पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२५४ गलेफलाफरोश गलेफ (हिं पु०) गिलाफ देवा । | गल्लदासार-मारबाड़ प्रदेशमें रहनेवाली एक जाति । मलेवाज (हि.वि.) अच्छा गानवाला। यह लोग देखनमें काले और लम्बे होते हैं। इनकी गलेस्तनी ( सं० स्त्री० ) कागी, 1 रम्त नी देखे।। आंखें छोटी, नाक उठी हुई, होंठ पतले, कनपटी नीची, गलैचा (हिं. पु० ) गचा शिरकै बाल्न बारीक और दाढ़ी घनी रहती है इन्हें गलोय ( म० क्ली० ) गलेन लोध, पृषोदरादित्वात् ललोपे पकाना तो ठीक मालूम नहीं, परन्तु खाना खूब जानत साधुः। धान्य विशेष, एक प्रकारका धान । हैं। रोटो, तरकारी और दही इनका प्रधान प्राहार गलोद्देश (मं० पु०) गलस्य उद्देश: ममीपम् । गलेक है। यह मांस ग्रहण नहीं करते । उनके पैरमें निकट स्थित अवयव विशेष, गलेके पामका एक अंश । खड़ाऊ, मत्य पर पगड़ी, कमरमें धोती और शरीरमें गलोद्भव (मं० पु.) गले अश्वगलदेश उद्भवति उद् भू जामा रहता है। स्त्रियां मांडी और अगिया पहनती कर्तरि अच। अश्वगलदेशजात गेचमान नामक रोमा- हैं। मभो गलदासार शान्त और परिश्रमी होते हैं। वर्त विशेष, घोडे के गल्लेका बालकुन्न । खेती इनका बड़ा महारा है। त्योहारको छोड़ करके गलोना ( हिं० पु. ) एक प्रकारका सुरमा जो कावुल और दूसरे दिन यह मवरेसे शाम तक मैदानमें काम किया कंदहारसे आता है। करते हैं। घरको स्त्रियां और लड़के भी हार बाहर जा गलौ (मं० पु०) चन्द्रमा। करके पुरुषको घाममें महायता देते हैं। तिरूपतिके गलौआ ( हि'. पु० ) बंदरों के गालों के भीतरको थैली, हनुमान्जी और व्यङ्कटरमण इनके उपास्य देवता हैं। जिसमें वे खानकी वस्त भर लेते हैं। कभी कभी यल्लमा और दुर्गा देवताको भी पूजा होती है। गलौघ ( म पु० ) गले उघ इव। रोगविशेष। कफ जादूटोने पर इन्हें बड़ा विश्वाम है । किसी को पीड़ा और रक्तक प्रकोपसे गान्नमें एक प्रकारको सूजन हो जाती होनम ओझा जा करके रोगको व्यवस्था करते हैं। मन्तान है। इसमें बहुत जलन होती तथा स्वांस लेने में कठिनता भूमिष्ठ होने पर नाड़ी काट फलको मट्टीके बर्तनमें रख पड़ती है। करके साफ जगह पर मट्टोके भीतर गाड देते हैं। फिर गल्दा ( म० स्त्री० ) गल-क्विप गले न दीयते दा-क । पांचवें दिनको जीवती देवीको पूजा तथा ज्ञातिभोज १ वाक्य । २ नि:सूत । ( १९० ) ३ धमनीविशेष, शरीरक भीतरको एक प्रकारकी नली । और बारहवें दिनको नवजात शिशुका नामकरण होता गल्प (1स्त्री० ) १ मिथ्या प्रवाद । २ डोंग, शेखो। है। विवाहके दिन वर और कन्या दोनोंको सेन्न पार ३ मृदङ्गाके वारह प्रवन्धों में से एक। ४ छोटी छोटो हलदी लगा करके नहाना पड़ता है। इसके बाद दोनों कहानियां। जब एक वेदी पर बैठरी, ग्रामस्थ देवन मन्त्र पाठ करके गल्भ ( म त्रि०) गल्भ-अच् । १ सङ्कोचशून्य, निर्भय। धान्यमे आशीर्वाद करते हैं। फिर सबको पान सुपारी २ गर्व कारी, अहङ्कार करनेवाला । बाँटते और अन्त में आत्मीय कुटुम्बको खिलाते पिलाते हैं। •गल्या (म'• स्त्री० ) गलानां कण्ठानां समूहः । गलसमूह। इन लोगों में विधवा विवाह और बहुविवाह चलता है। गल्ल ( मं० पु० ) गल्-ल। कपोल, गाल । ममाजशामन गलदासारों में बहुत प्रबल है । यह लड़कोको गलई (हिं. पि.) गम के रुपमें। (पु.) वह खेत स्क लमें पढ़ने नहीं भेजते । गल्लदामार धीर धोरे f रहे जिसका लगान लिया जाता हो, बटाई। हैं। यह कणाटी भाषामें बातचीत करते हैं वाजा, जो गल्लक ( मं० पु० ) गल स्वार्थ कन् । १ कपोल, गाल श्रेणी विभाग नहीं है। २ मध्यपानपात्र । शराब पीनका प्याला। ३ इन्द्र- | गन्मा ( हि पु० ) १ शोर, होरा शब्द । (फा० पु० ) नोल मणि, मरकतमणि, नीलम। २ झुड, दल । ( अ• पु० ) ३ उपज, फसल, पैदावार । गल्लचातुरी ( सं० स्त्री० ) गल्ले चातुरी यस्याः। उपधान ४ प्रव, अवाज। विशेष, तकिया। | गमाफरोश ( फा० पु० ). अनाजका व्यापारी।