पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२१०

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गया-गयालो प्रमाण, एक हो आमलको प्रमाण अथवा अन्तत: एक। भिक्षुको गयाम पिंडदान न करके दंड प्रदश न करना (छुद्र ) शमीपत्र प्रमाण भी पिण्ड देना चाहिये। यहां चाहिये । दण्डहारा विष्णुपद म.र्श करनेसे ही वह पिटपिण्डप्रदान करनेमे पिता, मातामह, श्वशुर, भगिनीपति, लोककै माथ शान्तिप्राप्त होता है। शामाता, पिष्वम्पति आर मादृष्यसपतिसप्तगोत्रका गयाकाश्यप-शाक्यमिहका एक प्रधान शिष्य। गयामे पडदार होता है। इसमें पिता तथा मातामह के बीम, इन्होंने बडदेवसे दीक्षा पाई थी। मशरके पाठ, भगिनोक चौदह, जामाता मोलह, पिट-. गयादाम---एक वैद्यक ग्रन्थकार। भावमिश्र और वैद्य चस्पतिके ग्यारह और माटष्वस्पतिर्क बारह -१०१ वाचम्पतिन इनका मत उद्धत किया है। बुलजात लोग मुक्त होते हैं । गयादीन-रामगीतगोविन्द नामक संस्कृत काव्यप्रणेता। ! गया स्त्री पुरुषको एक योगमे पिण्डदान करनेका | गयारी (हिं. स्त्री०) विसी गृहस्थ को वह जोत जिसे वह नियम नहीं है - लावारिम छोड़ कर मर गया हो। _ "गोव १ गोव वा दम्पत्योः पिणासनम् । गयाल (हिं० पु०) वह सम्पत्ति जिमका कोई उत्तराधिकारी पृथक निफन' साज दिखचादर कम" न हो। । यहां स्त्री पुरुषकै एकयोगम स्वगोत्रीय वा भिन्न गयाली-गयावामी ब्राह्मण जाति । तीर्थ यात्रियोंको गोषीय मृत व्यक्तिक उद्देशमें पिडप्रदान वा तपंण करना | पिटपुरुषका पिड दिलाना और थाद्धादि क्रिया कराना भिष्फल होता है। इन्हींका प्रधान कर्तव्य है। प्रवाद है कि गयासुरके गरुड़ पुराण मतमें पृष्ठ पर ब्राह्मण भोजन करानके लिये पद्मयोनि ब्रह्मान "तोथ माह गया वाह वाहमन्य च पहियाम् । चौदह ब्राह्मणों की मुष्टि की थी। उन्हीं ब्राह्मणांसे इन अम्दमध्यन को न महागकमिपातमे ॥ नोगोंको उत्पत्ति है। इनमें चौदह गोत्र हैं। तीर्थ थाड, गयाथाद्ध और कोई भी दूमरा थाड महा __ आजकल इनके कुल ३०० घर हैं। इन लोगोंमसे गुवनिपात हानक एक वर्ष मध्य करना न चाहिये। बहुत थोड़े पढ़े लिखे हैं। यात्रियोंसे रुपया वमून करना किन्तु विस्थलोमतुको देखत- . इनका मुख्य कार्य है। ये वाल्यावस्थामे ही अपना "वस्थिप गयाबाई याद चापरप निकम् । प्रथमान्देऽपि कुयो त यदि म्याइक्तिमान् सप्तः। समय बैठ कर हो वातीस करते हैं। पान, गांजा और फिर भी पुत्र यथार्थ भक्तिमान् होनसे अस्थित्नप, भांग प्रभृति मादक बस्तुओंमें इन्हें बड़ो प्राति है। ये नाच, गान, तमाशा, तास और पाशा प्रभृति खेल बड़े गयात्रा और अपरपक्षथाइ एक वर्ष के बीच हो कर सकता है। आनन्दमे खेलते हैं। बड़े भाईकै साथ आमोद प्रमोद मंचायणीय परिशिष्टमें लिखा है करनमें इन्हें जरा भी लज्जा नहीं आती है। सन्धया "भाग्यटक्य ग्याप्राप्ती मन्या यच्च पयामि। समय ये बन्धुबान्धवोंके माथ वायु सेवनके लिये बाहर मातुः प्राड मुत: कुर्थात पिता पिच मोति। जाया करते हैं। अर्थात् पिता जीवित रहते भी पुत्र माताका श्राद्ध ___ बाल्यावस्थामें ही इन लोगोंको शादी होती है। विवागयामें कर सकता है। किन्तु हारीतके हमें इनका बहुत वाय होता है। लड़का एक सुन्दर .. जोवे पितरि पुत: बादाय वि१येत्।" पालको पर बिठाया जाता और प्रात्मीय स्त्रीयां झेड पचनानुमार जीवपिटका थाइमें कोई अधिकार नहीं। बांध कर बारातमें जातो हैं। कन्याके घर पर लडकेको इसी प्रकार भिक्षु वा संन्यामी लोग भी गयामें पिंडदान पहुँचा कर विष्णुमन्दिरके निकट सूर्य कुड मरोवर पर पनहीं सकते। गयामाहात्मा (१२२) के मतमें वे इकठ्ठा होती हैं। यहां वे दो चार ब्राह्मणोंको बठा Mons: T प्रदर्शदेहिचर्ग यो गत्वा न विष्णदः । कर रखती और सोहागिनी (नौवर्षकी विवाहिता लड़की) स्पटा विश्वपद पिभिः सह मोदते ।" पाकर ब्राह्मणोंके पृष्ठ पर अपने हाथसे सिन्दुरका