है । उस बन कर तम्हारे गर्भ में वास करुगा। तुम जगत्में समय किसान इममें बांध लगा कृषिकार्य करते हैं। बड़ो होगा । तुम्हारा दर्शन, म्पशन, अवगाहन वा स्नान गण्डकी नदीमें बांध पड़नसे इमका पानी कम पड़ गया तथा जलपान करनेसे कायिक, वाचिक और मानसिक है। बांध डालनमे पहले गण्डको नदी तक इसमें बड़ी तोनों प्रकारका पाप छट जावं गा।' इमी प्रकार वर दे बड़ी नावें चलतो थीं। आजकल बरमातमें हजार मनको कर विष्णु चलते हुए । इमोमे गटको मब नदियोंमें बड़ो नाव गुर्वा तक आ जा मकतो है । यह ४५ कोम लम्बो है। भारतमें जो शालग्राम-शिला भक्ति मह कारसे विष्णु है। इसके बोचमें नदोगर्भ ५२ हाथ उतर गया है। ममझके पूजी जातो, गडकी नदीमे हो आती है। गण्डकोपुत्र (मं० पु०) गण क्याः पुत्रः, ६-तत् । शालग्राम विणुके वरमे हो वह मबको आदरणीय हुई है। शिना, वह शिला जिम हिन्दू विष्णु समझ कर पूजा (वराहपुराण) करते हैं। गण्डको ( कोटी) कोई प्रमिड नदो। बड़ो गण्डकोको गण्डकुसुम ( मला० ) गण्डस्य हस्तिकपोलस्य कुसुम- सरह यह भो नेपाल राज्यके पहाड़ीसे निकल गोरखपुर मिव, ६-तत् । हम्तिमद, हाथोका मद । जिलेमें हो करके बही है। छोटी गडको बड़ी गडकीके गण्डकूप (म० पु०) गण्डे गण्ड इव उच्च पर्वतभृगो कपः, ४ कोम दूर रह करके समान्तराल भावमे चलती हुई ७ तत् । पब तका उच्चस्थान, पहाड़को चोटो। मारन जिलेके बीच मोनारिया नामक स्थान पर (अक्षा. गण्डगह पञ्जाबके अन्तर्गत रावलपिण्डो और हजारा २५.४१'उ० तथा देशा० ८५ १४३० पू० ) घर्घरा जिला की एक गिरि श्रेणी। यह असा. ३३५७ उ. नदी में गिरी है। इसके उत्पत्तिस्थानका नाम मोमेश्वर और देशा० .७२.४६ पू०में अवस्थित है। चच नामक पर्वत है । वह चम्पारनके दून पहाड़का टकड़ा होता उपत्यकाको ओर यह पव त ढाल होता गया है और है। हरहा नामक गिरिशङ्कट इसके बहुत निकट है। सब जगह यह ऊँचा और दुरारोह है। इमोसे छोटो गडकोका प्रथम अंश हरहा ही कहलाता गण्डगात्र ( स० लो०) गण्ड इव ऊच्चावच गात्रमस्य, है। आगे चल करके इसको क्रमश: सिखरना, बुट्टो. बहवी० । फलविशेष, शरीफा । इमका गुण-शोतल, गंडक और छोटो गंडक कहते हैं । गमनगर, बेतिया और वृषा, वातपित्तनागक, श्लेम वृद्धिकर, दृषणानाशक और सगोलीनगर इमाके तौर अवस्थित है। ग्रीष्मकालको वमनल शनिवारक है । ( पावे यस हिता) इसमें जल नहीं रहता। उस समय इसका विस्तार ४० गगडग्राम (सं० पु०) गड: भूषणस्वरूपः प्रशस्तः ग्रामः । हस्तमात्र होता है। किन्तु वर्षा कालको इसमें प्रचुर जल प्रशस्त ग्राम, वह ग्राम जिममें बहुत मनुष्य रहत हो। आ जाता है । उड़िया, धोराम, जमुया, पंडाई, हरबोरा, गण्डदूर्वा (मं० स्त्री०) गडा ग्रन्थियुक्ता दूर्वा, कर्मधा। बलश्या, रामरेखा और मसाई नामक उपनदी इममें आ दूर्वाविशेष, गॉडर घाम । इसका पर्याय-गंशाली, अति: मिली हैं। किसी किसीके मतमें छोटी गडकीका नाम तीव्रा, मत्सयासी, वारुणी, भीमपर्णी, सूचीनत्रा, श्याम- हिरण्यवती है। ग्रन्थि, ग्रन्थिला, ग्रंथिपर्णी, सूचोपत्रा, श्यामकांडा, गण्डको-गडकी नदोसे निकली एक पयोप्रणाली । यह जलस्था, शकुन्लाक्षी, कलाया और चित्रा है । इसका गुण- गंडकी नदीको किसी शाखासे निकल करके सारन मधुर, वातपित्त, ज्वर, भ्रान्ति और कृष्णा-श्रमनाशक Vol. VI. 41