पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१६६

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१६४ गण्ड षा-गतभट का प्रकाशमें लिखा है कि दतुवन और जिभी करने के बाद गतकाल ( स० को०) बोता ह.आ, कल । शोतल जल देकर बार बार कुल्ली करनी चाहिये । इससे गतकोर्ति ( स० वि० ) गता अतीता नष्टा वा कोर्ति कफ, अरुचि और मुखमल दूर होता है। कुछ गर्म जलसे । यस्य बह वी० । जिसको कोर्ति अतीत हई हो, जिसका कुल्ला करने पर कफ, अरुचि, मुखमल और दांतको जड़ता यश लप्त हो गया हो जातो रहती है। विष, मूर्छा, मदात्यय, राजयक्ष्मा और गतलम (स० त्रि०) जिसका श्रम दूर ह आ हो, विश्रान्त । रक्त पित्त इन ममस्त रोगाक्रान्त मनुषों के लिये गण्ड ष गतकुल ( म० पु० ) वह मपत्ति जिसका कोई अधिकारो धारण अहितकर है। जिसकी अखेि दूषित या मल- ' न बचा हो, लावारसी माल । कूपित हो गई हो अथवा जो मनुषा अत्यन्त दवंल हों गतचौधीमो, जैनियोंके भूतकाल मम्बन्धी चौबीस तीर्थ- उनके लिये उष्ण जलसे कुम्लो करना प्रशस्त नहीं है। र । नाम---१ नर्वाण, २ मागर, ३ महामाधु, ४ विमल- गण्ड षा ( म स्त्रो० ) गण्ड प टाप । गगड प । । प्रभ, ५ श्रीधर, ६ सुदत्त, ७ अमलप्रभ, ८ उद्दर, गगडोपधान ( म० की. ) ग'उस्य उपधान, ६-तत् उप- ८ अगर, १० मन्म त, ११ मिन्धु, १२ कुसुमाञ्जल, धानविशेष। गालबालिश, वह छोटा तकिया जो गालके १३ शवगण, १४ उत्साह, १५ ज्ञानवर, १६ परम श्खर, नीचे रखा जाता है। १७ विमलेश्वर, १८ यशोधर, १८ रुष्ण, २० ज्ञानमति, गराडाल ( म० पु० ) १ गुड़। २ ग्राम, कोर । २१ शुधमति, २२ श्रीभद्र, २३ अतिक्रान्त, और २४ शान्त । गण्डोलपाद ( मंत्रि.) गण्डोल इव पादो यस्य बहुव्री। (त्तोसो) गगडोलके जैमा वत्तलाकार पादविशिष्ठ, जिमके पैर गतत्रप ( स० ति०) गता तपा लज्जा यस्य, बह वी। गडोमी षोला हों। निल ज, लज्जाहीन, बेशर्म , बेहया । गण्य ( म. त्रि.) १ गिननेके योग्य, गिनतीके लायक। गतनामिक ( म त्र०) गतनामिका यस्य, बहवो। २ प्रतिष्ठित, जिमको पूछ हो, जिसे लोग समान करत हों। नासिकाशून्य, जिमके नाक नहीं हो, नकटा । गत (मं. त्रि.) गच्छति गम-क्विप मकारस्य लोपः । गमन गनिधन (म लो०) पाशभेद, बधनाल, एक प्रकार- शोल, जो चलता हो। यह शब्द प्रायः दूसरे शब्दोंके साथ | का फदा। प्रयोग किया जाता है। गतपाप ( स. १०) गत विनष्ट पापं यस्य, बह वो। गत ( म० वि० ) १ गया हुआ, बोता हुआ। २ प्राप्त, निष्पाप, जिसके पाप दूर हो गये हो। पाया हुआ । ३ समान, पूरा किया हुआ । ४ पतित, गिरा गतपुण्य ( स० त्रि० ) जिसका पुण्य नष्ट हो गया हो। हा ५ जात, जाना हआ। ६ लब्ध, पाया हआ। गतप्रत्यागत ( स० त्रि.) पूर्व गतः पश्चात् प्रत्यागतः ७ गमन, जाना, चलना। कर्मधा ।१ जो जाकर फिर लौट आया हो, गमन और गतंड (हिं पु०) हिजड़ा, नपुसक ! प्रत्यागमन । २ सगौतमै तालक साठ भेदोंमें एक। गतकलुष ( म०वि०) गत कलुष पाप यस्य, ब गतप्रत्यागता (सं० स्त्री०) वह स्त्री जो अपने स्वामीकै घरसे निष्पाप, जिसका पाप नष्ट हो गया हो। भाग गई हो और किर थोड़े दिनोंके बाद लौट आई हो । गतकल्मष ( स० त्रि.) निष्पाप, जिसे पाप न हो। गतप्रभ (सं० त्रि.) गता दूरीभूता प्रभा यस्य, बहती। गतकल्य ( स० लो० ) गतकाल, बीता हुआ समय। जिसमें प्रभा नहीं हो, निष्प भ, तेज रहित । गतका (हिं० पु० ) लकड़ोका एक डण्डा । इसके अपर गतप्राण (सं० वि०) गतः प्राणा यस्य । जिसके प्राणने चर्मको खोल लगी रहती है। यह ढाई वा सोन हाथका शरीर त्याग कर दिया हो, मृत । लम्बा होता है । यह प्रायः खेलने होके काममें आता है। गतबुधि ( सं० त्रि०) गता बुद्धिर्यस्य, बरवी । बुधिशून्य, गतकार्य ( म त्रि०) १ जिसका कर्तव्य कार्य नष्ट हो । निर्वोध, अज्ञान, अनजान । गया हो। २ अतीत कर्म, जो काम बीत गया हो। । गतभर्ट का ( सं• स्त्री०) गतो नष्टः प्रोषितो वा भर्ता