पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२०४

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के साथ प्रलोक पहुंचेगा। भारतके विभिन प्रान्तोंसे पुत्र राजर्षि गयम वहां प्रचुराव और भूरिदक्षिण नामक असंख्य तीर्थयात्री प्रतिवर्ष गयामें पाच तपंगा करने कोई यज्ञ किया था। इस यजमें शत सहस्र प्रमाचल चाते हैं। यहां यात्रीको ४५ स्थानों पर पिण्डदान करना तथा घृतकुल्याए बनौं, मैकड़ों दहीको मदिया वहीं पड़ता है। इनमें पाजकल लोग ७ या ३ ही स्थान देख और लाखों उत्तमोत्तम व्यजनप्रवाह प्रवाहित हुए। राजर्षि भारके चले आते है। ठोस चट्टान पर बना विष्णापद गय याचकोंको प्रति दिन ऐसे ही समारोहसे अब देते मन्दिर गया मबसे बड़ा है। कहते हैं. १८वीं और ब्राह्मणोंको छोड़ करके दूसरे लोग भी बहुत प्रकार यताब्दीको होलकरकी विधवा रानी अहल्याबाईने यह के अवव्यञ्जन खा लेते थे । दक्षिणा प्रदान कालको मन्दिर किमी पुराने मन्दिरके स्थानमें बनवाया था । गया| वेदध्वनिमें गगन स्पर्श किया, अन्य कोई शब्द कर्णगोचर वान पगडा ही हम मन्दिरके मौरूसी पुजारी है। वह न हुआ। राजर्षि गयने जिस समारोहसे यज्ञ किया, यात्रियोंमे यथाप्राप्य धन मांग करके आशीर्वाद देते हैं। कभी किसीने किया न था और ऐमा भी नहीं समझ विपाद मन्दिर में जा पूजा अर्चमा न करनेसे गया. पड़ता भागे कोई करेगा। देवगण गयराज-प्रदत्त हविः धावा असफल होती है। हारा इनने परिटल हो गये थे कि उन्हें किसी दूसरक ____ पत्रतत्ववित् कनिङ्गहाम, राजा राजेन्द्रलाल और द्रव्य ग्रहणकी इच्छा न रहो। यह यज्ञ ब्रह्मसरोवरके पिचक्षण हण्टर माहबके मतमें गयाक्षेत्र पहले हिन्दू- निकट हुपा। (वनपर्व १५.) ज्ञात होता है कि राजर्षि तीर्थ जमा न गिना जाता था, केवल प्रधान-बौह तोर्थ गयके यन्न करनेसे ही वह स्थान गया और महापुण्यस्थान जमा प्रमिह रहा, बौडीका अध:पतन होने पर हिन्दनों- जेसा पूर्वकालको प्रसिद्ध इा। (महाभारत, द्रोच (प.) में उनको कीर्तियों पर अपना वर्तमान गयाधाम महाभारतमें यह स्थान गयराज-अभिमंस्कृत महीधर तीर्थ- स्थापित किया । परन्तु उनका मत समीचीन जेसा नहीं जैसा अभिहित है। (बनपा -१०) पाण्डव वहां समझ पड़ता । कारण बौह प्राधान्य यहां तक कि बुद्ध तीर्थ करने गये थे। बन्नके पहलेसे हो गया भारतवासियोंका एक प्रधान हरिवंशके मतमें मनुके यज्ञसे मित्र तथा वरुणके अंश प्राचीन तीर्थ है और पिटपुरुषोंको पिण्ड देने के लिये एक हारा इला मानी एक कन्याने जन्म लिया था। वही मात्र पुण्यस्थान जैसा प्रसिद्ध है। वाल्मीकि रामायण कन्या पुरुषरूपमें मनुके पुत्र सुधन्न नामसे विख्यात यामा १००।११-१३) में लिखा है, कि-सुनते हैं कि गया हई। इन्हीं सुध नके ३ पुत्रोंके मध्य गय नामक कोई प्रदेशम किमी धीमान और यशस्वी यजमानने पिटलोक- पुत्र हुए। उन्होंने गया पुरीमें राजधानी निर्माण की। प्रति उद्देश करके यह अति गायी थी 'सन्तानको रसी क.रण पुत्र कहते है कि वह पिताको पुत् नामक वायुपुराणीय गयामाहात्मामें लिखा है- भरवसे बचाता और सर्वतोभावसे रक्षा लगाता है। महाबलशाली गय नामक एक विष्णुभक्त असर लोग इसीसे चाहते कि उनके नानाविधानों में पारदर्शी रहे। वह १२५ योजन उच्च और ६० योजन स्थूल थे। बहुतसे गुणवान् पुत्र हो और उनके कोई न कोई गया पाक्क्षति भयहार होते भी उनका चरित्र बुरा न रहा। जाये। महर्षि याज्ञवल्काने (यवस्काय नि १।२६.) लिखा गयासुर अतिशय धार्मिक और नम्र स्वभाव थे। प्रकारण कि गयाम बाहकालको जो दिया जाता, अनन्तफल वह किमीका कोई अनिष्ट न करते थे। वह कुछ दिन पहचाता है। इसी प्रकार महाभारत (८४.८०५पर पीछे कोलाहल पर्वत पहच करके विकी पाराधना पचासन १५ च.) हरिवंश प्रादि ग्रन्थों में भी गयातीर्थ का करने लगे । उनको कठोर तपस्या देख करके देवताओंके प्राण घबरा गये, वह मब मिल और परामर्श करके पिता- __ गयाकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें प्राचीन ग्रन्थों में भी मत महके निकट पहुंच करके कहने लगेगय यदि इसी मह सक्षित होता है। महाभारतके मतमें प्रमूर्तरयाकै प्रकार और थोड़े दिन तपस्या करेंगे, तो सभी देवता