पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२०५

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लोग अपने अपने अधिकारोंसे वञ्चित हांग; अतः इसी ! करके खड़े होनेसे वह ठहरा था। गयासुर देवतामो- समय पितामह ! रमका जो हो, विधान कर दाजिये। का उद्देश समझ करके कहने लगा-यदि पाप एक बार विरिच्चि देवगणको ले करके विष्णुक निकट उपस्थित हुए भी इस अधमसे कह देते, तो मैं कभी न हिलता डुलता। वहीं एक सभा होने पर ठहरा था-इसी समय सब मिल देवगणने इस पर अतिशय सन्तुष्ट हो करके वर म गने- गयको वर दे करके विरत करें। इसो परामर्शके अनु को कहा था। गयासुर तब बोल उठा-पाप ऐसा वर सार ब्रह्मा, विष्णु प्रभृति सभी कोलाहल पर्वत पर जा दोजिये -जिममें चन्द्र, सूर्य वा पृथिवीके रहने तक समस्त उपस्थित हुए ओर गयासुरको वर देने लगे। परोपकारी देवगण इस शिला पर अवस्थिति करें, मेरे नाम पर यह गयासुरने राज्य, ऐश्वर्य प्रभृति कुछ भी न मांग करके म्यान एक पुण्यक्षेत्र बनें, पांच कोम गयाक्षेत्र तथा एक कहा था-यदि आप लोग मुझ पर मन्तुष्ट इए हैं, तो कोस गयाशिरः रह और यह सकल तीर्थासे श्रेष्ठ ठहरे। ऐमा विधान करें-जिममें मेरा शरीर ब्राह्मण, तीर्थ- द वगणन वही स्वीकार किया और गयासुर निश्चल शिला, देवता, मन्त्र, योगी, संन्यामी, कर्मी, धर्मी हुआ। (गामाहात्मा ) जाति प्रादि मभो पवित्र पदार्थोंमे भी पवित्र हो जावे। देवगणक गयाशिरमें पदार्पण करनेसे गयाक्षेत्रमें देव- देवगण असुरको चानाकी समझ न सके: उमन जो मांगा, ताओंके पदचिह्न देख पड़ी है। गयामाहात्मामें लिखा स्वीकार करके यथास्थानको चल दिए । गयासुरका है कि उक्त सभी पदचिह्नों पर पिण्डदान करना चाहिये। शरीर पवित्र हो गया । वह फिर नगर भ्रमणको निकले आज कल ह तमे लोग शेषोक्त विवरण समझते और थे। उनका पवित्र शरीर देख करके सभी जीवजन्तु गयाके पण्डा भी इसी प्रकार गयातीर्थ की उत्पत्ति कोतन चतुर्भुज हो वैकुण्ठको चलने लगे। नगर जनशून्य | करते हैं। किन्तु यह उपाख्यान अधिक प्राचीन जमा ह.आ था। फिर गयासुर जिसी नगर वा ग्रामको गये, नहीं मालूम पड़ता। महाभारतम गयाक्षेत्र मध्यस्थ अनिक प्राणिगण चतुर्भुज बनने लगे। उस समय दं वतामि । तोर्थीका उल्लेख है। किन्तु उसमें गयासुर अथवा उसक असुरकी चालाकी समझी, परन्तु कोई युक्ति ठहरायो जा मस्तक पर गदाधर और अन्यान्य देवगणक पदस्थापन- न सकी। यमको ही चिन्ता अधिक थी । कारण को कोई बात नहीं। महाभारतमें विद्वत हुआ है कि गयासुरका शरीर पवित्र होने पीछे कोई पशुपक्षी यमकं । गयामें गयशिर, अक्षयवट, महानदी, धर्मारण्य, ब्रह्मसर, घर नहीं पहुंचा। यम और दूसरे दं वताओंने माथ धेनुकतीर्थ, ग्ध्रवट, उद्यन्त पर्वत, षोमिहार, फला- साथ पितामहके निकट जा करके कहा था-'प्रभो! तीथ , धर्म प्रस्थ, मतङ्गाश्रम और धर्म तीर्थ विद्यमान है। सर्वनाश उपस्थित है। गयासुरका पवित्र शरीर देख फिर वायुपुराणीय गयामाहात्मा तथा अग्निपुराणमें करके ममी व कराठ चले जाता यमपरी एक प्रकारसे जिन स्थानों, तीर्थी वा देवपदी पर पिण्डदानकी कथा प्राणीशून्य है । आप जो हो, कोई उपाय बतला दीजिये। है, महाभारतमें उसका भी कोई उल्लेख नहीं। उसमें ब्रह्मा देवगणको ले करके विष्णुके निकट पहचे। इतना ही लिखा है कि गयामें धर्मराज स्वयं वास करते विष्णुके परामर्श से गयासुरका शरीर यन्नके लिये मांगा और पिनाकपाणि भगवान् शङ्कर निरन्तर सब्रिहित और कई ब्राह्मण कल्पना करके उनसे उसका अनुष्ठान रहते हैं। कराया गया। समस्त देवगण उस यज्ञमें पहुंचे थे। गयाके तीर्थ दर्शनादि मम्बन्धमें नियम बंधा है। गयासुरके शरीर पर ही यज्ञ किया गया। ब्रह्माके त्रिस्थली सेतु पौर गयायात्रा-पतिमें लिखते हैं-निम आदेशसे यमने धर्म शला ले मा करके गयासुरके अपर दिन गयायात्रा करना, पूर्व-पूर्व दिनको एकाहार तथा रख दी और असुरको निश्चल बनानेके लिये सब देवता हविष भोजन करके पोर त्रीसंसर्ग छोड़ शचि भावसे उसके ऊपर चढ़ करके खड़े हुए। किन्तु इससे गया- रहना चाहिये। उसके दूसरे दिन प्रातः खानादि करके सुर निबस म हुथा। पोलेको गदाधर विखुके जा' देशकाल नियमानुसार गयायात्राके मङ्गरूप उपवास