पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२३३

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गर्दभाण्डकः-गर्भ २३१ गद भाण्डक (सं० पु० ) गर्द भाण्ड स्वाध कन् । गर्दभागड- ' लासा पय त एक रास्ता गया है। १८२६ ई०को चम्पा वृक्ष, पाकरका पेड़। जातिने इसे जय किया था, किन्तु थोड़े वर्षकि बाद यह गर्दभावय (मं० पु०) गद भ आय प्राख्या यस्य । कुमुद महाराज गुलाबसिंहक अधिकारमें आ गया। यहां पर विशेष, एक प्रकारको कुई। दुशाले बुननको पशम बेची जाती हैं। गर्द भि (सं० पु० ) विश्वामित्रका एक पुत्र । गई ( म०प० ) गति इति गड भावे घञ्। १ स्पृहा, ___(महाभारत १३।४।५६) लोभ । २ गद भागड वृक्ष, पाकरका पेड़। "गर्द भिका ( मं० स्त्री० ) क्षुद्ररोगविशेष । इम रोगमें गड़ न ( मं० त्रि०) गृध्यति गृध युच् । लुब्ध, लोभी, वात-पित्तक विकारौ गोल ऊंचो फमियाँ निकलती। लालची हैं। इन फुमियोंका रंग लाल होता है और इनमें गड भि ( म० पु० ) विश्वामित्रक एक पुत्रका नाम । बहुत पीड़ा होती है। पंत्तिक विमर्प रोगकी नाई । I+1१.४५.) विवृता, इन्द्रवडा, गर्द भी और जालगद भ इन मब गद्धि त (म० वि०) गर्दा जातोऽस्य, तारकादित्वात् इतच । रोगोंकी चिकित्सा करनी चाहिये । पाककानमें पाक लुब्ध, लोभो। किये हुए वृत और पक्व मधुर्क औषधसे इसे शुष्क गईि न् ( सं० त्रि०) गर्दाऽस्याम्तीति गई णिनि : अत्यन्त करनका विधान है। (भावप्रकाश ) । । लोभी। “नवावामिषान।" ( मन ॥२८) गर्द भिल्ल--गुजरातक अन्तग त बलभीपुरके एक राजा। गर्नाल ( हि • स्त्री० ) गम्मान ।। जैनग्रन्थक मतमे ये ५२३ मम्बत्में गज्य करते थे। गर्भ (मं० पु०) गोवंत इति, न भन्। रिभान भन्। ४॥ ३।१५२॥ गर्द भी ( मं० स्त्री० ) १ कोटविशेष । १ भ्रण, देहजन्मकारक शुक्रशोणितमंयोगजन्य माम- "पञ्चालक: पाक मत्स्यः कृपणतुण्डी ऽथ गर्द भी।' ( सुत्रत) पिगड, हमल। २ शिशु, बच्चा। ३ कुक्षि, कोख । २ अपराजिता नामकी लता। ३ व त कण्टकारी, ४ पनस, कण्टक, कांटान। ५ नाटकका मन्धिभेद । सफेद भटकट या। ४ कटभी, गर्द भिका नामक रोग। अम्भ ह, मोअर। ७ उदर, पैट । ८ अभ्यन्तर, भोतरी "सा विहा वाततिभा ताभामिव च गद मा। हिम्मा । नदीका कोई अन्तभांग, दरयाका कोई भीतरी मण्ड । विपुलोत्सना मराग पिर.काचिता ।" (बाट उत्तरस्थान २१०) हिस्सा। भाद्रकृष्णा चतुद शोको जितना पानो चढ़ गर्दभपनी, गदही। इसके दूधका गुण वलकारक, आता, नदीगर्भ कहलाता है। १० अब। ११ अाम्न । वातश्वासनाशक, मधुराम्लरमविशिष्ट, रूस, दौपन १२ पव। और पथ्य है। दधिका गुण-रूक्ष, उषण, लघु, दीपन, गर्भाशयक शुक्रशोणितका नाम जीव है। विकार पायक प्रायोगिता पाचन, मधुराम्नविशिष्ट, रुचिकारक और वातदोषनाशक: विशिष्ट प्रकृति प्रभृति ममम्तको ही गर्भ कहा जाता है। है। मकवनका गुण--कषाय, कफवातनाशक, वलकर, कालवश जब अङ्गी और उपाङ्गकि माथ गर्भ बढ़ता, मुनि- दीपन, उष्ण और मूत्रदोषनाशक है । ( नान०) गण उमको शरीरी-मा निर्देश करता है। जब स्त्री गदाबाद ( फा० वि० ) १ जो धूल या राखसे भरा हो। और पुरुष परस्पर संयोगकामी हो शुक्र त्याग करते, अम्थि- २ ध्वस्त, उजाड़। ३ बेसुध, ब होश । शून्य गर्भ उत्पन्न होता है। जो स्त्री ऋतुनाता हो स्वनमें गर्दाल ( फा० पु. ) आलू बुखारा । मंथु न करती, उमका ऋतुशोणित वायुयोगमे कुक्षिम गदिश ( फा० स्त्री० ) १ घुमाव, चक्कर । २ विपत्ति, जा करके गर्भ बनता ओर महीन महीने बढ़ता है। आपत्ति। क्रमशः वह इन्द्रिय आदि पटक गुणवर्जित हो करके गर्दीख-भारतवर्षके उत्तरमै एक राज्य। यह अक्षा० ३१ | निकलता है। ४० उ० ओर देशा० ८० २५ पू०में मिन्धु और शतटु विगुण वायुसे गभ भग्न हो करके संख्या अतिक्रम पूर्वक नदीके उत्पत्तिस्थान पर अवस्थित है । गर्दोखसे तिब्बतके बहुत प्रकारसे 'वभक्त हो योनिमें पहुंचता है। कोई गर्भ