पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२७०

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गांजा खड़े हो करके थ ड़ा थोड़ा छोड़ते हैं । इमसे वीज नोचे पूलों को नीचे की तरफ रस्मोसे कम करके बांधना पड़ता गिर पड़ी और पत्ते उड़ चलते हैं । वही वीज है। दूसरे दिन धूपमें सुखा करके किसान गांजेके पूले इकट्ठा करके दूसरे माल के लिये रग्व लिया जाता है। हाथसे ऐंठते हैं । इममें कुछ गांजा टट करके गिर फिर एक चटाई डाम्न करके किमान उम पर खड़े खड़े जाता है । उसको चूरा कहते ओर अलग बेचते हैं । जटाओंको वाम पदसे दबाते और दक्षिण पद हारा बीच बीच उगली या थपकमे कन्लीको सब सूवी पत्तियां नीचे ऊपर तक कुचल फिर झाड़ करके अलग रखते झाड़ दी जाती हैं। फिर कन्नीको ढक करके डण्ठल हैं। ऐमा हो कई बार करके घास पर चटाई दबा देते, धूपमें रखते हैं । इसी प्रकार गां ना तयार होता है। दूसरे दिन जा करक चिपटे हुए अंशकी स्वतन्त्र कर लेते गांजा बनानमे धूप बहुत जरूरी है, उमके अभावमें हैं। दो-तीन दिन वैसा ही करने पर गांजा ध पमें डाल आग पर गर्म कर लेनमे भी काम चल मकता है। यह दिया जाता है। फिर वीज और शुषक पत्र मंग्रहोत तरह तरहसे बिगड़ सकता है । असमय पानी बरसने पर होते हैं। इसीका नाम खोचा है। फिर गांजको काल- कोचड़मट्टो लगाने से पेड़ बिगड़ जाता है। फिर बरमा- यां अन्नग रख करक मांडो जाती हैं। इसके पीछे १०१० तम एक कोड़ा निम्लता जो कलोको काटा करता है। कनियां एक वगडलमें बांधते हैं । किमान उन्हें घर ले घुण जैमा कोई दूमरा कीड़ा भो इमको मारता है। ना ध म २१ दिन मखा बांसके माथे पर उठा करके पेड़म काले काले धब्बे पड़ जानसे कोड़ा लगा हुआ रखते हैं। समझा जाता है। गांजेका एक रोग होता है । उसमें गोल गाजा बनानकी भी यही प्रणाली है। उसको डण्ठन और पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। भी काट करके ले आते और बगडल्ल बांध करके धूपमें युक्त प्रदेशमें गांजको कषीको निषिद्ध ममझत; परन्तु जमात हैं । रातको ओम भी खिलायी जाती है। दूमरे दूमरे प्रदेशाम किया करते हैं। हिमालयके पाम गढ़- दिनको जिममें बड़े बड़े फ ल रहते, उनमें किसीको वालमें ख ब चरम होता है। उधर बहुतसे लोग गॉजेके तीन, किसीको चार और किसीको ५ ट कड़े तक करते वीज भून करके खाते हैं। भामाममें भांगका एक पानीय हैं। फिर जिस जिम पोदमें फ ल नहीं पाता, छोड़ दिया बताया जाता, जो गुगटा कहलाता है। पञ्जाबमें गॉजा जाता है । चपटे गांजेकी बनिस्बत इममें और भी बछाई नहीं होता। करना जरूरी है। इसके मनोनीत पुष्प रोट्रमें सुखाते हैं। पहले मब लोग बिना रोकटोक गांजेकी खेती कर तोमरे पहरको एक कतारम २।४ खटे गाड़ तिरछा सकते थे। परन्तु १८७६ ई०को गवर्नमेण्टकी अनुमति बांस बांध उसकी दोनों ओर दो चटाइयां डालते और लेनेका कानून चला। गांजा तैयार होने पर सरकारी उम पर गांजेको २ हिम्मोंमें मिल मिलेबार लमाते हैं। गोदामको भेज दिया जाता है। इसके महसूलसे सर- १०।१२ आदमी खुटोको दोनों ओर खड़े हो गांजेको कारको बड़ा फायदा होता है। समय समय गांजेका परको दाबसे मस्त करके गोल बना लेते हैं । इसीका नाम मूल्य बढ़नेका यही कारण है। 'पहली मलाई' है । छोटे छोटे बण्डल हाथ हीसे मरोड गांजड़ी वायें हाथमें गॉजा ले करके दाहने हायके लिये जाते हैं । इस प्रकार कालयां गोल पड़ जानसे एक अंगूठेसे अच्छी तरह मलते हैं। उससे गांजा लस पकड़ एक करके धूपमें सुग्वाना पड़ती है। कुछ देर बाद लेता है। फिर उसमें तम्बाकू मिला किसी कड़ी चीज उन्हें उठा करके दूमरी मलाई की जाती है। बीच बीच पर रख करके चाकूमे बारीक बारीक काटते हैं। खीर- हाथमे मरोड़ना पड़ता है । मीका नाम 'हथम हा' है। को चिलममें कङ्कर लगा गांजा भर देते और उस पर प्राग दूसरे दिन फिर सुखा करके वैसा ही किया जाता है। चदा करके पी लेते हैं। बातकी बातमें नशा पाता, इसके बाद प्रति सावधान हो कौशलपूर्वक पूले बांध प्रांखका रंग सुर्ख पड़ जाता और मत्था मानो चकराता करके रखते हैं। इसीको 'सरबन्दी' कहा जाता है। है! तुर्कस्तानमें और तरहमे गांजा पीते हैं। वहां इस