पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१९६

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१५४ गन्धेभ-गन्धोलि कि पृथ्वीके शमे गन्धेन्द्रिय वा नामिकाकी उत्पत्ति | उत्सव होता है। इन्द्रामी जा कर माताकी से से भग- है इमोके हारा हमलोग गन्ध ग्रहण करते हैं । माय | वान्को ले आती है और उनके बदले में एक मायामयो और पातञ्जनके मतमे घ्राणन्ट्रिय पृथ्वी अंशसे उत्पन्न नहीं बालक रख पाती है। यह कायवाही गुप्तभावसे की है। वह मात्त्विक अहङ्कारमे आविर्भूत हुआ है। फिर | जाती है। फिर उन्हें सुमेरु पर्वत पर पाण्ड क शिला पर प्रलय ममयमें वह उममें लीन हो जाता है। भाष्यकार | विराजमान कर उनका न्हवन किया जाता है। सन. विज्ञानभिक्षने मांख्यप्रवचनके हितोय अध्यायमें इन्द्रियके कमार और माहेन्द्र तथा अन्यान्य हजारी देव मिल कर भौतिकत्ववादमा अत्यन्त सुन्दर रूपसे निराकरण कर १००८ कलशाम भगवानको स्नान कराते हैं। उम समय पारारित्व मस्थापन किया है। उनके स्रानका जल जिन जिनके देह पर पड़ता है, वे गन्ध भ ( म० पु. ) गन्धयुक्त: मदगन्धयुक्ता: डभः शाकपा परम्परासे मुक्ति जाते हैं। (नचादिपराय) र्थिवादिवत ममामः । गन्धगज, मत्तहम्ती, मतवाला ___ कोटिभट श्रीपाल राजाको जब कुष्ठको व्याधि हुई हाथी। थी, तब उन्ह प्रजाकी सुविधा के लिये राज्यसे निकन्न fafa निध भी गन्धे व वादारमत । (मतर १॥३००) जाना पड़ा था। भाग्यवश व उम राज्यमें जा पहंचे गन्धात ( म पु० ) गन्धप्रधान अतु: वा वृद्धिः। सुगन्ध- जहां मैनासुन्दरीके पिता राजा राज्य करते थे। वे . माज्जार. खट्टाश . अपनी पुत्रीकी इस बात पर बहुत नाराज थे कि,--"मैं गन्धीत्कट-स्वामी जीवन्धरकमारके पालक और वैश्व अपने भाग्यसे सुख या दुःख पाती हू।" बस, इसी जाति धनाडा । जीवन्धरकुमारके पिताको काष्ठागा. बात पर नाराज हो कर उनने मैनासन्दनी श्रोपान को रने मार डाला था। उनके पीछे जीवन्धरका जन्म हुआ ब्याह दी। बेचारो मै नामदगे धर्म पर श्रद्धा और वे गन्धो एकटक घर पल थ। जीवन र देती । रखती हुई अरहन्त भगवानको पूजा करने लगी और गन्धोत्कटा (मं० स्त्री०) गधन जाकटा उग्रा, ३-तत् । दम नित्य प्रति जिनन्द्रकी प्रतिमाका गधोदक लाकर पतिक नकव क्ष, दानाका पेड़। शरीरमे लगान लगी। मौभाग्यवश, थोड़े ही दिनोमें गन्धोत्तमा ( मं० स्त्री० ) गर्धन उत्तमा उत्कृष्टा ३ तत् । श्रीपालने कुष्ठरोगसे मुक्ति पाई और मैनासुंदरीके साथ मदिरा, शराब दिगम्बर जैनधर्म को पूर्णतया पालन करता हुआ पानन्द- गन्धोद ( सं० क्लो०) गन्धवामितमुदक' शाकपार्थिववत् से जीवन व्यतीत करने लगा और अन्तिम जीवनमें समाम: उदकस्य उदादेशय । गन्धट्रव्य, वासित जल, दिगम्बरी दीक्षा धारण कर, कंवलज्ञान पूव क मुक्ति गन्धजल्ल, गुलाब जन्न । लाभ किया। (ोपालचर) - "भामा माग गन्धौर : " (भागबत १९१९) गन्धोपजोवी ( म० पु०) गधगधद्रव्य उपजीवति गन्धादक ( म० को०) गन्धगमितमदक' शाकपार्थिववत | उप जोव णिनि । गधणिक ।। समाम: विकल्पपक्ष उदकस्य न उदादेश: । १ गधट्रव्य नाग म.प.र: ये च गन्नापजोरिमः। (रामा १०॥१) वामितजन्न, गधजन्न, गुलाब जन्न । गन्धोपल: ( म० स्त्री० ) गांधक। २ जनमतानुमार शीर्थ कर वा अरहन्त भगवान्क | गन्धोल -बम्बई प्रदेश का ठयावाड़का एक छोटा राज्य। मानका जन्न, अथवा उनका मूर्तिक स्नानक जल को लोकमख्या प्रायः १३७ है। गज्यकी आमदनी २०००), गन्धोदक कहते हैं। श्रावक लोग नित्य दर्शन कर- रुपयेकी है। जमींदारको २८०, रुपये गायकवाड़ महा- के, उमकी मम्तक और हृदयसे लगाते हैं। तीर्थ | राजको कर स्वरूप देने पड़ते हैं। परक जन्म होते ही इन्द्रका सिंहासन कम्पायमान होता गन्धोलि (सं० स्त्री० ) गधयति गंध बाहुलकात् पोल है। इन्द्र तुरतही अधिज्ञान द्वारा तीर्थ धारका जन्म। ततो जाती डोष निपातनात् इस्खः । भद्रमुस्ता, सुगंधि जान मध्यस्नीक में देवों सहित उपस्थित होता है। नगरमें! घास, नागन मोथा।