पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२६५

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गहलोत-गहोई २६३ नहीं हुई है। भौली परगने, खांपुर, निजामाबाद, बिल्हौर, गहोगह ( क्रि० वि० ) गहमा देवा । बिठूर, रसूलाबाद, सैयदाबाद, तिरुपा, रामिया, हाथरत, गहादि ( सं० क्लो० ) छ प्रत्यय निमित्तक पाणिनीय गण- शाहपुर, जलेश्वर और बुलन्दशहरमें यह अधिक रहते विशेष । (गहादिभारकः ।४।२११८। ) गह, अन्तस्थ, मम, विषम,उत्तम, अङ्ग, वङ्ग, मगध, पूर्वपक्ष, अपरपक्ष, अधम- बुलन्दशहरवामी गहलोतोंमें रोमा प्रवाद है कि शाश्व, उत्तमशाग्व, एकशाख, ममानशाख, ममानग्राम, मम्राट अकबरने चित्तौर आक्रमण करनेके पीछे गजा एकग्राम, एकवृक्ष, एकपलाम, इष्वग्र, इष्वनीक, अवस्य- खोमानके राजत्त्वकालको वह दमनाके निकटवर्ती देहड़ा न्दन, कामप्रस्थ, खाड़ायन, काठेरणि, लावरणि, पौमित्रि, और धानना नामक स्थानों में जा करके बसे । किन्तु वास्त शशिरि. आमुत, दैवशमि, योति, आहिमि, आमित्रि, विक यह बात ठीक नहीं है। कारण, आईन-अकबरी । व्याड़ि, व जि. आध्यश्वि, आनृश मि, गोङ्गि, आग्निशम, पढ़नेमे ममझ पड़ता है कि मम्राट अकबरके ममय भौजि, वाराटकि, वाल्मीकि, तैमवृद्धि, प्राश्वथि, प्रोट- गहलोतवंशीय दमनाके जमींदार थे। यक्तिमिड और गाहान, एकबिन्दवि, दन्ताग्र, हम, तन्त्वग्र, उत्तर प्रोर मम्भवपर जैमा यही विदित होता है कि मम्राट अला- | अनन्तर, इन्हींको गहादि कहते हैं। ये पालतिगणक हैं उद-दीन खिन्न जीके चित्तौर आक्रमण अथवा ग्वोमानके गहिरदेव ( म० पु० ) काशीके एक राजाका पुत्र। इन्हें गजत्त्वकान्नको मामके आक्रमण पीछे वह दमनामें जा गहरवार अपना पूर्व पुरुष मानते हैं। करके रहे। खौमान देखा। । गहिगव (हि. पु. ) गहराव देंग्वा । ___ कोई कोई कहता है कि वर्तमान गहन्नोतोंके किमी गहिरो हि वि० ) गहरा दवा । पूर्व पुरुष गोविरावने दिल्लीपति पृथ्वीराजको वहनको गहिन्ना ( हि वि० ) पागन्न, उन्मत्त । व्याहा और वह उनके अन्तरङ्ग मित्र तथा युद्धविग्रहमें गहीला (हिं० वि० ) १ गव युक्त, अभिमानी। २मटो. सहकारो थे । कवि चन्द्र बरदाईने अपन पृथ्वीराज गमो- मत्त, पागल । काव्यमें लिखा है कि गोहिलवशीय मामन्त गोविन्दराव गहु (हिंस्त्री० ) छोटा राम्ता, गन्नी। चौहान राजपूत पृथु के सहकारी रहे। उन्होंने दम जाति- गहुआ ( हिं० पु० ) छोटा महवान्ना, एक प्रकारको को मच्चा और वीर जैमा कहा है। मम्भवत: मंस्कृत गोभिन्न- मडमी। दमकै हारा लोहार अग्निमे तप्त लोह बावर गोत्र शब्दका अपभ्रंश होते होते हिन्दोंमें 'गहलोत' निकालता है। बन गया है। किन्तु मेवाड़में मर्वत्र इस जातिक उत्पत्ति गहरी ( हि स्त्री० ) किसी दूर्मग्की चीजको हिफाजत- मम्बन्धका निम्नलिखित प्रवाद यथार्थ जैसा माना जाता से रखने की मजदूरी। है-मेवाड़ राणाके जब पूर्व पुरुष गुजरातसे ताड़ित हुए, गहजुआ ( हि पु० ) कुछ दर । पुष्पवती नामक किमी राजमहिषोने मलय पर्वतके ब्राह्म- गहनरा (हिं० वि०) १ पागल। ३ णों के निकट जा करके आश्रय लिया और अनतिकाल गवार। पीछे ही एक पुत्ररत्न प्रमव किया और पर्वतको गुहामें गहला ( हि वि० ) १ हठी, जिद्दी । २ अहकारी, जन्म होनेमे उमका नाम गइन्नोत अर्थात् गहरोत्पत्र रख घमण्डी, मानो। ३ पागन्न । अनजान। दिया। उदयपुरके वर्तमान राणा इन्हीं गहलोतो के गह या (हि. वि० ) १ पकड़नेवाला । २ अङ्गीकार वशधर है। करनेवाला, स्वीकार करनेवाला । गहवा ( हि पु० ) संडसी। गहोई-वैश्य जातिभेद। यह देलखण्डके बड़े बड़े गहवारा ( हि पु० ) झला, हिंडोला । नगरी में व्यापारादि करते हैं। पिगडारियांक आक्रमण गहाई (हिं. स्त्री० ) ग्रहण करनेका भाव, पकड़। उत्यक्त हो गहोई युक्तप्रदेशमें भी आ बसे है। वह शब्द गहागडड (हि.वि.) गागम देखो। 'गुह्य"का अपभ्रंश है। इनमे १२ गोत होते हैं। नो.