पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१९०

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१८८ गन्धर्व सभामें गान, वाद्य और नाट्याभिनय किया करते हैं। हरिवंशके मतसे स्वारोचिष मन्वन्तरमें परिष्टाके ये देखनेमें बहुत सुन्दर होते हैं। स्वर्ग लोकमें इनके गर्भ से गन्धर्वांने जन्मग्रहण किया है। (हरिव १ अध्याव ) ममान टूमरी कोई जाति रूपवती नहीं है। शब्दार्थ विष्णुपुराणमें लिखा है कि गन्धर्वगण पाताल जा कर चिन्तामणिके मतसे गन्धर्व दो भागों में विभक्त हैं-दिव्य नागोंको परास्त करके उनके धनरत्नादि बलपूर्वक छीन और मयं । जो मनुष्य इम कल्पके मध्य पुण्यवलसे ले पाये। नागगणने विष्णुसे सहायता मांगी। विष्णु- गन्धर्व त्व प्राप्त होकर गन्धर्व समाजभुक्त हुए हैं उन्हौं- भगवान्ने यह कह स्वीकार किया कि वे पुरुकुत्सरूपसे को मर्त्य और जो इस कल्पके आदिमे गन्धर्व है उनको उन लोगोंको महायता कर सकते हैं। नागने अपनी दिव्य गन्धर्व कहते हैं। ऋग वेटमें भी दिव्यगधर्वका बहन नर्मदाको विष्णुके निकट भेजा । नर्मदा पुरुकुत्सको उल्लेख पाया जाता है। साथ ले कर पाताल आई और पुरुकुत्ससे पातालस्थ गध- " स रमि तन्नो रगात दिव्यो गध: .(मा१1१५)! का विनाश हुअा। पत्रिपुराणके मतसे 'द य गधर्व फिर ग्यारह भागोंमें ( त्रि.) ७ गायक, जो गाम कर सकता हो। विभक्त है..१ अभ्राज, २ अङ्गारि, ३ रम्भागि, ४ मूर्य- ८ रश्मिधारक, जो रश्मि या किरण धारण करता हो, वर्ग, ५ लधु, ६ रम्त, मुहम्त, ८ मूईवान, ८ महाममा, चन्द्र, सूर्य प्रभृति । दीपविशेष । १० विश्वावसु और ११ कशाण । जटाधरने पाठ "भागहोदतथा सौग्य' गवत थ तारुणः ।" (प्राणपुराण) प्रधान गंधर्व के नाम उल्लेख कर गंधर्व-वंशका परिचय १० दिन, दवम । “तस्याकानामग रावय.बताः। दिया है। यथा-हाहा, छह, चित्ररथ, म, विश्वावसु, (भागवत ४:२६.११) गोमायु, तुम्बक और नन्दि । ये हो गधर्वनगरमें गण्यमान्य "मटमक गधाः मतमागधवन्दिनः । है तथा इन्हीके नाम पर एक एक वश प्रतिष्ठित है। मायन्ति चोत्तमशोक चरिलायर तानि च ॥" (भाग १९.) अथर्ववेदमें ६३३३ गधाका उसख है। ११ शरोराधिष्ठावदेवताविशेष, शरोरके अधिष्ठात मनुष्य जैसे गन्धर्व भी दो श्रेणियों में विभक्त है-- एक देवताका नाम। इन्होंने अविवाहिता कामिनोके मौनय और प्राधेय । मुनि और प्रधा नामके कखu स्वामिसम्भोगके पहले उसका कुछ विकसितयौवन उप- ऋषिको दो पनी थौं। दक्षकन्या मुनिके गर्भ से १६ । भोग किया था। ऋग्वं दमें लिखा है कि रमणियोको गन्धर्व उत्पन्न हुए। यथा-१ भीममेन, २ उग्रमेन, | पहले चन्द्र ने उसके बाद गधर्व ने अर तब अम्निने उप- ३ सुपर्ण, ४ वरुण, ५ गोपति, ६ धृतराष्ट्र, ७ सूर्य वर्चा, | भोग किया। इन्होंके उपभोग शेष होने पर मनुष्य- ८ अर्कपर्ण, ८ पर्यन्य, १० कलि, ११ प्रयुत, १२ भीम, पतिने उन्हें ग्रहण किया। १३ चित्ररथ, १४ सर्व विदशी, १५ शालिशिरा और १६ "सोमः प्रथमो विविद गधा विविद। नारद। एहौंको मौनय कहते हैं। प्रधाके गर्भ से उत्तर: बायोऽनिहायतिर रोरसे मनुष्यना:" ( ८५...) १२ प्राणवायु । “पता वा मनसा बिमतिता नपर्योऽवदद: १० गन्धर्व हुए--१ सिर, २ पूर्ण, ३ वहीं, ४ पूर्णायु, ५ गर्भ पन्तः ( १1१०11) ब्रह्मचारी, । रतिगुण, ७ सुपर्ण ८ विश्वावसु, ८ भानु "गां शम्दान् धावयतो'त गधव प्रापवायुः (मायक) और १० चन्द्र। येही प्राधेय कलायी। "अयन्तो गां ममत्वना गंधर्वातस्य ततभपात । १३ महाभारतवर्णित भारतके उत्तरवासी जाति- विवको अधिर वाच गरिने मन (' व ० ) विशेष। १४ व सकरवीर, सफेद कनेर । १५ खेत ब्रह्मासे तत्क्षणात् गधा की उत्पत्ति हुई । यह गो| ऐरण्ड, मफेद रेंडी। (वाक्य वा गीत ) धमन अर्थात् उच्चारण वा गाम करते १६ जनमतानुसार व्यन्तर देवोंके पाठ कुल होते करते जन्मे इस लये यह गन्धर्व नामसे अभिहित हए है। है,-किवर, किम्पुरुष, महोरग, गधर्व, यक्ष, राक्षस, किसी किमौका मत है कि ब्रह्माकी कान्तिसे इम जाति- | भूत और पिशाच। ये गन्धर्व देव तीर्थ दरोंके जन्म की उत्पत्ति हई। ये रूप दान करते है। कल्याणम नृत्य, वादिनादि कर पानन्दित होते हैं।