पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२१५

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गयास-उद-दोन तुगलक रय २१३ इसानोर है। गयाम-उद-दीन्ने ४ माल २ महीने | अमलदारीमें कुछ लोगों ने उनके खिलाफ माजिश की राजत्व किया। थी। गयाम-उद-दीन उनमें मिन्न करके फौजके साथ गयास उद्-दोन तुगलक श्य-दिल्लीके एक बादशाह। ये दिल्लीको रवाना हए। वहां लड़ाई में हारने पर यह वादशाह फिरोज शाह तुगलकके नाती और फते खाँके पुत्र पक: लिये गये। थोड़े दिनों बाद कैदखानमे भाग थे। फिरोजशाहको मृत्य होने पर १३८८ ई०में गयाम करके उन्होंने बहरामको मदद दी थी। बादशाह उद-दीन गद्दी पर बैठे । भोगविलासमें लगे रहने के कारण बहरामके वक्त यह हामी ओर रेवाड़ीके हाकिम मुक- राजकार्य में अवहेला करते थे । इम लिये राज्यके रर हए। इमी वक्ता मेरठका वलवा दबाने से इनकी प्रधान प्रधान मनुष्य और मैन्य मामन्तने विद्रोही हो कर खब नामवरी बढ़ी। अला उद् दोन मुमऊदके जमानमें १३८८ ई०के १८वीं फरवरोको इन्हें मार डाला । यह अमीर हाजबके ओहदे पर बिठलाये गये। फिर इन्होंने सिर्फ वह मास राज्य किया था। इनके शासन नमीर-उद-दीन बादशाहको अमनदारीमें गयास उद- कालके समय मामूद शाह नामक पार्वतीय गजाके दीन कहनेको तो वजीर रहे परम्सु बादशाहका मभी माथ इन्हें युद्ध करना पड़ा था। काम इन्हींको करना पड़ता था। नमोर-उद-दीनके गयाम-उद-दीन् बलबन-किमो तुर्को सामन्तके पुत्र। कोई लड़का न रहनमे यह अपना बलजन नाम रख मगम्लों ने उन्हें लडकपनमें चुरा करके बेच डाला था। करके १२६६ ई.के फरवरी महीने दिलीके तख्त पर फिर यह बगदाद पह'चे और वहांसे दिल्ली लाये गय । बैठ गये। उस वक्त बहुतमे तुर्की गुलामनि उमराष दिल्लीके बादशाह अलतमासने इन्हें बडी कीमतम बन करके मलतनतके बड़े बड़े ओहदे दबाये थे। गयास- खरीदा था। मिनहाज-उम्-सराज ज़रजानो नामक उद-दीन अपने पाप गुलामौमे बादशाहो पर पहुंचे थे। किमी मुमलमानन उन्हींको अमलदारीमें 'तबकात फिर यह इम कोशिशमें लगे, उन्हीं की तरह कोई दूसरा इ-नासर्ग' नामक इतिहासको रचना किया। इस इ.- तुर्क तखत पर न बैठ जाय और उन्ही के घरानमें बाद- हाममें बादशाहको अमलदारीके पहले हिस्से का ज्यादा शाही बनी रहे। पहले इन्होंने तुर्की उमरावोंको बर्बाद हाल लिखा है। इन्होंने मम्राट को उलग खाँ नाममे करकं फोजी महकमा मजबूत कर लिया था। उसके अभिहित किया है। मनहाजका मृत्य हो जानसे पीछे यह जासूमोको रख करके चुपके चुपके अहलकारों - उनक ग्रन्थमं परवतों कालका वृत्तान्त लिपिबद्ध नही' का हाल मगाने लगे, जिससे राजधानीको छोड़ करके हुमा। पिछले वक्तकी बाते जिया-उद-दोन बरनीकी ज्यादा कहीं जा पा न मके। थोडे दिनों मे ही बनायो इई 'तारीग्व फीरोजशाही' में आ गयी हैं। इम हुकूमत करके पोछेको वह तमी बातों में इन्होंने सखा- किताबमें बादशाहको तारीफ ही ज्यादा है, बुराईका वत दिखलायी थी। खानदानकी इज्जतका इन्हें बड़ा कोई जिक्र नहीं। दूसरी तारीखों से यह समझा जा खयाल था, परन्तु हिन्दुओं का एतबार न करते थे। सकता है। सनर्नमें आता कि बादशाह अन्न्तमामने गयास-उद-दीन हिन्दुओं को कोई बड़ा काम न मौंपते पहले पहल उन्हें खरीद करके बाज चिड़िय का महा थे। यह आलिमों की बड़ी इज्जत करते और उसीने फिज बनाया था। इनके एक भाई उम वक्त शाही इनके दरबारमें बह तमे आलिम फाजिल मौजद रहते नियाकै एक ऊचे ओहदे पर रौनक-अफरोज थे। उन्हों- थे। इतिहाम-लेखक फरिश्ता कहते कि उनके वक्त दर- की मदमे गयास-उद-दीनन ऊचा अमीर दरजा पाया बारमें बडी चहल पहल रही। बादशाहको देखादेखी था। अलतमाम के लड़के रुत उद दीनकी अमलदारीमें। बह से उनकी नकल करते थे। गयास-उद-दीन पहले यह पचाबके एक हाकिम मुकरर ह ए और थोड़े दिन शराब पीते थे, परन्तु तख्त पर बैठते ही इन्होंने उमको बौछे दिल्लीको मातहती न मान करके अपने नामसे ही छोड़ दिया। उस वक्त शराब पीनेवालेको कड़ी सजा पञ्चाव पर हुकूमत करते रहे। सुलताना रजियाकी . मिलती थी मल्फमें कोई शराब बनाने न पलाया। Vol. VI. 54