पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२०८

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२.६ गया 'वान श्यामनी व वसकुल हुयी। विष्णुपदमन्दिरका कार्य शेष करकं यात्रो नाटमन्दिर नाभा ज पटाप्यामि भापयि मादा। छोड़ किमो स्थानमें पहचत, जहां ब्रह्मपद, कद्रपट, दति है। पोक निम्नलिखित मन्त्रमे काकवलि देकर मान णाग्निपद, गाई पत्यपद. पाहवणीयपद, सभ्यपद, श्राव करना चाहिये . मख्यपद, अकाद, फाति केयपद, इन्द्रपट, अगम्तापद, वारुणवायव्यगाम।। वनसतात छ।। वा-मा. प्रतियन्त भूमाया मान झितम ॥" काश्यपपद, गजकण पद प्रभृति पद मिन्नत हैं। एतद्- चतुर्थ दिवम फल्ना तीथ में स्नान करके गयागीर्ष | व्यतीत दधीचिपद, चन्द्रपद, मातङ्गपद, कर्णपद, क्रौञ्च- पर विष्णुपदको यात्रा करते हैं । विष्णुपदका मन्दिर हो पद इत्यादि १८ पदों पर श्राद्ध तथा पिगडदान करनका गया मध्य मर्व प्रधान है। इनके नाटमन्दिरका काम- विधान है। आजकल बहतम लोग उक्त पकि मध्य कार्य अति सुन्दर लगता है। गया ग्रामके मध्य एमा काम- कंवन्न रुद्रपद और विषणुपद पर ही गिगड दिया करते कार्य तथा गठनप्रणाली अन्य किमो मन्दिरम देख नहीं हैं। गयामाहात्माम लिखा है कि एकतम पदमें थाड करनमे भी यजमानका मङ्गल होता है। पड़ती। महाराष्ट्र गनो अहल्या बाईन यह मप्रमिड पत्रम दिवमको गटालोलतीर्थ में मान करक थान मन्दिर निर्माण करा दिया । इम मन्दिरको निर्माण करने पार पिण्डदान करना चाहियं । फिर मचम पोक अक्षय में प्रायः ८ लाख रुपया व्यय हुआ था । मन्दिर धमरवण वट पहचते हैं। महाभारतमें लिखा है कि राजर्षि ग्रेनाइट प्रस्तरनिमित है। मगडप ५८ फुट चतुरस्र गयकं यजकालकी एक वृत्त चिरजीव हा, जिमका पड़ता है। प्रत्येक कोगमें आठ आठ खम्भ लग है। नाम अक्षयवट है। (टीप १६०) गयामाहात्माक मूलम्थान बज जैमा अटकोना है। उमका विस्तार कोई मतमें वहां पिट उद्देशम जो कुछ भी दिया जाता, अक्षय ३८ फुट बैठेगा । इमक ऊपर ८० फुट ऊंची चडा है। फल पहुंचाता है। माटमन्दिरक मध्यमें मूलमन्दिरके मामन नपान मन्त्री रणजित् पाड़े की दी हुई एक बड़ी घण्टा लटकती है। गयामाहात्मा अनमार हो यह तोथ यात्रा कथा लिखो गया है। डमको छोड़ करके गया के बीच गाय- उमका निनाद, यात्रियोंका जयध्वनि और ब्राह्मणांका त्रीतीर्थ, भमुदिततीथ , .मरम्वतीतीर्थ, विशाला नदो, गभीर मन्त्रपाठ श्रवण करनमे मनमें स्वत: भक्ति मञ्चार होता है। यहां लोगोंकी जितनी भीड़ रहती, गयामें लेलिहान तीथ , भरताथम, वैतरणी नटा, घृतकुल्या तथा मधुकुल्या, कोटितीर्थ , रुक्मिगीतोथ , पागड शिला, मधु और कहीं भी देख नहीं पड़ती। रमी मन्दिरम हिन्दी के पाराधा गदाधरका पादपद्म है। पादपद्मको चारी | थवानदी, कर्दमालतीथ, आकाशगङ्गा, स्वग हार, योनि पोरां रौप्यमगिडत है। इसी स्थान यात्री लोग पिगडदान | हार, ब्रह्मयोनि, धौतपाद, माहेश्वरीतीर्थ, दं वदारुवन, दं वीरूपा शला, धर्म शिला वा धम प्रम्य और मण्डपृष्ठा- करते हैं। उनको फंकत ही पिङ्गलवर्णको गाये खा ट्रिका भी उल्लख है। फिर आधुनिक गयायात्रा-पडति- मालतो हैं गयामाहात्माके मतम वहीं गयासुरका में रामशिला, रामगया, जीव्यालोल, रामशिर, तामशिर, माक्षात् मम्तक विन्यस्त है, वही गयासुरका मुख्य स्थान मातशिर, भीमगया प्रभृतिका भी नाम मिलता है। आज-. है। वहां थाड करनेसे अक्षय पुण्य पाते हैं। आदिगदा- धर पिटगणको मुक्तिक हतु व्यक्त तथा अव्यक्त रूपम कल जो लोग गयास्थ ४५ वैदियां प्रर्यटन करना चाहते, विण पदकी भांति धाम करते हैं। वहां थाड और १३ दिनमें सब तोर्थीका स्नान दर्शन कर सकते हैं। पिण्डदान करनमे अपने आप और महस्रकुल विष्ण,- गमाशन्ना पर्वत पर महादव तथा पार्वतीका लोक पहचतं हैं। मन्दिर और नाटमन्दिर है। इसी पहाड़क घाददे शमें विणुपद मन्दिरके निकट गय ज्वरोद वीका एक रामकुगड अवस्थित है। गया मध्य फला नदीक तट प्रमिद्ध मन्दिर है। माधारण लोग उन्हींको गयाको पर मुंडपृष्ठ नामक एक छोटा पर्वत है। उनके ऊपर अधिष्ठात्री देवी मानते हैं। किमो मन्दिरमें अष्टभुजा देवोमूति.विराज रही है।