पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२२४

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२२२ गरुड़लत-गरुडासन तत्त्वकथा, प्रेतत्वनाशक कर्म कथन, आतुर मुमुषु का मिथस्त निकै शिष्ट शिष्टावाटको तथा। दानकाय, यमनगरपथकथा, याम्यपुरादि गमनावस्था. मध्यमानामिकाय तु दो पचामिव जलयेत् । यममाग निष्क तिकथन, चित्रगापरगमनकीर्तन, प्रेतका एषा गवरमुद्रा स्याद् वियोः सन्तोषवहिनौ । (सन्त्रमार) गरुड़यान ( मं० पु०) विषण , श्रीकृषण । वामस्थाननिण य, प्रेतका लक्षण, प्रेतमुक्तिका उपाय गरुडरुत ( मं० लो०) गरुडस्य रुतमिव । १ छन्दोविशेष । प्रकारान्तरम, पञ्चतका उपाख्यान, प्रेतस्वरूप निरूपण, "मरुता नजा भजनगा यदा यदा " ( केन्दोमन) मनुष्यों का आयुनिरूपण, बालकों का पिगडदानादि, एमके प्रत्येक चरणमें नगण, जगण, भगण, जगण शशव आदि भेदी में कुमारकालमे कर्तव्यका उपदेश, और तगण तथा अन्तमें एक गुरु होता है : गरुडस्य कत: मपिण्डीकरणविधि. विशेष ज्ञानार्थ नारायणके प्रति ६-तत्। २ गरुड़का शब्द। गरुडको जिजामा, श्रीध्व देहिक क्रियाकथन, दानविधि, गाडवेगा ( मं० स्त्री. ) गरुडस्य, वैग व वेग उत्पत्तो दानमाहात्मयादि, जोवोत्पत्तिकथन, यमनोकका विस्ता. अस्याः । लताविशेष। रादि, युगभेदसे धर्म कार्य की व्यवस्था. दाहकारियों "वोधयो वागही ज्योतिष्मतीच गरुड वेगा: (त्स० ५४.८७) और मगोत्रों के प्रत कर्तव्योपदेश, अशीचा 'द निरूपण, गरुड़व्यूह (मं० पु०) गरुड़ इव आकारण व्यूहः। गरुड़ा मपिगडोकरामें विशेषांवधि और शवविधि, अनशनादि कति मन्चरचनाविशेष । इसमें सेनाका मध्यभाग हारा मरगाका फल, जलकुम्भप्रदानादि, अल्पघातमे मृत अधिक विम्त त तथा आगे और पीछेका भाग पतला व्यक्तियोको गति र उद्दारका उपाय, कार्तिकादिमें होता है। गरुर दे। वृषो मर्ग का विधान, पूर्वक्त कर्म के कर्ताका अनुबन्धित्व गरुड़शालि (मं० पु०) स्वनामख्यात शानिधान्यविशेष, कथन, विशेष दानका प्रकार, जलाग्निबन्धनभ्रष्टीका पक्षिराज धान। प्रायश्चित्तकथन, आत्मघातीका बाडा'द निषेध, वार्षिक गाड़ शिला--कुमाऊ प्रदेशस्थ हिमालय पहाडके निकट थाहादि, पापभेदमें चिङ्गभेद तथा जन्मभेदकथन, मृतक वदरीनाथ तीथ के वैषणवक्षेत्रके अन्तर्गत १२ मिम प्रति अनुताप और मोक्षका उपाय । एक क्षेत्र । गरुड़लत (मं० पु०) नृत्यमें एक प्रकारका भाव । समर्म | गरुड़ाग्रज (मं० पु० ) गरुडस्य अग्रजः । विनताके ज्येष्ठ हाथीको लताक जैसे और पर्गको बिच्छ के जैसे विस्टत कर छाती ऊपरको पोर उभारते हैं। पुत्र अरुण । ये मूर्य के मारथी हैं। "विनता चाविमिद्धार्था वभव मदिना तथा। गरुड्भक (मं. पु. ) मम्प्रदायविशेष । यह गरुड़की मामाम पुत्री हायण"नक सथा।" (भारत ११३१२९) उपामना करते हैं। ईमार्क जन्मके पूर्व यह मम्प्रदाय भारत गरुडाडिन्त ( मं० को०) गरुड़ इव अङ्गितम् । मरकत वषमें प्रर्चालत था। मणि। गरुड़मम्ब (मं० पु.) गरुड़स्य मन्त्रः, ६-तत्। गाड़ गफडाचल-मन्द्राज प्रदेशमें राजमहेन्द्र सरकारके अन्तर्गत देवस मन्त्रविशेष। एक पर्वत। "मम्मको मत्युम: पामार ऽग्रिसुन्दरी । गरुड़ाश्मान् ( सं० पु० ) गरुड़ वर्ण इव वर्ण वान अश्मा गारही मनास विषयावनाशनः। प्रस्तरः । मरकतमणि। स्मन् गरुडमामा मनमनपनरः । विषमा-नाचन गेवर-गाना...: क:।" गरुडामन ( मं० ली.) अामन वशेष । मन्त्र यथा-कित को म्व २५ । शव मार ) इम मन्त्रसे विष "रुसमन्म नो येन ध्यान स्थिग भुवि । नष्ट होता एवं मर्प का भय जाता रहता है। मदाबाद विनिमक' भवतोड महावली ॥ एकपाटमरी महा पाई-दक गरुडमुद्रा (मं. स्त्री०) विष्ण पूजाका अङ्गभूत-मुद्रा- महापासविदेश जान्योरय म्यवस्थितम् । (रुद्रयामन) विशेष। ". सोम विमुचा रग्रिन्या कनिष्ठ । अर्थात् एक पर छातो पर रख कर दूसरा पैर दण्ड-