पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१८७

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गन्धमूलक-गन्धयुक्ति १०५ गन्धमूलक ( स० पु. ) गधमूलएव गंधमूल स्वार्थे कन् को अलग करके मस्तकमें आंवलेका लेप देकर पहलेके १ शठी, कपूरकच रो। २ कच्छ र, कचर। जैमा भिंगे हए पत्रसे फिर भी ढांक दें। दो प्रहरके बाद गन्धमूला ( स० स्त्री०) गधप्रधान मूल यमयाः, लेपको मिरसे अच्छी तरह धो डालें। ऐमा करनेसे बहवी० । १ शमकी, शलाई । २ शठी । (राजनि०) उजले बाल काले हो जाते हैं। इसके पश्चात् सुगंध गन्धमूलिका ( स० स्त्री० ) गंधमूला कन्-टाप् । १ तैलादि लगा कर स्नान करें और मनोहर गन्ध तथा धप माकन्दी, एक प्रकारका साग । २ शठी, कपूरकच रो हारा मम्तकको भली भांति सुगन्धित कर लं जिससे गन्धमूषिक ( स० पु० ) गधप्रधानो मूषिक: । छुछुन्दर। इसमें किमो प्रकारको दुर्गन्ध न रहे। गन्धमूषो ( स० स्त्री० ) गधप्रधाना मूषो । छुछुन्दर। चम्यक् गधि तेल --मञ्जिष्ठा, व्याघ्रनम्व, नखी, दाल- गन्धमृग ( स० पु. ) ग धप्रधानो मृगः । १ कस्तुरीमृग, चोनी, कुढ़, वोलनामक गधया और च ण इन मबको वह मृग जिममें कस्तरी पाई जाय। २ खट्टाश । तेलके माथ मिला कर ध पमें गरम करना पड़ता है। गन्धभृत्यु ष्प (सं० पु० ) कदम्बहक्ष। इसोको चम्पकग धतल कहते हैं। गन्धर्म धुन ( म० पु० ) गन्धेन योनिगन्धग्रहणेन मैथुन गधद्रवा प्रस्तुत करने का नियम---शिलारम वा सिद्धा, मथुनारम्भो यस्य, बहुव्री । अष, बल। वाला पोर तगरका समान भाग मिश्रित करने पर जो गन्धमोजवाह (सं० पु. ) खफल्कके पुत्रका नाम । गधद्रवा प्रस्तुत होता है उसीको कामोद्दीपक गध कहते गन्धमोदन (सं० पु.) गधेन मोदयति आहादयति । हैं। इम गधमें वाम, वकुल और हींगका ध प मिलाने. गांधक। मे कटक नामक द्रवा बन जाता है। कटकके साथ कुढ़ गन्धमोदिनी ( मं० स्त्री० ) १ चम्पककली। २ चम्पक- मिलानसे पद्म पद्मगधके साथ चदन योग करनेसे पुष्पकली, चम्पा फ लकी कली। चम्पक; चम्पक गधक माथ धमियां, जायफल और दाल- गन्धमोहिनी (म० स्त्री० ) गधेन मोहयति मुह णिच् चीनी मिलानमे अतिमुक्त नामक गंधद्रवा प्रस्तुत होता है। णिनि । चम्पककलिका, चम्प की कली। सुगधध, प्रस्तुत करनको प्रणाली - शतपुष्या, कुन्दुरु गन्धय क्ति ( स० स्त्री०) गधाना गधद्रव्यानां युक्तिः योगः, चार भागोंका एक भाग, नखी और शिनारस अर्बभाग ६ तत् । गंधद्रवाका योगविशेष । इसके सेवन एव चंदन और प्रियङ्ग के चौथाई भागको गुड़ और नखके करनेसे शुक्ल वाल कृष्ण व हो जाते हैं। वृहत्संहितामे माथ मिलान पर एक प्रकारका मगधि ध प तयार होता इसकी प्रस्तुत प्रणालो ओर गुण इस प्रकार वणित है- है। इसके मिवा गुग्गल, वाला, लाक्षा, मोथा, नवो जिसके बाल सफेद हो जाते हैं, कपड़ और अलकारादि और शर्करा इन मौको बराबर मिलानसे एक प्रकार- असे कुछ भी शोभा नहीं देते हैं। बालोंको शोभासे का धप बन जाता है। जटामांमो, वाला, शिलारस, मनुष्य सुदर देख पड़ते हैं। यहां तक कि बालही मनुष्या- नखी और चदन हारा पिगड़ करनेमे भी ध प तैयार होता के मनोहर और शोभाकर अलङ्कार हैं । किन्तु मनुष्यके है। हरीतकी, शङ्ख, घनद्रव और वालाके बराबर बरा- यह अनुपम पलङ्कार मर्वदाके लिये नहीं रहते, थोडे बर भागों को मिलानमे एक प्रकारका ध प बन जाता तथा हो दिन में कई एक कारणांसे मफेद हो कर मनुष्योंको उसमें गुड़ और उत्पल मिलानेमे दूमरे प्रकारका धूप शोभाहोम बना देते हैं इस लिये अञ्जन और भूषणादि तैयार होता है। दूमरे प्रकारके ध पाक साथ शेलज और का नाई बालीको रक्षा करना एकान्त कर्तवा है। मोथा मिथित करनमे एक तोमरे प्रकारका धूप बन निमल लोहपात्र में कोदो धानका चावल पाक जाता है। इन नौ प्रकारके ट्रवामेिं क्रमश: अन्तद्रव्य करके लौहचूर्ण के साथ पेषण करें। अच्छी तरह पोसन- चौथाई भाग देने से एक उत्कष्ट धूप तैयार होता है। के ग : अल्प परिमाणमें शुक्ल केशके ऊपर प्रलेप दें एवं', शकरा, शलेय और मोथाके चार भाग, श्रोवामक पोर भिंगे हुवे पत्रसे बांध रखें। दो प्रहरके पश्चात् उक्त प्रलेप सज दो भाग, नखी और गुग्गु लके दो भागों को कर्पूर- _Vol. VI. 47