पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२२५

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गरुडाहत-गरेगै २२३. के जैसा रखते हैं, तत्पश्चात् जहा ओर पाद के सन्धिस्थान : प्रथा प्रचलित है। ये शवका जलात हैं । ब्राह्मणों के पर जानुका अग्रभाग स्थिरभावमे स्थापित किया जाता जैसे ये भी थाड कर्म करते हैं। जब गादाम किमी है। इमोको गरुडामन कहते हैं। तरहका अपराध करता है तो उसे पञ्चायतमे दण्ड पकड़ाहत (मं० पु० ) मोमलताभेद। मिलता है। गरुडोत्तोण (म० को०) गरुड़ो वर्णन उत्तीर्णो ऽतिक्रान्तो- | गरुद्योधिन ( म० ए० ) गरुभ्यां पक्षाभ्यां युध्यतीति, ऽनेन । मरकतमणि । युध णिनि। भारतो नामक पक्षो, लावपक्षी। गरुडोपनिषद ( मं० स्त्री० ) अथर्व वेदान्तगत एक उप | गरुयारि---आमामके अन्तर्गत टरङ्ग जिन्नाका एक वन । निषद् । इम वनमे मूल्यवान् शालकाष्ठ लाये जाते हैं। गत (मं० १० गुणाति गदायते वा वेगनेति'।१ पक्ष, गाल ( मं० पु०) गरुड़ ग्य लो वा। गरुड । पख, पर । २ निगरग, गला। ३ भक्षण, भोजन । गरुहर ( हिं० पु०) भारो, बोझ । "मुरम गरुत्वान् पृष्ठे । ( यज १७७२ ) गरूर ( अ० पु०) घमंड, अभिमान । गरुमन (मं. १०) गातः प्रशस्तपता: मन्त्यस्य गरुत्ग रूरत ( अ० पु.) गदर देखो। मतुप । १ गरुड़। गरूगे ( अ० वि० ) घमडी, अभिमानी । ":: . . मां कात्म 'नव पन्न।म।" ( भाग० ८।१८ ११) गरेबान ( फा० पु० ) १ अङ्ग, कुरते आदि कपड़ांको गले २ पक्षिमात्र । ३ इविभक्षक अग्नि। ( नव द १०९३) घरको काट। २ गले परको पट्टो, कालर । गरुदाम-गुजरातमें रहनेवान्नो एक जाति। ये नोच | गरेरना (हिं० क्रि० ) १ घेग्ना। २ छकना, रोकना। जातियोंका पारोदित्य करते और अपने को ब्राह्मण मम- गरेरी ( हिं० स्त्री० ) गराड़ी. घिरनी । झते हैं। लेकिन ब्राह्मण इन्हें कई एक कारणांमे घृणा- गरेरी विहारमें रहनेवाली एक जाति। भेड़ बकरियों- दृष्टिमे देखते हैं। पहना कारगा यह है कि किमी गम- का रग्वना और उनक रूए से कम्बन्न बुनना हो इनको दामने अपने गुरु को लड़कोमे विवाह किया था। रा | उपजीविका है। हम जातिको उत्पत्तिका कोई प्रवाद इन्होंन धदामका पोरो हत्य स्वीकार किया था, ३रा एक या विश ष विवरण नहीं मिलता। मिर्फ इतना ही यज्ञमें इन्हीनि यजपशु ग्वाया था ओर ४ था -ये ब्राह्मण मारूम पड़ता है कि वह पथिम अञ्चलमे गये हैं। यह पुरोहितकं वंशज हैं। उन्होंकी उपाधि देव, जोशी, ग्वालों के माथ व्यञ्जन आदि ग्वाने में कोई बुगई नहीं नागर, थोमालो ओर शकुल है। कोई कोई राजपूतको ममझत। मम्भवतः यह ग्वाला जातिको एक शाखा है। उपाधि गोहन योर गन्धोय धारण किये हए हैं। इनमेंसे रहीं कहीं इन्हें 'गदारिया' और कहीं कहीं भेडिहर थोड़ खेतोबारी कर और थोड़े कपड़ा बुन कर अपनी कहते हैं। गा र देवा। जोविकानिव' करत हैं। ये बहुत थोड़े पढ़ लिखे विहारमें इनकी चार थणियां हैं . धनगड फर- हैं। ये अपने लड़कों को स्क ल पढ़न नहीं भेजते वरं घर खाबादी, गङ्गाजली और निकर। धनगढ़ामें चंदेल, परही थोड़ी बल मंस्कृनको शिक्षा देते हैं। ये राम, चौधरिया, काश्यप और नानकर ४ गोत्र हते है यह तुलमोवृत तया देवीको पूजा करते हैं। इनमेंमे बहुत अपने गोत्रमें विवाह नहीं करते । दूमरो यगियोंके रामानन्दो ओर परिनामो मंप्रदायक अनुयायी हैं। भूत गगरी 'ममेरा' 'चचेग' आदि ६ पुरुषांक बीच कन्यापुत्र- प्रेतोंमें इन्हें अधिक विश्वास है। चन्द्रमा और सूर्यको का विवाह करन हिचकिचात हैं। इनमें कम्बलिया, भी य अचना करते हैं। जन्म उपलक्षम ये किमी तरह कम्मलो, मरार और गवत ४ पदवियां चलती हैं। का उत्सव नहीं मनाते हैं। ब्राह्मणों को नाई ये भी लड़कपनमें ही इनका विवाह हो जाता है। स्त्री अपन लड़केक अ या नौ वर्ष की अवस्थामें यज्ञोपवीत वन्धधा होनसे पुरुष फिर विवाह कर मकत हैं। गरो- देते हैं। इनमें यानविवाह तथा विधवाविवाहको रियोंमें विधगविवाह प्रचलित है। स्वामांक शपथ