पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२३८

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गर्भ धातिन् -गर्भ धरा गम घातिन ( मंत्रि०) गर्भ हन्ति णिनि : जो गर्भ । गर्भ जन्म-जैनमतानुसार मातापिताके शोणित शुक्रमे विनाश करता हो। जिनका शरीर बने । उपपाद, गर्भ और सम्म च्छ न जन्म- गम घातिनी ( मस्ती ) गर्भ हन्ति नावयतीति हन । मेमे दूभरा जम्म । जगयुज ( मनुष्यादि), अगड़ज (जो पिनि डीप । लाङ्गलिकावृक्ष । अण्डे मे पैदा होते हैं ) और पोत ( जो योनिमे निकलते गर्भ चिन्तामणिरम वद्यकोत औषधविशेष। इसकी प्रस्तुतः | हो दोडने लगते हैं और जिनके ऊपर जैर आदि किसी प्रणालो इम तरह है - पारा, गन्धक और स्वण को प्रकारका आवरण नहीं रहता। जैसे -मिंह, घोडा जम्बौरी नोबके रममें तीन दिन तक घोट कर मोठ. पोपर आदि) जीवोंक गर्भ जन्म ही होता है। गर्मज देखा। और मिचकै क्वाथके माथ तीन वार भावना देनी पड़ती (ॐनसिहासप्रवेशिका १० ४ ) है। बाट चार रत्ती प्रमाणही हर एक गोलो बनाकर गर्भ गड़ ( मं० पु०) गर्भ स्य अण्ड इव। नाभिक स्फोट । सेवन रनमे गभिगोर्क शूल, विष्टम्भ, ज्वर और अजीर्ण गर्भ त्व (मं० लो०) १ गभका धम , गर्भका भाव। २ मधमें प्रभृति रोग विनष्ट होते हैं। जलको गर्भभाव प्राप्ति। (मायण ) ___एक प्रकारका और गर्भ चिन्तामणि रम है । इमकी | गर्भद ( सं० पु० ) गभं ददाति सेवननति । १ पुत्रजीव- प्रस्तुत प्रणालो यां है : रममिन्दर, रोप्य, अर लौह वृक्ष, पतजिव। २ पुत्रोत्पादक औषधविशेष । (त्रि.) प्रत्य कका दो तोला, कपूर, वङ्ग, ताम, जातिफल, | ३ गर्भ देनवान्ना जिमसे गर्भ रहे। आवितो, गोखर, शतमलो, बड ला पार गौरक्षचाक गर्भदा ( मं० स्त्री० ) गर्भ दा-क-टाप । एवं तकण्टकारी, लिया प्रत्यं कका एक तोला ले कर सभीको जलकै माथ मफेद भटकटेया। पीमना चाहिए। दो रत्तो प्रमाणको हर एक गोलो बना गर्भ दात्रिका---गर्भ दावी देवी बना कर सेवन करनसे गभिगोका ज्वर, दाह, प्रदर, गर्भदात्री ( मं० स्त्री० ) गर्भ ददातीति गर्भदा टच-डीप' सविपात और आदिसूतिका प्रभृति गेग शोघहो दूर हा व तकण्टकारी, मफेद भटकटैया । इमका पर्याय-पुत्रदा, जाते हैं । (रसेन्द्र मार मया ) प्रजादा, अपत्यदा, सृष्टिप्रदा, प्राणमाता और तापमष्ट्रम- गर्भचति । म स्त्री० ) गर्भ स्य व्यति: सरणम् । गर्भ - मबिभा इसका गुगा---मधुर, शत, स्त्रीयोंक पुष्पादि स्राव, गर्भपात, हमलका गिरना । दोष, पित्त, दाह और श्रमनाशक एवं गर्भोत्पादक है। 'va काला कच सको नामोनिवन्धनात। | गर्भदास ( मं० पु. ) गर्भात् गर्भ मारभ्य दासः, ५-तत् । गर्भाशयस्थो या गर्भो जननाय प्रपद्यते ॥ वह जो जन्मसे दाम हो, दासीपुत्र । कमिवानगाभिघालस्तु सदेवोपद्रुत फन । गर्भदासी ( स० स्त्रो०) गृहस्थित दासीसे उत्पन्न दामो। पत्य कालेऽपि तथा तथा याद गर्भबिच ति: ॥" ( मुश्त) गर्भदिवम ( म० ए० ) गर्भाय गर्भधारणाय दिवसः । गर्भाशयस्थित गर्भके यथासमय नाडीबन्धनसे मुक्त गर्भधारणका उपयुक्त दिन । होनेको जन्म कहते हैं। किन्तु जब यह कृमि और पिवदन्ति कार्तिकेय कान्तमतीत्य मेधय गर्भ दिवसाः स्य:।' वातादि द्वारा उपद्रत हो कर अकालमें पतित होता है तो (बडतम हिला २१५) उसे गर्भचुाति कहते हैं। |गभ दोहद (सं० लो० ) गर्भस्य दोहदम्, ६-तत् । गर्भ- के लिये अभिलषणीय द्रव्य । गर्भज ( सं० त्रि. )गर्भ जन-ड । १ गर्भ मे उत्पन्न, संतान। | गर्भ टुह (मं० त्रि०) गर्भ द्रुह्यति, छह-क्विप् । गर्भपात जैनमतानुसार जो शरीर स्त्रोके उदरमें, माताके करनेवाली स्त्रो। (कुछ क ) रुधिर (रजः) और पिताके वीर्य के मिश्रणसे उत्पन्न होता | | गर्भध (सं० त्रि. ) गर्भ ददातीति धा-क। गभधारण है। जैसे-मनुष्य, हाथी, घोड़ा पादिका जन्म, ये सब करनेवाला, गर्भधारक । गमध गर्भ धारय रेतः ।' (वेदोष । करनेवाला. गर्भधारक | गर्भ धारण रेत गभ से जन्म लेते हैं । गर्भ जन्म देखा। (सर्वाध सिषि, ११० ) | | गर्भधरा ( सं० स्त्रो०) गभस्य धर: टाप् । गर्भधारिण। २ जो जन्मसे हो जैसे गर्भ जरोग, गम जगुण। | श्री। (भारत १८८०)