पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२२१

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गरी-गरुड़ गरी (सं० स्त्री०) ग-अच्-डीप । १ देवताबक्ष । करके किसी पलाशपत्रका वृन्त उठाये लिये जाते थे। २ खरा जिससे घर छाना जाता है। इन्द्र पथिमधा उनका उपहास और अषमानना करके गरो (६० स्त्री० ) नारियल फलके भीतरका गुद्दा । यह शीघ्र ही चल दिए। इस पर बालखिल्य मनि अन्तरमें नरम और स्वादिष्ट होता है। अत्यन्त क्रुद्ध हो करके देवराजके भयप्रदर्शनार्थ अन्य गरीब (अ.वि.) १ नम्र, दोन, हीन । २ दरिद्र, निर्धन, व्यक्तिको इन्द्र बनाने के लिये एकान्त यत्र करने लगे। अकिंचन कंगाल। यह समझने पर इन्द्र अत्यन्त मन्तप्तचित्त हो करके कश्यप- गरीबमियाज (फा०वि०) दोनों पर दया करनेवाला, के शरणापन हए । प्रजापति कश्यपन इन्द्रकी वह बात दुःखियोंका दुः' दूर करनेवाला, दयालु । सुन बालखिल्योंकि निकट जा करके कर्ममितिका विषय गरोबपरवर ( फा० वि०) गरोवो को पालनेवाला, दीन, पूछा था। सत्यवादी बालखिल्यान महात्मा कश्यपको प्रतिपालक । प्रत्त्य त्तर दे दिया । उम समय कश्यपने उनको मान्त्वना गरीबाना ( फा०वि० ) गरीवों की तरहका । पूर्वक कहा था --'देखो, ब्रह्माकै नियोगमे यह इन्द्र हुए गरीबामऊ ( हिं० वि० ) गरीबों के योग्य, छोटा मोटा, हैं। आप लोग भी तपस्था करके अन्य इन्ट्रके निमित्त भन्ता बुरा यत्न कर रहे हैं। आप मज्जन हैं, इस लिये ब्रह्माके गरीवी (अ. स्त्री. ) १ दीनता, अधीनता, नम्रता । वाक्यमें अन्यथा करनके योग्य नहीं। फिर आपका भी २ दरिद्रता, निर्धनता, कंगाली। मङ्कल्प मिथ्या नहीं जा मकता । आप लोगों में यह पति गरोयम (सं० पु०) अतिशयेन गुरुः गुरु इयसुन् गगदे. थों के इन्द्र बने । देवराज आप लोगों से याचा करते हैं। शश्च । १ अतिशय गुरु, अत्यन्त भारी। २ प्रतिगौरवा आप भी इनके प्रति प्रसन्न हो।' दम पर बालखिल्य न्वित, वह जिसका बहत मान हो । ३ मर्यादामम्पन्न, बोल उठे-'हमने आपक मन्तान निमित्त मङ्गल्प करके प्रतिष्ठित मनुष्य, इज्जतदार आदमी। इस कार्यका अनुशान प्रारम्भ किया है। आप वही गरीयमी ( मं० स्त्रो०) गरीयम् स्त्रिया डीप । १ अत्यन्त कीजिये, जिसमें मङ्गल हो।' इसी समय दक्षकन्या विनता- भारोपन । २ अतिमाननीया, वह जिसका ममान बहुत देवीने पुत्रक निमित्त अभिलाष करके अपने स्वामीक होता हो। ३ अतिगोरवान्वित ।। निकट आगमन किया था। कश्यप उनमे कहने लग---- ___"जननी जन्म, ५ वर्मा कपि गर यना । (माया है देवि ! तुम्हारा यह अभिलाष सिद्ध होगा। तुम त्रिभुबन- गराई (हिं. स्त्री० ) गुरुता, भारीपन । के प्रभुत्वमम्पन्न दो पुत्रों को प्रसव करोगी। बालखिल्यों- गरुड ( सं० पु०) गरुभ्यां पक्षाभ्यां यते रति, पी.3, भोर में की तपस्या और मेरे मङ्गल्प हाग तुम्हारे दोनों पुत्र पृषोदरादित्वात् तल्लोपः । विनताकै गर्भजात कश्यपात्मज पक्षियों का इन्ट्रत्व करेंगे। फिर विनता मफलकाम हो पक्षिराज । (राम ।। १.२६०) इनका नामान्तर-गकत्वान् करक इष्टचित्त हो गयों और यथाकाल अरुगा तथा गरुड़ ताक्ष्य , वनतेय, खगेश्वर, नागान्तक, विष्णु रथ, सुपर्ण, | नामक दो पुत्रों को प्रसव किया। अरुण विकलाङ्ग हो पत्रगाशन, महावीर, पक्षिसिंह, उरगाशन, शाल्मली, करके जन्मग्रहण पूर्वक सूर्य देवके मम्म ख अवस्थित हरिवाहन, अमृताचरण, नागाशन, शाल्मलीस्थ, खगेन्द्र, रहे । गरुड़ पक्षियों के इन्द्रत्व पद पर अभिषिक्त हुए। भुजगान्तक, तरखो और ताय नायक है। महातेजस्खो गरुड़ने स्वयं अण्ड विदोण करके जन्म- कश्यपने पुत्रच्छ हो करके यज्ञ प्रारम्भ किया। ग्रहण किया था। जन्मकालको इनका रूप-अग्निगशि- उन्होंने इन्द्र, बालखिल्य और अन्यान्य देवताओंको की भांति प्रभामम्पन्न, अतिशय भयङ्कर, प्रलयकालक यत्रीय काष्ठ लानमें लगाया था। इन्द्र अपने बलवीयक अग्नि-जमा प्रदीप्त, विद्युत्को तरह पिङ्गलवणे चक्षु- अनुरूप पवतप्रमाण काष्ठराशि उत्तोलन करके अनायास विशिष्ट, ममुद्राग्नि मदृश घोरतर उग्र, धीर स्वरविशिष्ट पहचाने लगे। अछ-प्रमामा बालखिख ऋषि सब मिल' और महाकाय था।