पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२३६

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गर्भ

  • गर्भस्थ शिशुका मुंह जरायुमे ढंका और उसका ! २ मेघका जन्नबषणमम्पादक कोई निमित्त। वराह

गला कफसे घिरा रहता और हवाकी राह रुकी जैसी मिहिरको बृहत्संहिताके मतमें-जो दैवज्ञ दिन रात रहनेसे वह रो नहीं मकता है। (भावप्रकाश) मेघोंमें गर्भका लक्षण लगाता, मुनियोंकी तरह पानो बर- स्त्रियाको गर्भ होनमे पहले महीने यष्टिम मनक बारेमें उमका कहना मिथ्या नहीं जाता। इस दूध और मधुर द्रव्य पीना चाहिचे। इसी प्रकार दूमरे शास्त्रको ममझनसे कलिकालमें भी त्रिकालज्ञ होते हैं। महीने काकोनी तथा मधुर द्रव्य, तीमरे महीने तिल कोई कोई कहता कि कातिक माममें शुक्लपन के बाद मिला करके बनायी हुई खिचड़ो, चौथ महीने मेघका गभ रहता है, परन्तु यह मत बहुसम्मत नहीं ठह- वृतौदन, पांचवें महोने खीर, कठौं महीने मोठा दही, रता । गग आदि मुनियोंक मतमें अग्रहायण मामर्क शुक्ल- मातवें महीन घी शक्कर, आठवें महीने धोको बनो दूमरी पक्ष प्रतिपदी आरम्भ करके जिम दिनको चन्द्र पूर्वा मिठाई, नवे महोने तरह तरहका अब और दसवें महीने बाढ़ामें पहुंचता, मेघका गभलक्षण ममझ पड़ता है। दोहद अर्थात् गर्भिगाके अभिलाष अनुमार भोजन दिया चन्द्रक जिम नक्षत्र में जानसे गभ आता, उ. के १८५वं जाता है। तोमरे महीने ही स्त्रियोंको दोहद होता है। दिन प्रमवकाल दिखाता है। शुक्लपक्षका गभ कृष्णपक्ष- सम ममय गर्भिणी जो जो खाना चाह, खिलाना में, कृष्णपक्षका गर्भ शुक्लपक्षमें, दिनका गभ रातको, गत चाहिये । दानको खोचड़ो, विदाही द्रव्य, गुरुपाक तथा का गर्भ दिनको और मन्धयाका गर्भ उलटी मन्धया को गर्म दूध और अम्न उमको नहीं खिलाते । गर्भिणीको प्रमव काल पाता है । अग्रहायण ओर पाषर्क शुक्र पक्षका मट्टी खाना अनुचित है। जिमीकन्द, लहसुन और प्याज गर्भ मन्द फल दिग्वलाता है अर्थात् थोड़ा पानी बरमाता छोड़ दिया जाता है। अच्छा जिमीकन्द और मीठी और है। पौष कृष्णपसका गम थावणके शलपक्ष' बर. रमीनो चीज गर्भगोके पथ्यको अच्छी होती है। उसको मता है। माघ शुक्लपक्षका गभ श्रावणके क्ष्णपक्षमें- मिहनत, मैथुन, गुम्मा, पराक्रम प्रकाश और अधिक भ्रमण वर्षण करेगा । माघ कृष्णपक्षका गभ भाद्र शुक्लपक्षम, न करना चाहिये । इममे नाना प्रकार विघ्न उठ खड़े फाला नका शुक्लपक्षजात गर्भ भाट्रक कृष्णपक्षमें और फाला नका कृष्णपक्ष जात गभ पाश्विन शुक्लपक्षमें ___ यदि पहले महीने गर्भ चलता ममझ पड़े, तो मुल- वारि वर्षण करता है । चैत्रका शुक्लपक्ष जात गर्भ आश्विन हटी, पङ्ग र या किशमिश, चन्दन और लालचन्दन दूध- क कष्णपक्षमें और चैत्रका कृष्णपक्षजात गभ कार्तिक के माथ मथ करके पोनसे वर ठहर जाता है । इस प्रकार शुक्लमें बरसेगा । पूर्वदिक्का बादल पश्चिम दिक्में और हितीय मासको गर्भका डांवाडोल होनेसे दूधके साथ कम- पश्चिमका बादल पूर्व में उठता, बाकी सब दिशाओं में भी सकी उगड़ी, खम और नागकेशर ; तीसरे महीने दूधके ऐमा ही उलटपुलट देख पड़ता है। ईशान कोण और माथ चूहेकी लेंडी और शक्कर, चौथ महीने जलन, प्यास पूर्वदिकका अाकाश विमल तथा आनन्ददायक होनेसे सथा वेदना होने पर खम, चन्दन, नागकेशर, धायके फूल बहुत पानी बरसाता और सूर्य तथा चन्द्र कितने हो शक्कर, घी, शहद और दही; पांचवें महीने अनारको पत्ती, शक्लमण्डलोंमें घिर करके चिकना पड़ जाता है । अगहन चन्दन, दही और मधु ; कुठे महीने चन्दन और चीनीक और पूममें सब मेघ मन्धयाको रमित और सममगडस्ल साथ गेरू, काली मट्टी, गोवरकी राख और टपका हुआ होने और अगहनमें बहुत जाड़ा और पूममें बड़ी बर्फ ठण्डा पानी; मातवें महीने दूध या पानोर्क साथ गोखुरू, या ओस पड़नसे गर्भ पुष्ट नहीं होता । यदि माघमें लज्जालुलता, पद्मकाष्ठ, दालचीनी, खस और मधुर द्रव्य प्रवल चन्द्र और सूर्य का किरण तुषारको तरह कलुषित, और पाठवें महीने लोध्र, मधु तथा पोपल दूधक माथ तथा अत्यन्त शोतल लगता, तो मेघयुक्त सूर्य का उदय खिलाने पिलानसे उपकार होता है। और पस्त शुभकर ठहरता है। फाला नमें षायुका रुक्ष पतःसत्वा शब्द में पपरापर विवरण द्रष्टम्य। तथा प्रचण्ड पड़ना, मेघका सञ्चय सिग्ध रहना, परिवेश