पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१८५

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गन्धवणिक-गन्धमादन १८९ एक चम्पावृक्ष पर बैठना पड़ता है और लड़कोको एक गन्धबहुम्न ( म० पु० ) गंधो बहलो यस्य, बह वी० । गध. चौकी या पीढ़ी पर बैठा कर सात वार वरका प्रदक्षिणा ! शालि, गंधयुक्त चावल । कराते हैं। जहां चम्पावत नहीं रहता वहां उमकी डालो गन्धबहुला ( म० स्त्री० ) गधो बह लो यस्याः, बहुवी. या उमको तखता पर लड़केको बैठाते हैं। विवाहकै ममय ततः टाप । गोरसोवृक्ष, एक प्रकारको झाड़ी। घर कन्या दोनोंको लाल पाड जरद रंगका वस्त्र पहनाया गन्धभद्रा ( स० स्त्री.) गधो भद्र रोगनाशको यस्याः, . जाता है। लडकीको दशदिन पर्यन्त घह वस्त्र धारण बह वी०। प्रसारणोलताविशेष, गधाली लता। करना पड़ता है। इन लोगों में दो या बहुविवाहको प्रथा गन्धभाण्ड (सं० पु० ) गंधस्य भाण्ड इव । गर्दभाण्डहन, प्रचलित नहीं है, किन्तु प्रथमा स्त्रीसे कोई सन्तान न अमड़ाका पे। इमका पर्याय-नंदिवृक्ष, ताम्रपाकी, होने पर हितोय वार विवाह करने में किसी प्रकारको वाधा फलपाको, पोतक, गधमुण्ड और सिप्रपाकी है। नहीं है । विवाहबधनच्छद या विधवाविवाह पूर्णत: (चंदा करबमाला) निषद्ध है। किमी स्त्रोके असतो वा परपुरुषगामो होन गन्धभेदक ( म० पु० ) १ कटक, एक प्रकार नमक । पर वह जाति और 'हन्द-ममाजसे घहिष्क त को जाती २ काचक, काला नमक । ३ लौह, लोहा। ४ तिलक, एवं उसका स्वामी उमको मूर्ति बनाकर दाहकार्य करते | मिठा तिन्न । हैं और इमके लिये एक मिथ्या श्राद्ध भो होता है। गन्धमांसी (म. स्त्री० ) गधप्रधाना मांसी। जटा- इनके क्रियाकलापादि उच्चश्रेणोक हिन्द के जैसे हैं । मामीविशेष । A kind of Indian spikenard. . यह इन लोगोंमें अधिकांश वैषणव, शाक्त और अल्प मंख्यक देखनेम ध मरवर्ण और कंशर जटाके मदृश है। इसका शव देखे जाते हैं वैशाखो पूर्णिमाम ये एक पात्रमं पर्याय--केशी, भूतजटा, पिशाचो, पूतना, भूतकेशी, मिन्टूर लगा कर उमकै सम्म खमं दण्डो, बटखरा और लोमशा, जटाला और लघमासो है। इसका गुण-तिक्त, हिमाबको बहो रख कर षोडशोपचारसे अपने अपने इष्ट- शोतल, कफ, कण्ठरोग, रक्तपित्त, विष पोर ज्वरनाशक देवका पूजन करते हैं । गधेश्वरी इन्होंकी इष्टदेवी है। एवं कान्तिप्रद है। नामांसौ देखो। ब्राह्मणको बुलाकर गधेश्वरी मूर्ति की पूजा गर्ने हैं। गन्धमाट ( म० स्त्री० ) गधस्य माता जननी, ६ तत्। पृथ्वा । अनेक प्रकारकै ममाले, चन्दनादि द्रव्य और भित्र भित्र गन्धमाका (सं० मी.) गधमातेति प्रमिव शक्ट्रया, प्रकारक पोध और औषध विक्रय करना इनका प्रधान द्रयाविशेष। वावमाय है। अधीतविद्या नहीं होने पर भी ये कधि गन्धमाद ( स० पु.) १ श्रीरामचन्द्रजाकी सेमाका एक राजी औषधको वावस्था दे मकते हैं। अल्प स्वल्प रोग बन्दर । ( भागवत ।१०।१९) राम और रावणकी लड़ाई में होने पर भी ये औषधका प्रयोग करते हैं। हिन्दुस्थानी इन्होंने अपना युद्धकौशलका अच्छा परिचय दिया था। भाषाम लोग इन्हें "पनमागे" कहा करते हैं : हरएक २ वफल्फक पौरससे गांधिनीक गर्भ में उत्पन्न पक रका पनमारीको दूकानमें प्राय: चारसौ तरहके औषध रख भाई। (भागवत । १४ । १० ) ३ भमर, भौरा। जाते हैं। ये लोग अपने ही हाथ से बहत तरह पाच- गन्धमादन (प्स'. पु. लो० ) गधेन मादयति मद णिच् नादि प्रस्तुत कर विक्रय करत हैं। स्य । पर्वतविशेष । एक पहाड़का नाम । गंध. गन्धबग्धा (मं० स्त्री०) गधस्य वंधो ग्रहणां यया, बहुव्री., मादन शब्दका प्रयोग प्रायः पुलिङ्ग में ही देखा जाता है। टाप । नासिका, नाक । "तवापरेप पूर्वच मासावट गधमादनी मौलमषिचायतो। गन्धबन्ध ( मं० पु.) गधं बध्नाति वध-उण यहा गधस्य (भागवत ।।११.१) किमो किमी स्थानमें क्लीवलिङमें वन्धुरिव । आम्रवृक्ष, आमका पेड़। (जदरबा० ) भी प्रयोग किया गया है। "यस्य चोपवर्म वामधवट् गधमा- गन्धबहल ( मं० पु.) गंधो बहलो वहुलोऽस्य, बहुव्री०। दना (कुमार) सितार्जक, संसपत्र बुद्रतलमी, नेताजबमा । गोलाध्यायके मतमे गधमादन पर्वत रोमकपत्तनक