पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२५९

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गवनरौ-रावामयन नियुक्त किया हुआ सबसे बड़ा हाकिम। इनके अधीन , मत्साविशेष, एक प्रकारको महो। यह अजीर्ण कारक, कई एक गवनर ओर लफरेंट गवर्नर रहते हैं। इङ्गलेण्ट ' गुरु, ने भाका प्रकोपकर के बादशाह गवनरोंको नियुक्ति स्वयं करते हैं। पर लफ़टेंट गगदन (सं० क्लो० ) गोभिप्रद कर्मणि न्यू ट अवम । गवन रंगवर्नर-जनरलसे नियुक्त होते हैं । गवनर-जनरल तृण, घाम । एक कौंसिल वा मत्रिमंडल द्वारा शासन करते हैं, वाइम- गवादनी (मं• स्त्री०) गवादन गौरादिला ष् । १ इन्द्र- राय, बडे लाट। वारुणी, इन्द्रायण । २ नोल अपरा ३ एक तरह- गवन री ( अ. स्त्री० ) १ वह प्रान्त जहा पर गवनर का बरतन । शासन करता हो, सिंडन्मी। २ शामन, अधिकार। गवादि ( मं० पु.) पाणिनीका एक गण । गो, हविम्, गवराज ( मं० पु० ) गवेन शब्द न गजत राज-अच। वृष, अक्षर, विष, वहिम, अष्टका, मम्वदा, युग, मेधा, मुच, बैल, मॉढ़। कूप, वद, दर, खर, असुर, अध्वन्, वैद, वीज और दोप्त, गवल ( म० पु०) गवं शब्द लाति लाक । बनमहिष, इन भभोको गवादि कहते हैं। जङ्गली भैंसा, अरना। रुतम० ३२।१६) गवाधिका ( मं० स्त्री० ) गवा करणन अधिकायति कै-क- गवन ( म० लो०) गव-लाक । महिषशृङ्ग, भमेका टाप। लाक्षा, लाह लाख । मोंग। गवानृत ( मं० ली. ) गवि गोविषये अनृतम्। गोविषय- गवन गण ( म०पु० ) मञ्चयकं पता। में मिथ्याकथन, गाक बाग्में झूठ बोलना । (d) सया मान । लपस्त नाम तोगवल गरयात।" (भारत १६३ १०) गवान महमूद-दक्षिणापथर्क बहमानी गजाप्रो एक गवलो ( मं० पु० ) महिष, भैसा। मन्त्री । १४६१ ई० ३ मितम्बर को नवाब हुमायूंक मरने गवहिया ( हिं० पु० ) अतिथि, महमान । पर उनक अष्टमवर्षीय पुत्र निजामशाह राजपद पर गवाक्ष (मं. पु०) गवामलोव । यहा गाव: मथकरा जन्नानि अभिषिक्त हुए । उनको मान इनको विश्वस्त और विच- वा अक्षण वन्ति व्याप्त वन्तीति अननति । अक्ष-घञ। १ क्षण देख करके मन्त्री बना लिया। .१४६३ ई०को वातायन झरोपा, छोटी खिडकी । इसका पर्याय बध निजामशाह के मर जान पर उनके भाई मुहम्मद गजा दृगयन, जाल और जालक है। (मार ) हुए। उन्हांन भी गवान को ही मन्त्री बनाया था। १४८१ २ बानर वशेष, वैवस्वतमनुका पुत्र, राम रावण युद्धमै ई.को निजाम उन्न मुल्क भैरो नामक किमी व्यक्तिने यह रामचन्द्रजीके सेनापतिक पद पर नियुक्त किया चक्रान्त करके राजामे उनको विश्वासघातक-जैमा बत- गया था। लाया और राजाने भी विश्वास करके उनक प्राणबधका गवाक्षिका ( मं० स्त्रो०) अपराजिता । आदेश दिया इन्हीं के मृत्य से बहमानो राज्यका अधः- गवाक्षि- ( सं० त्रि०) प्रणयन किया हुवा, रचना किया पतन होने लगा। हुवा। गवामयन ( म० लो० ) दशमास वा दादश मासमें साधा गवाक्षी (सं० पु.) गां भूमि अक्षणोति अक्ष-अण । एक यज्ञ। तागडाब्राह्मणमें इसका विषय ण्मा लिखा दित्वात् डोष्। १ गोड़ म्बा, एक प्रकारकी ककड़ी या हुआ है-पूर्व कालको कई एक वन्य पशअनि मिन्न करके तरबूज। २ इन्द्रवारुणी, इन्द्रायण । इमका पर्याय-- मवतमर पर्यन्त किमी यज्ञका अनुष्ठान किया था। फिर ऐन्द्री, इन्ट्रवारुणी, चित्रा, गवाक्षी, गजचिर्भटा, मृगारु, दूसरोंक भी अनुष्ठान करनसे इम यज्ञका नाम गव मयन पिटकोटी, विशाला पोर मृगादनो है। ३ शाखोटस, पड गया । वन्य पशुका माधारण नाम गो है। जो यज्ञ महोराका पेड़। ४ अपराजिता । (ग्वमाना) करने लग, दशमाम पर्यन्त अनुष्ठान होने पर उनमें का गवाचो (सं० स्त्री० ) गवि भूमो अञ्चतीति । अन्च क्विप्- चौपायों के पींग निकल पड़े । उन्होंने परस पर कहना डीप। (पवन मोटायनस्य । पा ११२१) इति अवङ। प्रारम्भ किया कि यज्ञके फलसे वह समृद्धिशाली बन और Vol. VI. 65