पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१९१

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गन्धवखण्ड-गन्धर्वखोक गन्धर्व खण्ड (सं० लो०) गधर्व नामक खगड़, मध्य- दत्ताने बीणा बजानेमें सब राजकुमारों को पराजित कर पदलो०। भारतवर्षके अन्तर्गत एक प्रदेश गन्धार। दिया । आखिर सत्यधरके पुत्र जीवन्धरकी वारी पाई। गन्धर्वगढ़-बम्बई प्रदेशके वेलगाम जिलेके अन्तर्गत एक इन्होंने उसे पराजित कर दिया। इस पर काष्ठागारके उपविभाग। इस उपविभागमें वेलगाम्से प्रायः २१ मोल पुत्रोंने ईषसे गन्धर्वदत्ताको हरण करनका उद्यम किया। पश्चिम मयाद्रि पर्वतके पाश्व शाखाके समतल क्षेत्रसे जीवन्धर कुमारको खबर लगते ही उन्होंने गन्धगज ४०० फुट ऊचे पर गधर्वगड़ गिरिदुर्ग है। यह (गन्धजातके हाथी) पर सवार हो कर उन दुष्टो के उप- दुर्ग १००० फुट चौरस भूमिके ऊपर निर्मित है। यह मको नष्ट भ्रष्ट कर दिया । कुमारको वीरताको देख कर १७२४ ई०को सामन्तवाड़ी के राजा फोन्द सामन्तक गन्धव दत्ता तो फ लः न भमाई । तुरत ही विवाह हो द्वितीय पुत्र नागसामन्तसे बनाया गया है। १७७८ ईमें गया, और दोनों सुखसे रहन लगे । जोबमधर देस्वा । कोल्हापुरके राजाने गंधर्व गढ़को अपने अधिकारमें कर (उत्तरपुर। पृट) लिया, लेकिन १७८.३ ई में मिन्धियाराजको सहायतासे २ जेनों के २३-वें तीर्थंकर नमिनाथ भाई वासुदे गन्धर्वगड़ फिर भी सामन्तवाडोके दखलमें आ गया। वको एक पत्नी। १७८७ ई में नेम! मर्दारने अपने स्वामी कोल्हापुर गर्व नगर ( सं० क्ली० ) गधर्वाणां नगरं, ६-तत् । १ गगन राजाकै विरुद्ध युद्ध कर गधर्वगढ़ और दूमर दूसरे मण्डलमें उदित अनिष्टसूचक पुरविशेष । ०पुर देवा। स्थानों पर अपना दखल जमाया। किन्तु थोड़े समयके २ मानसमरोवरका निकटवर्ती एक नगर । गधव बाद ही राजाने सर्दारको भगा कर गधर्व गढ़ अपने मण इसकी देखभाल करते हैं, इस लिये यह अधिकारमें लाया। गधर्व नगरसे अभिहित है। महाभारतमें लिखा है कि मन्धर्वगृहीत (सं० त्रि०) ग ण गृहीतः, ६-तत्। महापराक्रमशाली अर्जुनन गधर्व रक्षित गध'नगरको जिसको गधव ने ग्रहण किया हो । गधव' यो। जय कर तित्तिर, कलमाष और मण्ड क नामके प्रखरत गन्धर्व ग्रह ( मं० पु०) शरीरप्रवेशकारी उपदेवविशेष, प्राप्त किये थे। (भारत २।२० अध्याय ) एक प्रकारका ग्रह जो भूत प्रेतकी माई मनुष्यकेश रोरमें ३ विजयपवं तको उत्तर श्रेणीका एक नगर। प्रवेश कर जाता है। गंधर्ष देखः । ४ मिथ्या भ्रम, संसारको उपमा गांधर्व नगरसे दो गन्धर्व तीर्थ ( सं० पु० ) तीर्थ विशेष, एक तीर्थ का नाम । जाती है। ( भारत सब ८.) गन्धव भूषण ( मं० ली० ) सिन्दूर। गन्धर्वतल ( सं० ली. ) एरण्डकतल । रेंडीका तेल। गन्धर्वराज-रागरत्नाकर नामक संस्हत सङ्गीतग्रन्यप्रणता । गन्धर्वदत्त-पटनाके एक प्राचीन राजा, ये जनमताव- गन्धर्व लोक ( सं० पु० ) गन्धर्वाणा सोक भावासस्थानं, लम्बी था। ६-तत्। गुद्यक लोककै अपर और विद्याधर लोकके गन्धर्व दत्ता-जैनमतानुमार रत्नदीपक मनुजोदय नगरके नीचे अवस्थित एक स्थान। इस स्थान पर देवगायक राजा गरुडवेगको पुत्री। यह दिजैनधर्म में अचल अदा गन्धर्वगण वास करते हैं। काशीखण्डका मत है कि जो रखती थी। एक दिन वह जिनेन्द्रको पूजा करके गीतशास्त्राभिन्न गान करके राजाको खश कर मकते फलो का हार पिताके पास लाई। उसे यौवनवती देख एवं धन लोभसे मोहित हो कर धनगालो मानवगण- कर गरुड़वेगका बड़ी चिन्ता हुई । बिपुलमति नामक को गान द्वारा स्तुति करके जो बल प्रभृति उनसे दान चारण मुनिसे मालूम हुआ कि, में हेमाङ्गद पाते हैं उन्हें वे बाधणाको देते है और गानमें देशक राजाके.पुत्रसे इसका वीणा स्वयम्बरम विवाह जिनकी अतिशय प्रोति है एवं माव्यशास्त्रमें भी विशेष होगा। इस पर जिनदत्त नामक एक सेठने भरतक्षेत्रमें पारदर्शिता है, वे ही गम्प खोकको प्राप्त कर परम इस स्वयम्बरका आयोजन किया। स्वयम्बरमें गन्धर्व सुखसे कालयापन करते हैं। (बाबासब Vol. VI. 48