पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२४२

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गर्भ सुभग -- गर्भाधान गर्म सुभग ( म. त्रि.) गम सुभगः। १ गर्भ काला- गर्भस्रावाशौच उतनही दिन तक रहेगा जिसने वधि मौभाग्यशाली । गर्भधारणात् सुभगा। २गर्भ | माममें गर्भस्राव होता है। छह मामके बाद गर्भपात वारणके लिये मौभाग्यशालिनी । होनेमे स्त्रियों को दश रात्रि और मपिण्डयोका सद्यशौच गर्भ सूत्र ( स० क्लो०) बौद्धसूत्र विषयका नाम । रहता है। गर्मस्य ( मं० त्रि० ) गर्भ तिष्ठति स्था-क। जो गर्भ में | | गर्भस्रावो ( स० पु० ) गर्भ स्रावयतीति मुणिच् णिनि । हिन्तालवृक्ष, ताड़, खजूरको जातिका पड़। खित हो। (म त ११:१०) गर्भ हत्या ( म० स्त्री०) भ्रण हत्या, गर्भपात ।। गर्भस्थान ( म० क्लो० ) गर्भाशय । मचलो ( म स्त्री० ) गर्भ एव स्थली स्थानम् । गर्भ- गभागार ( सं० क्लो० ) गर्भ इव आगारम् । १ गर्भगृह, "कंप स्थान, गर्भाशय। वह कोठरो जो घरक मध्यमें हो, घरकै बोचका कमरा । २ ऑगन ! ३ गर्भ स्थान, गर्भाशय ।। "गर्भस्राव ( म० पु० ) गर्भ-मु घत्र । गर्भस्य स्राव:, गांङ्ग ( स० पु० ) अभिनयक अकका एक भाग। इसमें तत् । प्रमवकालकं पहले गर्भ कालमे चार माम केवल एक दृश्य हाता है। इसके समाप्त होने पर पहली 'पाक शोणितरूपमें गर्भ का पतन, गर्भच्य ति। यवनिका उठाई अथवा दूमरो गराई जाती है और तब ६. यदि गर्भवतीक गर्भ से बार बार रक्तस्राव होता दूमग दृश्य प्रारंभ होता है (माहित्य) हो, सो उसको बन्द कनके लिये सुनिग्ध उत्पन्नादि गर्भाद ( म० त्रि०) गर्भ मत्ति-अद घञ् । गर्मभक्षक सिर करके काथ पिलाना चाहिये। नोल, उत्पल, "ग1 व नारायणि स ब : (१५ २१.५३) साबण कुमुद, कहार, पूर्व तपद्म और यष्टिमधुको | गर्भाधान ( म. ली.) गर्भ आधीयते ऽनेन, आधा उत्पला दगा कहते हैं। करण ल्य ट । १ दशविध मस्का में प्रथम मस्कार । गर्भस्राव होने पर दाह, पार्श्व-वेदना, प्रदर, पृष्ठ प्राचीन धर्म शास्त्रकारोंके मतमें प्रतिवन्ध न रहने बेदना, पानाह और मूत्रसङ्ग होते हैं। गर्भ के एक विवाहित स्त्रीक प्रथम ऋतम हो गर्भाधान मस्कार खानसे दूमर स्थानका सञ्चालन होने पर आमाशय और करना चाहिये। गोभिन्नका कहना है कि ऋतमती प्रबाशयमें सोम तथा दाहादि उपरोक्त उपद्रव हुआ करते स्त्रीका शोणितस्राव रुकते ही मङ्गमकान होता है। । गर्भस्रावमें दाहाटिक होन पर स्निग्ध और शौतन | ( २५.८) माख्यायन ऋषिर्क मतम ( १ ) नोढ़ा वा शिया कर्तव्य है ! चिरकाल परिणीता भार्याकं माथ ऋतुकाल उपस्थित · कुशमूल, काशमूल, भैरोण्डामूल और गोक्षुर इन | होने पर अभिगमन करना चा. ये मनुमंहितामें (३४५) ..कभीको दुग्धम पाक कर चानाक माथ गामणाका पान मृतकालको अभिगमन करनकी बात कही है। फिर की बिले दें। गोक्षुर, यष्टिमधु, कण्टकारी और वाण गौतम, याज्ञवल्का प्रभृति महिलाओंमें भी ऐमा हो पुष्प रन मभीक मात्र दुग्धपाक कर चीनी और मधुके माथ विधान देख पड़ता है। प्रदर्शित प्रमाण द्वारा निश्चित पिताममे गर्भिणीको गर्भ वेदना जाती रहती है। न होते भी कि प्रथम ऋतुका हो गर्भाधान मस्कार कोष्ठागारिका मृत्तिका, नवमनिका, लज्जालुल्लता, | पड़ेगा, संग्रहकारोंने दूमरे दूमरे वचनों के साथ मामञ्जस्य अलकान, गैरूमट्टा, रमाञ्जन और ध प इन समस्त लगा करके प्रथम ऋतुको हो गर्भाधान मस्कारका पदार्थीको चण कर मधक माथ मेवन करनेसे गर्भपात | विधान किया है। यह मानी हुई बात है कि धर्म- शास्त्रका विधि पालन न करनेसे प्रत्यवाय वा पाप पड़ता मर्ममावशीच मं० लो. ) गर्भस्रावका प्रशौच । जितने है जब मांख्यायनीय रायसूत्र और मनु प्रभृति प्रायः मणिका गर्भ रहता है उतने दिन तकका सूतक | सभी धर्मशास्त्रोंमें ऋतुकालको गमन करने का विधान । जिम स्रावशौच कहते है । कूर्म पुराणमें है, प्रथम ऋतुको अभिगमन न करनेसे ममें सन्देह नह लिखा है कि छह मामके पहले यदि गर्भस्राव हो तो, कि प्रत्यवाय वा पाप लग जावेगा