पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२३७

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गर्भ-गर्भ ग्रहण २३५ असम्म ण लगना और सूर्य का प्राग-जैसा पिङ्गल तथा और मेघ पांचो निमित्त रहते, उनमें अधिक वृष्टि होतो है साम्रवर्ण लगना शुभदायक है। यदि वैशाख मासको (सहत महिला ९१ १०) बादल आये, हवा चले, पानो बरसे और बिजली चमके, गर्भ क ( म० लो० ) गर्भ संज्ञायां कन् । १ रजनीय, तो वह गभ हितकर होता है। मोती, चांदी, तमाल, दो रात । (पु.) गर्भ केशमध्ये तिष्ठतीति मंज्ञायां कन । मोलोत्पल अथवा अञ्जन-जैसे द्युतिमान् वा जलचर प्राणि २ केशमध्यस्थ माल्य, वह माला जिमे स्त्रियां अपनी चोटी योंका आकार रखनेवाले मभो बादल बहुत पानी बरसात या जुड़े में पहनती हैं। हैं 'फर गर्भ मूर्य के खूब तोखे किरणोंमें तपन और गर्भ कर ( मं० पु. ) गर्भ करोति सेवनन दोष निवा धामो हावा चलनेमे प्रमवर्क समय मामो कड हो फरक यति । १ पुत्रजीववृत्त, पतजिव । (नि.) गर्भ करो- बरमा करता है। वजपात, उल्का, पशु वषण, दिग्- | तोति क्ल-ट । २ गर्भ कारक । दाह, भूमिकम्प, गन्धर्व नगर, कोलक, केतु, ग्रहयुद्ध, गर्भ करण ( मं० त्रि. ) गर्भ कारक द्रव्यमात्र । निर्धात, कधिराद वृष्टि, परिघ, इन्द्रधनु तथा राहुदशन .दिन्टो वा वेद सदग में कर वि। पथ: ५:२५:-) और तीन प्रकारके अन्य उत्पातासे गभ नष्ट हो जाता गर्भ कार ( मं० पु० ) गर्भ करोतोति, क ग ल । १ गभ- है। ऋतुस्वभावजात मामान्य लक्षणमें गभ बढ़नमे कारक, पति । २ माम गानका एक भेद जिसमें वैराजक विपरीत लक्षणमें उमका विषय य पड़ता है। सभी आदि और अंतमें रथन्तरका गान किया जाय । ऋतुओंको पूर्व भाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, पूर्वाषाढ़ा, उत्तरा | | गभ काल (मं० पु०) गर्भ स्य गर्भ ग्रहणस्य काल:, ६-तत्। षाढ़ा और रोहिणी नक्षत्रम गर्भ होनसे बहुत पानी १ गभाधानका उपयुक्त काल, ऋतुकाल । बरमता है। शतभिषा, अश्लेषा, आर्द्रा, स्वाति और मघा ___ "मनति यदि सोय गर्भ कान इति भरि । (हमति ११:७) | गभ कमर ( ( मं० पु० ) बाल जैसे फलोंकि पतले सूत । ये का गर्भ शुभदायक रहता और बहुत दिन तक जलष्टि | गर्भनाल के भीतर होते हैं। इनके माथ परागकेमरके किया करता है। परन्तु यह त्रिविध उत्पातसे आहत परागका मंयोग होनेमे फलों और वीजीकी पुष्टि होने पर गम बिगाड़ देते हैं । जब चन्द्र इन ५ नक्षत्राम होती है। किमी पर रहता, अगहनसे वैशाख तक ६ महीने यथा- | गर्भ कोष ( म०प०) गर्भस्य कोष आधार इव । गर्भाशय । क्रम ८, १६, २४, २० और २४ दिन अविराम वर्षण | “गर्भ कोष-परासको मनोयोमिस इतिः । पड़ता है। चन्द्र वा सूर्य कृरग्रहयुक्त होनेसे गर्भ- हयात स्त्रिय मूढगर्भो यथोक्ताश्चाप्यु पट्रवाः । (मत्रत ११.) सकल करका, अशनि और मत्स्य वर्षण करता; परन्तु गर्भकेश (म०प०) गर्भजात: क्ले शः, मधापदलो। गर्भ शुभग्रहयुक्त अथवा शुभग्रह क क दृष्ट होने पर वही जनित कष्ट, वह तकलीफ जो हमल रहनसे होती हो। Nagaबरमता है। गर्भ कालको अकारण अति गर्भ के मास्वियो मन्ये ।(माक• • २२४५) वृष्टि होनमे गर्भ बिगड़ जाता है। द्रोणांशके अधिक | गर्भक्षय ( सं० पु. ) गर्भ स्य क्षयः, ६-तत्। गर्भनाश । बरसनेसे भो गर्भ नष्ट होता है । गर्भ पुष्ट होते भी यदि हमलको बरबादी। ग्रहके उपघात आदिसे पानी नहीं पड़ता, तो प्रमव- गभ तये न म्पन्दनमनन्तकुचिता च । (मत्रत ११२) कालको वह अपना करकामिश्र जलप्रदान करता है। गर्भगृह ( म० क्लो. ) गर्भ इब हम्। १ मकानके बीच जिस प्रकार गायोका बहुत देर तक रखा हुआ दूध गाड़ा की कोठरी। २ घरका मधाभाग, आँगन । पड़ जाता, बहुत दिन बीतने पर पानी भी कड़ा दिखलाता “वामायमविमानेषु तथा गर्भ रोष च। भारत ५११७५०) है। पांच प्रकारके निमिनीसे परिपुष्ट होनेवाला गर्भ मदिरके मधाको प्रधान कोठरी जिममें मुख्य ही चार सो कोस तक बरसता है। इन सब निमित्ताने प्रतिमा रखी जाती है। एक एकके प्रभावसे शतयोजनको आधी हानि हो करके गर्भ ग्रहण (सं० ली.) गभ स्य ग्रहगाम । गभ धारण । वृष्टि पड़ती है। जिस गर्भ में पवन, जल, विद्युत् गर्जन (भावप्रकाश)