पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१८८

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१८५ गन्धयुक्ति-गन्धर्व चर्ण के साथ मिला कर मधु द्वारा पगड प्रस्तुत करनेमे । सूर्य किरणमें सुखाना पड़ता है । गधयुक्त दन्तकाष्ठ कोपच्छद नामक ध प बनता है। सेवन करनेमे मुखकी प्रसन्नता, कान्ति और सुग'धिको दालचीनी और उशीरक पत्तांके माथ दमका अपरि वृद्धि होती तथा वाक्य भी अत्यन्त थ तिसुखकर हो मागा कोटो इलायची मिन्ना कर च ण करें, इमर्क माथ जाता है। (इहत्महिता० ७७ १०) अल्पपरिमाण मृगनाभि और क मन्नानमे यह वामक | गन्धयुति (मं० स्त्री.) नानाप्रकारके गधट्रयाका एकत्र मामक प्रात्यन्त उत्कष्ट गधच गर्ग तैयार होता है। घन मिश्रण, कई एक गन्धद्रवांको मिन्नावट । (अभ', वाला, शैलेय और कर्पूर; उशीर, नागपुष्य, व्याघ्र गन्धरम ( म० पु० ) गधय तो रमो यस्य, बहुप्रो० । नव और पिगिटशाक; अगुरु, दमनक, नव और तगरः उपधातुविशेष, सुगधमार । दमका पर्याय-वोन, प्राणा, धनियां. कपूर, चोर और चंदन इन चार चार पिण्ड, गोप, रम, गोम, पिगडगोम, शश, गोमशश, गांधार, पदा में एक एक गण होता है, इनके ममभागांमे एक ममोबईन, वोलज और गायक है गधथ रमथ, इतर- प्रकारका गधच र्ण प्रस्तुत होगा। इनके प्रत्येक गणका तरहन्छ । २ गध और रम । ही नाम गधाण व है। यह गधद्रव्य १७४७२० भागांमें "गायोपेन' वाम गोमो यदन्न' विभक्त हो मकता है। ममस्त गधद्रव्योंमें नवी, तगर जापुन गध मापनम् ॥" ( भारत ५.२०११) गन्धरमाङ्गक (मं० पु० ) गधरमोऽई यस्य, बहवो. और शिन्नारम मिलाना पड़ता है। इमे जाति, कपूर! पौर मृगनाभि हाग मुग धित तथा गुड़ और नग्वी हाग ततः स्वार्थ कन् । थोष्ट नामका गध द्रवा । गन्धराज ( मं० पु०) गधानां गधमागणां गजा, ६ तत् । धपित करना होता है, इमोका नाम मवतोभद्र है। इम मिथित पदार्थ को जातिफल, मृगनाभि और का तत: टच् । माहमति भाटच । १॥ ५।४ २१॥ १ मुह वृक्ष, मोगरा बना । २ कण गुग्ग ल । ३ पुष्पवृक्ष । एमके पुष्पमें बारा मुग धित कर अाम्रमधु हारा मिक्त तथा इच्छानुमार चार भागों में बाँटनम बचत तरतर्क पारिजात तुल्य महध इतनी सुगधि है कि दशो दिशाए पामोदित हो जाती है। इममें खंतवण लिये १२ दल और केशविशिष्ट है । उत्पन्न होते हैं। हममें मर्जरम और थीवामक मिला कर जितना परिमाण द्रव्य हो, उममें उतनाही परिमाण इममें फन्न नहीं लगते हैं। इसकी डान्नी गेपर्नसे लगती है। ४ श्रेष्ठग'ध, अच्छी गध। ( ली.) गधन राजते वाला बार दालचीनी मिला दें, इसके बाद उन ममम्त द्रव्यों द्वारा सानजल प्रस्तुत कर लें। राज-अच । ५ चन्दन । ६ जवादि नामका गंधद्रवा । (पु० )७ गधन गजत राज-क्तिप । ध पक, धना । लोध्र, उशीर, तगरपादुका, अगुरु, मोथा, प्रियङ्ग, ८ नव नामक मुगधट्रव्य। मन और पथ्या इन ममम्त द्रवोंको नवकोष्ठ कच्छपुटमे गन्धराजी ( म स्त्रो.) गधराज जियां डोप । नखी तीन तीन द्रवों को मम्यकपसे उड्डार कर चन्दन और नामक ग धट्रव्य शिलारम दो भाग, अव परिमाण शकि, चतुथ भाग गत गन्धगजल ( म. ली.) वातव्याधित ल, वह तेल पष्या, कट , हिङ्गल और गुड़ दे कर ध पित करनम जिम सेवनसे वातरोग जाता रहता है। चौगम प्रकारक केशरगध प्रस्तुत होते हैं। हरीतको. गन्धकहा ( मं. स्त्री० ) वनमल्लिका, काष्ठमलिका, एक चयुक्त गोमूत्रम दन्तकाष्ठ ७ दन भिंगा रखनक ! प्रकारको लता। इमका पर्याय-मदयन्ती, मोदयम्तो बाद उसका गधजन्नमें निक्षेप करें। इलायची, दाल और मरनवा है। . चीनी, तिपत्र, मध, मिर्च, नागपुष्प और कुड़ इन गन्धव (मं. प.) गाः स्त तिरूपा गोतिरूपा वा वाच: समम्त द्रवीको मिन्नाकर निर्मल जन्नमें कुछ काल तक रश्मि घा धाग्यति धु-व । १ घोटक, घोड़ा। रखनक जाट गधजन प्रस्तत हो जाता है। इनके बाद "५ सय 41-11 मालिमिः।" ( भारत ३१९०५) जातिफन्न, तेजपत्र, इलायची और कपूरको यथाक्रम २ मृगविशेष, कम्त रीमृग। ३ अन्तराभवसत्त्व । चार, दो, एक और तोन भागों द्वारा अवच णित कर (३११२ ) अमरके टीकाकार रायमुकुटका कथन है कि