पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गदा -गदाधर मकाच (हिं. पु. ) एक प्रकारका खेल । इसमें एक । फिर भी उसके साथ युद्ध करनेको सविग्रह, शत्र के चारों पहला दुसरे लड़केको चक्षु वांधकर शेष लड़कीको कुन- भोर विचरण करनको परिवर्तन, शत्र को इधर उधर कलिये कहता है । जिन लड़कोंका पता वह कह टलने म देनको मंवत , शत्र के प्रहारसे प्रपनको बचाने- "गदही" और जिन्हें न कह सके उन्हें “गदहा" कह के लिये अवनत होकर भाग जानको भवन त, विपक्षके बार पुकारते हैं। उसके बाद गदह गदहियों पर चढ़कर। प्राघातसे रक्षा पान के लिये पोछे हट जानेको उपप्लत, एक जगहसे दूमरी जगह जाते हैं। शत्र के पास पहुंचकर गदा प्रहारको उपन्यस्त और घूम- मदहा (हि. पु.) १ रोग हरनेवाला, वैद्य, चिकित्सक। कर हासि शत्र को माग्नका नाम पपन्यस्त है। (भारत २ गटभ । गर्दभ देश।। मथप ५० अध्यायको नोलकर टौवा देयो) देवतापोंके बीच विष्ण गदहिला (हि. पु. ) ईट और सुरखीसे लदे इवे गदह । भगवान् ही गदायुधमें अति निपुण हैं । वायुपुराण में '२गोबरलेकी तरहका एक विषला कोड़ा। मदाबर (हिं पु० ) मेघ। लिखा है कि गट नामका एक भयकर असुर था जिसको गदा (सं० स्त्रो.) गद-अच-टाप । लौहमय अस्त्र विशेष अस्थि वचसे भो कठिन थी। गदासुर देवताओंके ऊपर इसमें लोहेका डंडा होता है और डंडेके मिर पर भागे बहुत अत्याचार किया करता था। अन्तमें ब्रह्माजीने उम- । सडू लगा रहता है । इमका डंडा पकड़कर लट्टको प्रोग्मे | मन के शगैरमे अम्यि ले ली और उसीसे विष्णुको गदा "मत्र पर प्रहार करते हैं। प्रत्रयुद्ध में गदाय ही प्रति बनाई गई । ( पायपुराण) २ वुद्धितत्व, महत्तत्त्व, बाप्पन । भय कठिन और योडायोंका वलसापेक्ष है। अग्निपुगण- मनस स्वात्मक पक बुदितत्त्वात्मिकी गदाम्।" (वि.) माहत, गोमूत्र, प्रभृत, कमलामन, जवं गात्र, नामित ३ पाटलवृक्ष । ४ योगविशेष । बामदक्षिण, पावृत्त, परावृत्त, पदोडत. प्रवन न. म. गदाई ( फा० स्त्री. ) तुच्छ, नोच । २ रही। "मांग और विमार्ग इन कई प्रकारके गदायुधका उल्लेख गदात्र विरजासत्रका ट्रमरा नाम | बरजाभोर वानपुर देखा। महाभारतमें मगडल, गतप्रत्यागत, अस्त्रयन्त्र, स्थान, | गदाख्य ( म० ल . ) गदा इत्याख्या यस्य, बहवी० । कोष्ठ, परिमोक्ष, प्रहारवर्जन, परिधावन, अभिद्रवण, पाक्षिप, भवस्थान, मविग्रह, परिवत , मंवत , पवन,त, उपप्न त, गदागट ( मं० पु० ) अश्विनीकुमार । उपन्यस्त और प्रपन्यस्त इन कई प्रकारोंके गदायुद्धक | गदाग्रज (... पु०) गदस्य अग्रजः, ६-तत् । १ बलराम । कौशलकी कथा वर्णित है । गदायुधमें निपुण महावली गदाग्रणी ( मं० पु० ) गदस्य अग्रणी, ६-तत् । क्षयरोग । भीम और दुर्योधन गदायुइसे स्वर्ग-मयं पातालवामियो- सभी रोगों में श्रेष्ठ मानके कारण सयरोगका नाम गदा. को विस्मयापन कर दिया था। टीकाकार नीलकण्ठके ग्रणी पड़ा। मतसे युद्धकालमें शत्र के चारो ओर घूम कर युद्ध करनेका गदाधर ( सं० पु. ) गदां धरति गदा -अच् । १ विष्णु । नाम मण्डल है। जो कोशलसे शत्र के निकट पहुंच कर इन्होंने गदासर नामक गक्षसकी हड्डियांमे एक गदा फिर हठात् दूर भाग जाता है, उसको गतप्रत्यागत कहते बनाकर धारण की, इमोसे उनका नाम गदाधर पड़ा। है। शव के कठिन मर्मदेशका भाक्षेप कर जपरकी पोर गदा दवा। गदा विष्णुभगवान्को जिस तरह मिलो वह उठाने या नीचे फेंकनेको अस्त्रयन्त कहते हैं प्राघात वायुपुराणमें लिखा है- - एक समय ब्रह्मपुत्र रेतिरक्षने के उपयुक्त मर्मदेश अर्थात् लम स्थानमें भाघात करने ब्रह्माकी आराधना की। ब्रह्मा उसको कठिन तपम्यामे को स्थान कह कर उल्लेख किया है । अत्यन्त संतुष्ट हो कर उसको बर देनेके लिये उपस्थित हुए। बैगसे घूमने फिरनेको परिधावन, बेगसे शत्र के मम्म ख हेतिरभने निवेदन किया --"प्रभो ! यदि इस अधम पर उपस्थित होनेको अभिद्रषण, शत्र के यनसे हो उसीके आपको कपा हुई तो मुझे यह बर दीजिये कि मैं माय करमके कामको पाशेप, युहमें किसी तरहकी चंच- त्रिलोकमें अस्य रहूं। देवास्त्र, असुरास्त्र या मनुष्यास्त्रसे ससा प्रकाश नहीं करनेको अवस्थान, शप के पहुंचने पर ममे किसी प्रकारका पनिष्ट न हो।" ब्रह्माजीने से कोढ़।