पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२२२

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गरुड़गामी-गाड़पुराण गरुड़के विष्णुवाहन होनकी कथा महाभारतमें इस । को एक नदी। यह कल्पकुरचि तालुकमें विगल सरो- प्रकार लिखी है-पक्षिराज अमृत ले करके निकले थे। वर नामक स्थानसे निकल कर ममता नदोके साथ मिल गरूड़क माथ गहमें विष्णु भी रह। नारायणने उनके | गई है और ३० कोस जाकर बनीपसागरमें गिरी है । प्रति तुष्ट हो करक फहा-मैं तुमको वर दूंगा। गरुड़न नदीका तलदेश अत्यन्त वालुकामय है। उत्तरमें मांग लिया- मैं आकाशगामो हो करके आपके | गरुड़पाश (मं० पु. ) एक प्रकारका फन्दा या फांसी। उपरिभागमें रह और अमृत व्यतिरेक भी अजर अमर इसे प्राचीन कालमें शत्रुको फैमाने ओर बांधनेके लिये बन्। विष्णुन विनतापुत्रको 'तथास्तु' कह करके वहो | उस पर फेंकते थे । वर दिया था। गरुड़ने उक्त वर ग्रहण करके विष्णु को | गरुडपुराण (सं० क्लो०) गरुड़ाय उक्त विष्णु ना पुराणम्, कहा-मैं भी आपको पर दूगा, ग्रहण कीजिये । विषा ने मध्यपदम्तो० । अष्टादश पुराणान्तर्गत सप्तदश महा- महावल गाडमे मांगा था--आप में वाहन बन और पुराण। भगवान् गरुड़ासनने यह पुराण गरुड़से कहा ध्वज पर रह कर मेर उपरिभागमें अवस्थिति करें। । था। इसमें १८००० श्लोक हैं। यह पुराण तार्य कल्प- ___ गरुड़ स्वीय पदनसमें गज तथा कच्छप और चञ्च - को कथा अवलम्बनसे वर्णित हुआ है। इसमें नोचे पुटमें महावटवृक्ष धारण करके आकाशमार्ग में उड़े थे। लिखा-जैसा विवरण है-सूतनैमिषीय-संवादमें सूतको अमृतक लिये देवताकि माथ इनका घोरतर युद्ध हुआ गरुडपुराणकथनजिज्ञासा, गरुडपुराणको उत्पत्तिकथा, उममें इन्होंन जय लाभ किया था। (महाभारत, पादपर्व) रुद्रविष्णु मंवादमें सृष्टिकथन, प्रजापतिमृष्टि, कश्यपक्कत २ व्य हविशेष । (मन ॥१८०) ३ विंशति प्रकार प्रासादो सृष्टि, सूर्यादिपूजाकथन, विष्णु पूजाकथन, दीक्षाविधि, के मध्य कोई प्रामाद, किमी किस्मकी बड़ी इमारत । लक्ष्मीपूजा, नवव्य हाचन, पूजाक्रम, विष्ण पञ्जरकथन, (सकतम हिता ५६।२४) संक्षेपमें योगोपदेश, विषण सहस्रनाम, विषण ध्यान तथा ४ जैनमतानुमार स्वर्ग के इन्द्रक विमानांमेंसे ३५वा थन, मृत्यु अयपूजा, गारुडविद्या, शिवोक्त विमान। ५ एक जातिकं देव। इनको १६० देवियां सर्प मन्त्र, पञ्चवक्त्रपूजा, शिवपूजा, गाणपत्यादि पूजा, ( स्त्रो ) होती हैं। पादुकापूजा, करन्यासादि कथन, विषहरण, गोपालपूजा, गरुड़गामी (मं. पु० ) १ विष्णु। २ योकषण । शोधरादिमन्त्रकथन, विष्णु पूजाका प्रकारान्तर, पञ्चत गरुड़गिरि-एक गिरि-शृङ्ग । यह महिसूर राज्यमें कादुर त्त्वाचन, सुदर्शनपूजादि, हयग्रीवपूजा, गायत्रोमाहात्मा, जिलान्तर्गत अक्षा० १३. २८ उ० और देशा० ७६ दुधोकर घाममें मखान्तरमें सूर्य पूजा, महेश्वरपूजा, १७ पूछमें अवस्थित है। नानावि बरतनपवित्रारोहण, विष्णुपवित्रारोहण, गरुड़घण्टा ( हि पु० ) ठाकुरजीको पूजामें बजाया मूर्तामूर्तध्यान, शालग्रामलक्षण, वास्तुनिर्ण य, प्रासाद जानवाला एक घण्टा । एमके अपर गरुड़की मूर्ति बनो लक्षण, देवप्रतिष्ठाकथन, योगधर्मादि, आङ्गिकनिणय, रहती है। दानधर्म, प्रायश्चित्तविधि, अष्टनिधिकथन, प्रियव्रतवंश- गरुड़ध्वज ( मं० पु० ) गरुड़ो ध्वजो यस्य, बहुव्री० । १ वर्णनमें सामहीपादि वर्णन, भूसंस्थानकथन तथा भारत वर्षका विवरण, लक्षदीपके राजपुत्रादिका नामकीर्तन, "बालस्य यतो पाम समगाद गामा: ॥" (भागवत ३।४।२६) मप्त पाताल और नरकवर्णन, सूर्यादिके प्रमाण और २ एक प्रकारका स्तंभ जिस पर गरुडको आकति संस्थानका वर्णन, ज्योतिःसार कौत नमें नक्षत्राधिप बनो रहती है। और योगिनो प्रतिका वर्णन, दशादि विचार, चन्द्र ३ जैममतानुसार प्रथम णोके विद्याधरों से एक। राहयादि, लग्नमान, चरस्थिरादि भेदसे कार्य विशेष ४ गरुड़कुमार। की कत व्याकर्तव्यताका कथन, संक्षेपमें पुरुषों पौर नारि गाड़ नदी-मन्द्राज प्रदेशके अन्तर्गत दक्षिण पर्काट जिला योका शुभाशुभ लक्षण, सामुद्रिक लक्षण, पालग्रामशिला- विष्णु।