पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२०६

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गया करके सकल्प करते हैं। फिर गयायात्राके दिनको प्रातः मन्त्र पाठ करके नाम किया जाता है। पीछे थाह लत्यादि समापन तथा इष्टपूजादि करने पीछे मस्तक तथा पिण्डदान करके- मुण्डन कराके वंशपरम्परा अनुसार याच किया जाता। "राम राम महावाही देवानामभयदर । है। याबान्तको अपमा ग्राम पांच बार प्रदक्षिणा करके त्यो ममामाव देवेश मम ममतु पातकम् । मन्त्र द्वारा रामको प्रणाम करना चाहिये। फिर यम- मृत पिटपुरुषोंसे अपने साथ गया चलनेका अनुरोध करना चाहिये। राजके निकट प्रार्थना करके यमवलि और कुरवलि गयामाहात्मामें बतलाया है-गयामें आ करके सर्व दिया जाता है। प्रथम मवस्त्र फला, सीर्थ में और फिर ब्रह्मकुण्डमें मान इमो प्रथम दिवसको उत्तरमानम भो जाना और तर्पण किया जाता है। पोछे प्रेत पर्वत पर प्राची- चाहिये। वहां मानस नामक एक सरोवर है। यह नावौती और दक्षिण मुख हो करके निमलिखित मन्त्र गयाका प्रथमतीर्थ ठहरता और मुण्डपृष्ठ पहाड़ पर पड़ता है। यहां- द्वारा पिटलोकको आवाहन और पूजा करके पिण्डदान "उत्तर मानसे मान रोमात्म वशुद्धये। करना चाहिये-- स.य लोकादिम सिद्धिसिरये पितमुभाये॥' "कन्यवालोऽनल: सामो यमय वाय मा तथा । । मान करते हैं। फिर देव प्रभृतिका पनिवाला बषिदः सोमपा: पिटदेवताः । तपंगा करक पिण्डदान और श्राद्ध किया जाता है। वहां भागच्छन्तु महाभागाः युभाभोरचितास्तथा । मनीयाः पितरी येच कुसी माता सनाभ्यः । मौनी हो करके दक्षिणमानसको चलते हैं। उत्तरमानस तेषां पिण्डदानाय पागतोऽमि गयामिमाम् । और उदीची नदीके मध्यम कनखल नामक एक पिट- ते स दृप्तिमायांतु बारेमानेन गाकोम।" मुक्तिदायक तीर्थ है। गयामाहात्मा और अग्निपुराण थाहाथं जल ले करके प्रेतपर्वत पर रखने पीछे मतसे उस तीर्थ में स्नान करने पर पुनर्जन्म लेना नई सुवर्णरेखाशित शिला पर जा पादशौचादि करके पर्व- पड़ता। दर्शित 'कष्यवाल' इत्यादि मन्त्रसे आवाहन करते हैं । विष्णुपद मन्दिरसे थोड़ी दूर पर एक सरोवर और एक फिर गायत्री पाठ करके पञ्चगव्य हारा बाइस्थान शोधन सूर्य मन्दिर है । गयामाहात्मामें वहा सूर्य मूति मौनार्क किया जाता है। इसके पीछे प्रेतपर्व तमें श्राद्ध वा पिण्ड नामसे वर्णित हुई है। इस मन्दिरका नाटमण्डप दान करके पिटगणके और अपने प्रेतत्वको मुक्तिकामनासे देय में २८ फुट और प्रस्थमें साढ़े २५ फुट निकलेगा। मल्प करके तिलमिश्रित सत्त और तिल अञ्जलि इसके पश्चिमांशमें गर्भगृह है। वह प्रायः ८ वर्गफीट प्रमाण दान करना चाहिये। प्रायः ४०० सिट्टियां चढ़ने पड़ता है। मन्दिरका प्राचोर इष्टकनिर्मित है, परन्तु पीछे प्रेतशिला पर पहुंचते हैं। यहां पादशोच सकल्प स्तम्भ पत्थरके लगे है । अरुणचालित सप्ताखरथ पर करके 'कव्यवाल' इत्यादि मन्बसे आवाहन और उनका | दिहस्त सूर्य मूर्ति विराजमान है । उक्त सरोवर भो चारों बाद तथा पिण्डदान मात्र करते हैं। फिर प्रतशिलाके मोरों प्राचीरवेष्ठित है । वह देय में २८२ और प्रस्थमें नीचे प्रभासपर्वतमें सङ्गत महानदीके रामतीर्थ को जाना | १५६ फुट बैठता है। सरोवरसे पश्चिम नीमका एक पेड़ चाहिये। महाभारतमें इस रामतीर्थ का उल्लेख न होते है। इस स्थानको लोग कनखल कहते हैं। उससे दक्षिण भी महानदोकी बात लिखी है। इसके मतानुसार महा दचिणमानस है। यहां भी तीन तीर्थ विद्यमान ।स नदीम मान करके पिटलोक तथा देवगणका तर्पण | सरोवरमें- करनेसे अक्षयलोक लाभ और निज कुल उबार होता है। "दिवाकर कोमोह साम दधिषमानसे । (म ८४. ) गयामाहामा मतमें वहां नमामि म य बता पिता तारणाय च । "जन्मानरमात साय' यमया दुखत तम्। पुस्पीच पर्यायायुरोग्बाये।" तनम विलय यातु रामतीमाभिमान मन्बहारा मान तथा पूजा करके या पौर पिण्डदान