पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२२९

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गत्य-गदंभ २२७ गयं ( म० त्रि०) गतमहं ति यत्। गत विशिष्ट देश । गलेके नीचे तक चले जाते हैं। फिर ऐमी ही दूसरी वह देश जिसके चारों ओर खाई हो। धारो सरमे पूछ तक पड़ती है। गर्द ( फा० स्त्री० ) धूल, राख, खाक । गधका रङ्ग यदि ज्यादा मफेद रहता, तो यह धब्बा गर्दखोर ( फा० वि० ) जिमका रंग मिट्टो आदिमें पड़नेसे | कुछ अधिक माफ उतारता है। नहीं तो बहत अधिक खराब न हो, खाकी रंग। लक्ष्य नहीं ठहरता। पांव खुरमें भी घोड़े से थो मा गर्द तोय -जैनमतानुमार ब्रह्मस्वर्ग (पांचवें मर्ग)के पाठो प्रभेद पड़ता है। दिशाओंमें रहनेवाले आठ प्रकार स्लीकान्तिक देवासे ___गधका मूम शरीरको देखते ज्यादा बड़ा और बगल पाँचवें दव। और भी टालू होती है। बीचमें एक गट्टा जमा रहता "मारवादियणक पागद सोयषिताधावाधाष्टिाय।' है। पहाड़ी राहमें जहां घोड़ा जा नहीं सकता, वहां (वयम व ४ ० २५ स..) यह उमके महारे बेखटके पहचता है। चिकनी जमीन ये ब्रह्मचारोहोनिक कारण देवषि कहलाते हैं। ये | पर चलनम भी उमसे सुभीता पड़ता है । मैदानमें निरन्तर ज्ञान-चर्चामें ही लीन रहते हैं । तीर्थ करके तप- | घोड़े, जगन्नमें हाथो और रेतम ऊटकी तरह पहाड़ कन्याणकं ममय अर्थात् जब तीर्थङ्गार राज्यादि क्षणभङ्ग र पर बोझ ढोनके लिये गधा उपयोगी है। इसके कान पर-पदार्थीको त्याग कर दिगम्बगे दीक्षा धारण करनेका लम्ब होते हैं। मत्था शरीरको देखते कुछ बडा लगता विचार करते हैं तब ये देवर्षि श्रा कर उनके विचार-| है पांव छोटे पड़ते हैं। पेरके खुरों पर एक एक को दृढ करने के लिए उन्हें मंमारको अमारता दिखलाते काला धब्बा रहता है। गधा शान्त और महिष्णु होता, हुए उनके विचागेको अनुमोदना करते हैं। ये देवर्षि | परन्तु निर्बाध नहीं। किमो राहसे एक बार ले जाने मनुष्य दो जन्म धारण कर नियममे मोस पाते हैं। अर्थात पर यह सुगमतासे उसको पहचान लेता है। भीड तोमरी वार इनको जन्म नहीं लेना पड़ता। भाडम यह अपने मालकिको भी नहीं भूलता। पीठका (सार्थ राजवानिकषध्याय) बोझ ज्यादा होनेसे यह नहीं झुकता और बराबर चला गर्दन (हिं पु० ) गरटम देती। करता है। गधकी बोली कड़ी है। इमो लिय किमी गभंग (हिं. पु.) एक प्रकारका गॉजा जो कश्मीरके गानेवालेका खर कर्कश होनमे उमको गधा कहा जाता दक्षिण भागामें उत्पन्न होता है। है। माधारणत: लोग गटभ-जैसा निर्बोध दूसरा पश गर्दभ ( सं० पु० ) गर्दति कर्वशशब्द करो त, गद-अभच ।। नहीं समझते और इमोसे गवार पादमीको भो गया का शनि कन्निगर्द भयोऽभन । गा ॥१२२ । पशुविशेष, गधा । कहा करते हैं। गधेका दूध अपचके लिये बहुत मुफौद इमका संस्कृत पर्याय--चक्रीवान्, वालेय, रामभ, खर, है। मांका दूध न मिलने पर गर्वका दूध पी पो कर राशभ, शङ्गकर्ण, भारग, भूरिगम, ध म हय, बेशव, | कितने ही बच्चे जी जाग गये हैं। भारत में माधारणत: ध मर, स्मरसूर्य, चिरमही पशुचरि, चारपुल, चारट और धोवियोंके कपड़े ढोनको गधा काम आता है। यह ग्राम्याश्व है। तामिलमें गधेको 'कलद' और तेलगूमें थोड़े में ही थक जाता है। घामपात आदि खा कर 'गुधि' कहते हैं। ही इसको सृप्ति हो जाती है। यह पशु दूधपीनेवालोंमें एकशफश्रेणीमुक्त है। ११ माम गभ धारण करके गर्द भो मन्तान प्रमय गधा देखने में कितना ही घोड़े जैमा होता है इस- | करती है। बच्चा तोन चार मालमें बढ़ जाता है। गधा की पूछके ऊपरी भाग और पिछले भागके बाल कुछ २०, २२ या २४ वर्ष तक जोता है। इसका चमड़ा कुछ कम पड़ते हैं। पखाको लगता है । फिर किसी | टिकाऊ है। उममे पार्चमेण्ट, ढोल, जूता, किताबकी किसोका रङ्ग रेत-गमा भी होता है। गुद्दीकी अड़में | तख्तो आदि चीजे बनती हैं। पास गधेमे जङ्गली रौढ़से काले रङ्गाके रोएससीधी धारी जैसी बन करके | गधा अधिक बलिष्ठ होता है। उसका चमड़ा भी कुछ