पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२६३

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२६१ गव्ययु-गहड़वार गव्यय ( म त्रि० ) गामिच्छति गो-क्यच् उण यादो वेदे- गहड़वार---युक्त प्रदेशवासी राजपूतोंकी एक शाखा। डंग- दीर्घयलोपाभावो। जो गाय लेनेको इच्छा करता हो। मङ्गलपुर, बिठूर, जाजमऊ, कब्रोज, बिन्नहौर, इमलाम- गव्या ( स० स्त्री० ) गवां समूहः। गो समूह, गायका गञ्ज, बुंदेलखगड, गोरखपुर, कटिहर, बनारम तहसील, झंड। २ धनुषका गुण, धनुषको डोरी। ३ गव्य ति, गाजीपुरकै पकोतर तथा महागच, खंगगढ़, कान्तित दो कोस । ४ गोरचना। प्रादि स्थानोंमें इनका वास अधिक है। गय मंत्रिक) गामिति, इष-क्यच-उण । जो गो उम जातिक मम्बन्धमें कोई वंशगत इतिहास नहीं ग्रहण करनेकी इच्छा करता हो। मिलता, फिर भी आजकलक गहडवार अपनको कनोजका गव्य त (म० लो०) गव्य ति: पृषोदरादित्वात् अवङदेशः। पूर्वतन राजवंशी जैमा बतलात हैं। राजपूत इतिहासमें भी १ एक कोस। २ दो कोम। यह ३६ राजवंशीक अन्तभुक्त हैं। किमीक मतमें गहड़. गव्य ति ( मं० स्त्रो० ) गोयुतिः। १ दो हजार धनुषको वागमे हो राठौर वंशको सृष्टि है। कवन बिमहौर दरो। २ दो कोम। इमका पर्याय -क्रोशयुग, गव्य त, और गोरखपुरक गहड़वारों को छोड़ कर और कोई गोरुत, गोमत, वाचम्पति और गव्या है। राठौरवंशमें दान ग्रहण नहीं करता। गठीर पोराकट दे रखा। गश ( अ० पु० ) मूर्छा, बेहोशो। हादी कतुल अकालीम नामक फारमोकी एक 'कताब- गशी (अ. स्त्री० ) बेहोशी। में लिखा है कि वह वाराणमासे (१११५ ई.) कान्तिमें गश्त ( फा० पु० ) १ टहलना, घूमना, दौरा, चक्कर । जा करकं बसे थे । किमी दूमरे एतिहामिक के कशनानु- २ पुलौसका चक्कर, रौंड, दौरा । ३ एक प्रकारका नृत्य ___मार राठौरवंशीय जयचन्दके भतीज गड़नदेवने १२वीं जिममें नाचनेवाली वेश्याये वरातके आगे नाचती हुई। शताब्दीक शेष भागको काश्मोरमे जा भरपत्तांको गङ्गाके चलती हैं। उपकूलसे निकाल दिया और अपने वंशको गहड़वार गत-सलामी ( फा. स्त्री० ) भेंट या उपहार जो हाकिम नाममे आख्यात करके कान्तिमें राज्यस्थापन किया। को दौरा समय मिला करता है। माधारणत: काशोधाम हो गहड़वारोंका आदिवामस्थान- गश्ती (फा०वि० भ्रमण करनेवाला, घमनवाला। जमा निरूपित हुआ है। उपयुक्त दोनों लेखकांक मत- गमना (हि.क्रि.) १ जकड़ना, गांठना। २ कपड़ा में गहड़वागेन एक हो माथ स्वदेश परित्याग और कान्ति- वुनावटमें बानेको कसना । में जा करक निवाम किया था। सुतरां काश्मीर शब्द गमोला ( हि वि०) जकड़ा हुश्रा, गुथा हुअा, गफ । मम्भवतः भ्रमसे 'काशी' के बदले लग गया होगा। गोरख- गम्मा (हि पु०) ग्राम, कौर। पुरमें इम जातिकी उत्पत्तिकै और भी दो प्रवाद प्रचलित गहडिल (हिं० वि० ) गदला, मटमैला । हैं। पहला यह कि वह नलराजके वंशमम्भत हैं और गहकना (अ.क्रि०) १ चाहसे भरना, लालमासे ग्वालियरके निकटवतों नरवर नामक स्थानसे काशीमें होना, ललकना। २ उमंगसे भरना । जा करके बसे हैं। दूसरा यह कि काशीराज बलदेवने गहकोड़ा (हिं पु०) गाहक, खरीदार। मगधराज कटक ताड़ित होने पर स्वराज परित्याग गहगडड (सं०वि० ) गहरा, भारी, घोर । पूर्वक काश्मोरराज त्रिपुरके अधीन कर्म ग्रहण किया, गहगह (हिं० वि० ) प्रफुल्लित, प्रसन्नतापूर्ण, आनन्दसे पीछे स्वीय प्रभुक विरुद्ध लोगोंको उभाड़ करकं काश्मीर भरा हुआ। राज्यके अधीश्वर बन बेठे। उनके वंशधरोक १२१ पोढ़ी गहगहा (हि.वि.) गगा देखा । राज्य करने पर ईरान, तुर्कस्थान और रूम देशाधिपतिने गहगहाना (अ.क्रि.) १ पानन्दमें मग्न होना, बहुत काश्मीर पर आक्रमण किया था । वहाँसे यवनकर क प्रसव होना। २ फसल प्रादिका बहुत अच्छो तर साड़ित होने पर वलदेवके वंशधर कबीज भाग आये तैयार होना, लहलहाना। और यहां जयचन्द पर्यन्त ५० पुरुष राजत्व रखा। राजा Vol VI. 66