पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१६५

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गण्डस्थली-गण्ड पविधि १६३ गण्डस्थलो ( स० स्त्री० ) गड: स्थलमिव, उपमितम । | गण्डिकोट--मन्द्राज प्रदेशके अन्तर्गत कड़ापा जिलामें कपोलस्थल, गदेश, कनपटी । | येरमलय नामक पर्वतका एक दुर्ग। यह सुदृढ़ टुर्ग गण्डा-घु प्रदेशका एक नगर। यह अक्षा० २७ ७ अक्षा० १४.४८ उ० और देशा० ७८ २० पू०में अव- ३० उ० और देशा० ८२ पू०के मध्य फैजाबादसे स्थित है। यहां विजयनगर राजाओंका एक देव- १४ कोस दूरमें अवस्थित है । यह गडा जिलेका मन्दिर है। प्रसिद्ध ऐतिहासिक लेखक फेरिस्ता लिखते प्रधान नगर है। इम जिन्लेमें अहीर जाति कृषिकार्य हैं कि यह दुर्ग १५८८. ई में निर्माण किया गया है। करती है। यह प्रदेश पहले उत्तरकोशल राज्यके अन्तर्गत गोड नामसे मशहर था। प्रायनी देवा । श्रावस्ती था । औरङ्गजवके सेनापति मोर जुम्लाने दुमे कई नगरका व मावशेष इम जगहसे दीखता है। बार दखल किया था। बाद यह हैदराबादक वाला- गण्डाग ( सं० पु०-स्त्री० गड इव उक्त नमङ्ग यस्य, घाटके पांच मरका में एक मरकारको राजधानी बहुव्री०। गडक, गैड़ा। हुई। अन्तमें कड़ापाक पाठान नवावन इम स्थान गण्डान्त ( सं० क्ली० ) तिथि, नक्षत्र और लग्न का मन्धि- को अपने अधिकारमें लाया । किन्तु १७८१ ई०को टिपूको काल । ल ईके समय अगरेज सेनापति कप्तान लिटलने इसे "नालिदि • नगनं विविध मत । जीत लिया। १८०० ईमें निजामने इसे अङ्गरेजीको नवपश्चर्यानो हा घटिकामित ॥" (ज्योतिष) अर्पण कर दिया। यह दुर्ग गतीला पत्थरक पहाड़क गण्डारि (सं० पु० ) १ कोविदारवृक्ष, कचनारका पड़ । ऊपर बना हुआ है। इम होकर पेनार नामक नदी कोविदार दे।।। २ मत्माविशेष । प्रवाहित होतो हुई कड़ापा अञ्चल तक चलो है। गराडारी (मं० स्त्री०) मनिष्ठा, मंजीठ । गण्डी ( मं• स्त्री०) खड़ीसे रखा खोच कर सीमाको गगडाली ( मं० मी० ) १ खेत दूर्बा, सफेद दूब, गांडर चित्रित करनका गाम गण्डा है। घास । २ मर्पाक्षीवृक्ष, सरहची, गडिनिका पेड़ । गण्डीर (स० पु०) १ समष्ठिना, खीरा । २ शाकविशेष, ३ मत्सासो, मछलीको आंख पोईका साग । ३ वीर, बहादुर, शूरवीर। गगडाव-वलुचिस्तानके काछो नामक विभागका एक गण्डोरी ( स० स्त्री० ) सेह वृक्ष, मेहर का पेड़ । प्रधान नगर। यह अक्षा. २८ ३२ उ. और देशा० गण्ड ( म० पु.) १ उपधान, तकिया। २ ग्रन्थि, गांठ, ६०३२ पू० वाघ नामक स्थानसे २० कोस दक्षिण- गिरहा । (त्रि०) ३ ग्रन्थियुक्त, जिसमें गांठ हो, गिरहदार । पश्चिममें मूला नामक गिरिमकट जानके रास्तं पर गण्डुपद ( सं० पु० ) गण्ड: ग्रन्थियुतानि पदानि यस्य, अवस्थित है। यह एक अंची भमिर्क ऊपर चार-। बहवी. 'किञ्चलक, के चुना। दीवारीसे घिरे हुए गाद्वारा सरक्षित है। यहां खिला गराड पदभव ( म० ली० ) ग उपद इव भवति उतप- द्यते । मोमक, सीमा नामक धातु । खाँका एक घर है। शोत कालमें खो साहव यहाँ आ गण्ड , गम खा कर रहते हैं। गगड पदी (म० स्त्री० ) १ एक चुद्र कोड़ा, छोटा गण्डि ( सं० पु० ) वृक्षको जड़से शाखा तककै भागको ___ कचुत्रा २ किञ्च लक जातोय स्त्रो, मादा केंचुत्रा। गडि कहते हैं। गगड प ( स० पु०) १ मुखपूरण, कुल्लो । २ मुहका गण्डिक ( सं० त्रि.) बुबुदुक्के जसा क्षुद्र पाषाणादि, पानो। ३ हाथीको मूडका अग्र भाग, हाथोकी मुंडकी बुदबुद्के ममान छोटे छोटे पत्थरके खंड। २एक नोक ४ प्रमृति परि मत, मोलह तोलेके बराबरका एक (प्रकारका अमृत। मान, पसर । गरिष्टका (सं० स्त्रो०) चद्र गण्ड पाषाण, पत्थरके छोटे गण्डषविधि (सं• पु०) गगड षस्य विधि: विधान, ६-तत् । शेटे टुकड़े। मुखगण्डष करनक नियम। मुहधोने के नियम । भाव.