पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१९४

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९२ गन्वशालि-गन्याधिवास मध्यपदलो०। गौर सुवर्ण शाक । चित्रकूटके प्रश्चलमें | इन दो ग्रन्योंके पढ़नेसे हो गन्धहस्तिमहाभाष्यको यह शाक बहुत पाया जाता है। गुरुता और अर्थगंभीरता जानी जा मती है।

  • वशालि (सं० पु० ) गन्धप्रधान: शालिः । धान्य इस ग्रन्थको ढूंढने के लिये जैन लोग बहुतसा परिश्रम

वशेष, सुगनधि शालिधान्य, वामफुल धान । इसका कर रहे हैं। अनेक तो इसके केवल दर्शन करादेनेवाले. । पर्याय-कल्माष, गन्धालु, उत्तमोत्तम, मुगर्भध, गन्ध को ५००, सौ रुपये तकका पुरस्कार देनेका वचन । 'बहुल, सुरभि, गन्धतण्ड ल और सुगन्धिशामिल है। इस कहते हैं। सतभट्र देखो। . का गुण-मधुर, वलकारी, पित्त और श्रमनाशक, स्नायु-मन्धहस्ती ( मं० पु०) गन्धय तो मदगन्धय तो मत्तो विटाहनिवारक, अल्पवातनिवारक एवं अल्पपरिमाण हस्ती। मत्तहस्ती, मतवाला हाथी ! “कफ तथा बलवृद्धिकर तथा गर्भको स्थिर रखनेवाला है। सोव दुध ष:। (गमायण ५।०३।२६) (राजनि.) २ बौदस्त पविशेष । यह बोधगयासे आध कोस । मन्धशाण्डिनो (सं० स्त्री० ) गन्धयुक्तः शुगडोऽस्त्यस्याः ।। दक्षिणपूर्व में लोलाजन नदीकै पूर्व तट वर्तमान वाकरर नामक स्थान पर अवस्थित है। गल्धशखर ( सं० पु० ) गन्धः श खर शिरोदेश ऽस्त्यस्य, गन्धहारिका ( म० स्त्री०) गन्ध हरतीति -गवल क बहुव्री.। कस्त रो। ततष्टाप अत इत्वञ्च । शिल्पनिपुणा, वह स्त्री जो दूसरोके साथसम्भवा ( सं० स्त्री . ) सुगन्धशालि । घर जा कर काम करती हो। गांधमार (सं० पु० ) गधगन्धयत सारः स्थिरांशी यस्य, गन्धा ( सं० स्त्री० ) गन्धयति गग्ध वितरति, गन्ध-णिच्- बावो। १ चन्दनवृक्ष २ मुग्दरवन, मोगरा बेला । छठी कचूर। अच्-टाप् । १ चम्पककली, चम्पा । २ शठी, कपूर गमसारण ( म० पु० ) गध मारयति स णिच ल्य । कचूरो। ३ शालपर्णी । ४ गन्धयुक्ता स्त्री । ५ वमतुलसी। ६ कुकुन्दर । ७ अजमोदा। ८ वशन्लोचन । नामवली नामक गन्धद्रव्य । २ मुग्दरवस । उपसूची ( सं० सी०) १ प्रामातक, आमड़ा। २ कुछ- गन्धाखु (सं० पु.) गन्धयुक्त आखः । कुछन्दर । | गन्धाजीव (सं० पु०) गन्ध न गन्धद्रव्यं न आजीवति, मापसेवि ('सं० लो०) रोहोषण, अगिया धाम ।। प्रा-जीव-अच् । गन्धवणिक् । मन्धसोम (सं० ली० ) गन्धार्थ मोमयन्द्रो यस्य, बहुव्री० । गन्धाव्य (सली .) १ गन्धन आय। जवादि नामक सुद, खेतकमन्न । गन्धद्रवा । २ चन्दन । (त्रि.) ३ गन्धयुक्त, जिसमें गन्ध नवस्तिमहाभाष्य-तत्त्वार्थसूत्र पर स्वामो समन्तभद्राचार्य हो। (पु०) ४ नारङ्गकवृक्ष, नारङ्गोका पेड़। ५ वकुल विरचित भाथ । आजकल यह उपलब्ध नहीं है। कहते पुष्य, मौलसरीका फल । पाजतक जितनी टीका तत्त्वार्थसूत्र पर मिली है गन्धाव्या ( स० स्रो०) गधेन आख्या, ३-तत्। १ गध- उन मबमें यह हो बड़ो और विस्तृत है। इसकी नोक पत्रा । २ स्वर्णयुथी, जुहीका फूल । ३ तरुणोपुष्प, 'संधा ८४ हजार है, इसका केवल मङ्गलाचरण ११४ घोकुधार, ग्वारपाठा । ४ आरामशीतला। ५ गधा- कोकीका मिलता है जिमको पापमोमामा कहते हैं। ली, प्रमारणी, गधपसार। ६ मूरा नामम गधद्रवा।

... पालमोमांमा अपने ढंगका निराला को ग्रन्य है। ७ शतपत्री । गुलाबका फल। ८ सुगन्धयाल। ८ नोव।

रसके प्रत्येक लोकमें न्यायको शैलीमे मत्यार्थ देवको १० गंधपत्र । मोमामाको गई है। इसीके अपर श्रीमदभट्टाकलंकदेव | गन्धादि (सं० को०) णकेशर । बाटशतो नामक टोका है और उसके अपर स्याहादगन्धाधिक (म लौ०) गधोऽधिको यस्य, बहवी. हण वीपति विद्यानंदस्वामीका प्रष्टसहस्रो नामक विव- कुम, तृणकेशर । | गन्धाधिवास (स.पु.) गंधव गथट्रव्य पधिवासः,