पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२४०

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गर्भ प्रसव-गर्भवती साथ और पञ्चम मासमें घृतके साथ भोजन करना चाहिये। गर्भग ( सं० स्त्री० ) प्राचीनकालकी एक प्रकारको चतुर्थ मासमें दुग्ध और मकवनके माथ अब एवं जनस- नांव । यह ११२ हाथ लम्बो, ५६ हाथ चौड़ी और ५६ जात जीव ममके माथ सृप्तिकर अब, पञ्चम मासमें हाथ अची होती थी। दुग्ध और घृतविशिष्ट उक्त समांम अन्न, छठे मासमें गर्म रूप (सं० त्रि.) गर्भस्य नवोत्पबशियोः रूपममा गोत्तरक मिड साथ घृतके साथ सेवन करना लाभदायक | यथा गर्भ देहकोष रूपममा तरुण । है। ममम माममें पृश्रिपर्णी आदि सिद्ध करके इतके गर्भ लक्षणा (म० लो०) गर्भो लक्ष्यते येनेति करण ल्युट् । साथ खाना चाहिये। ऐमा करनेसे गर्भ परिपुष्ट होता | गर्भ म धक चिह्न, गर्भ की पहचान । (सवत ११५ १०) है। अष्टम माममें बेरके जलके माथ बला, अतिवन्ना, गर्भलम्भन ( म० क्लो० ) गर्म रक्षणार्थ क्रिया, वह क्रिया शतपुष्प, तिनकुटा, टुग्ध, तेल, लवण, मदनफल, मधु | जो गर्भ को रक्षाके लिये को जाती है। और मिश्रित अब भोजन करना चाहिये । इससे | गर्भवती ( म स्त्री० ) गर्भो विद्यते यसपाः मतप मसा पुरान मनको शुद्धि और वायुका अनुलोमन कोता है। वः । गर्भिणी, वह औरत जिसके पेटमें बच्चा हो । इसका उसके बाद दुग्ध, मधुर और कषाय ट्रव्य मिड करके सेल नामान्सर-अन्तर्वत्नी, गुर्विणी, गर्भिणी, ससत्ता, आपन- के साथ शरीरमें लगानसे वायु सरल होती है और उप मत्ता, दोडदवती, उदारिणी और गुर्वी है । द्रवशन्य हो कर बच्चा सुविसे बाहर निकलता है। ____ जिस स्त्रीके गर्भ धारण किये अल्प दिन हुए हों, गर्भ प्रसव ( सं• पु. ) गर्भस्य प्रसवः। गर्भस्थ शिशुके उमकी योनिमे शुक और शोणितक्षरण, अमवोध, अव भूमिष्ठ होनेके लिये पहिर्गमनकप क्रियाविशेष, गर्भस्य सवता, पिपासा, ग्लानि और योनिस्फ रण होते है। सन्तानके बाहर पानेको क्रिया । गर्भधारणके बाद क्रमश दोनों स्तनके मुख वणवण गर्भभमन् (सं• ली.) १ शिशसन्तानका भरणपोषण ।। और ओखके पल बंद हो जाते है। गर्भ देश। २ गर्भस्थ शिशुका भरण पोषण । ( रा ०१२) गर्भ में पुत्र होनेसे द्वितीय मासको गर्भाशयमें पिगड़ा- गर्भभवन ( मं• ली. ) गर्भस्य भवनम् । १ घरके मधाको | कार गम और दाहिनी अाँखका भारीपन मालूम पड़ता कोठरी । २ प्रसूतिका गृह, मौरी। है। सबसे पहले दागिने स्तनमें दुग्ध निकलता, दाहिना गर्भभाण्डक (सं• पु.) प्रवच, पाकरका पेड़। जर सुपुष्ट होता और मुखका वर्ण प्रसन्न रहता है। गर्भभार (सं० पु.) गर्भ एव भारः। गर्भरूप भार, | स्वप्रमें भी पुत्रके निमित्त वासना होती है। स्वप्रमें प्राम- गर्भका भारीपन । (चास वितभावर १९५४५) फल और पनादि प्राप्त होते है। गर्भमण्डप ( सं• पु. ) गर्भ स्थितः मडपः । घरके अन्तर्गत जिसके गर्भ में कन्याकी उत्पत्ति हो, हितोय मासमें मण्डप उसके गर्भमें पेशी दीख पड़ती है एवं पुत्रको जन्म लेने पर गर्भमास ( सं• पु. ) गर्भस्य गर्भारम्भस मासः । १ गर्भा जो जो चित्र दिखाई पडते उसके विपरीत लक्षण इसमें भक मास, वह महोना जिसमें गर्भाधान हो। २ गर्भ प्रकाशित होते हैं। सहित माम । नपसक होने पर गर्भ पिंडके सदृश मालूम पड़ता, नर्भमोचन ( मं०सी० ) गर्भस्थ मोचनम, सत् । प्रसव गर्भ के दोना पार्श्व उवत होते और उदरका अग्रभाग विस्त त दीखता है। ( भाव काय ) . गर्भ योषा ( म० स्त्री० ) गर्भस्था योषा । गर्भस्थानोया ___ यमज होने पर जिस मासमें उदरको जितना बढ़ना जी, गर्मियो स्त्री। (भारत १९९..) चाहिये तदपेक्षा हिगुण और उससे अधिक परिमाणम' गर्भरक्षण ( सं० को०) गर्भस्य रक्षणम् । गर्भ पालन। बड़ा दिखाई देता है। उदरका मम्मुख चौड़ा और उस नरम (सं० वि०) गर्भ रसमया। जिसके गर्भ में | के जपरसे नोचे समभाग दबा हुवा तथा उदर सम- रस हो। २ गभॊत्पत्ति निमित्त रस । हिभागमें विभक्त मालूम पड़ता है। उदर स्थान स्थान