पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२७८

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२०६ गांगेयवंश यह भी माना जा सकता है कि दाक्षिणात्यके उत्तर- अन्तर्गत कगटेक जैमा अनुमित होता है। प्राज पश्चिमांशमें ई० ११वो शताब्दी तक गगमहामगडलेश्वर | भी कण्टं क नामक प्राचीन ग्राम में प्राचीन देवालय और विद्यमान थे। उक्त शिनाफलक पदनेसे मालूम पड़ता | खोदित शिलाफलकादि देख पड़ते हैं । दानार्णवके पुत्र कि उन्हो ने शेष दशामें जैन धर्म अवलम्बन किया था। २य कामार्णव “नगरम्” नामक स्थानमें राजत्व करते पृाय शाखा। थे । गोदावरी जिलाके नर्मापुर तालुकमें पुरातन दुर्ग वि- सम्भवतः नरेन्द्रमृगगजके पूर्व ही कामार्ण व प्रभृति शिष्ट ' नगरम्" नामक एक पुराना गांव है। सम्भवतः, पांचों भाई गंगवाडो विषय परित्याग करके कलिग यही पहले कामार्णवको राजधानी था। मुमलमानों के राजामें उपस्थित हुए । चोड़गगके ताम्रशासनमें उपद्र्यसे वह नगर बिलकुल बिगड़ गया है, किलेको लिखा है- छोड़ करके पूर्व गोरवको कोई भी चीज नहीं। कामार्ण वने चारों भाईयों के माथ चालुक्यराज बोध होता है कि कामाण वके ममय कलिइ राजा वालादित्यको पराजय करके कनिङ्गराजा लिया और उत्तरको गञ्जाम् और दक्षिणको कृष्णा नदीके उत्तर 'जबबुरम्' नामक स्थानमें राजधानी स्थापन करके राजत्व तौर पर्यन्त विम्त त था । चोड़गङ्गाके ताम्रशासनमें १म किया। उन्होंने अनुज दानाण वको कगटकवन्धरकन्धर, कामाणवके पुत्रादिका उल्लेख नहीं है। किन्तु उत्कल- गुणाण वको अाम्बवाडि, मारमिहको सोदामगडल और राज रय नरसिंहदेवके बड़े ताम्रफलक पर हादश श्लोकमें वज्रहस्त को कगटकवत नो दी थो। लिखा है कि कामाणवके पुत्र पोत्रों ने बहुदिन राजत्व १म कामार्णव जिम जन्तापुर नगरमें राजत्व करत किया था । वह यदि प्रकृत हो, तो अनुमान किया जा थ, सम्भवत: वह स्थान मन्द्राज प्रेमिडेमोके विशाख मकता है कि १म कामाण वर्क पुत्रपौत्र गोदावरीके पत्तन जिलेमें गजपतिनगरक अन्तर्गत "जयन्ती अग्रहार" उत्तरांश और दानार्णवक पशधर प्रथम गोदावरीके नामक ग्रामके निकट होगा। जन्ताबुर संस्कृत जयन्ती | दक्षिणांशमें राजा थे । १०४० शकाङ्गित चोड़गङ्गाके पुर शब्दका अपभ्श है। पत मान जयन्ती अग्रहारमें ताम्रशासनमें लिपिबद्ध हुआ है- अनेक प्राचीन शिलालिपियां दृष्ट होतो हैं । वर्तमान " राजराजः प्रथम' जयत्रियः पति भ : द्रमिन्नास्वोत्सवे । विशाखपत्तनके नाना म्थानों में गर्गियराजाओं की कोर्तियां विराजमानामय गानमन्टगमददगीभमा भुणाम जाम् । विद्यमान हैं। स्थका वेंगो माद परिणामोदयश मिवान्याम चौडण्याज मात विजयादित्यमन्धी मिमंचम् । वर्तमान गञ्जाम जिन्नाक अन्तर्गत श्रीमुखलिङ्गम्, पापनामा परमशरण राजराजो विनि योकूमम् प्रभृति नानास्थानोंमे इस वंशीय नृपतियोंको लोभान' सचिरमकरो पश्चिमाया दिशायाम् ॥" बहुतर शिलालिपियां निकली हैं। सिवा इसके विशाख (१०४० अशान्वित समासन ८४८९ ) पत्तनमे आविष्क त चोड़गङ्ग के तीन ताम्रशासन, (चोड़गङ्गके पिता) उन राजराजने प्रथम द्रमिल कटक जिलाके अन्तर्गत कन्द पटनासे पाविष्कत रय यहमें जयश्रीरूप कामिनीको लाभ किया था। फिर नृसिंहदेवकै ३ ताम्रशामन और पुगेमे आविष्कत ४थ (राजेन्द्र ) चोड़राजकी कन्या राजसुन्दरीका पाणिग्रहण नृसिंहदे के भी ३ ताम्रशामन मिले हैं। फिर सममा किया। हठात् भाग्यविप्लव उपस्थित होने पर हितोय मयिक मुमलमान इतिहासमे इम गङ्गराजवशका जो सुरपुगे जैमी वङ्गी छोड़ करके चोड़राजरूप विपुल समुद्र परिचय चला है, उमोर्क साहाय्य॑से पूर्व शाखाका मंक्षिणा में निमग्नप्राय विजयादित्य को शरणागतवत्सल राज' इतिहास लिखा गया है। राजने पश्चिम दिकमें लक्ष्मीयक्त किया था। __ पहले हो लिखा जा चुका है, कि १म कामार्णवने उक्त प्रमाण द्वारा समझ पड़ता कि पहले राजराज दानार्णवको “कण्टकबन्धुरकन्धर" नामक स्थान प्रदान सुरपुरी जेमे वेङ्गी नगरम' राजत्व करने थे। फिर विज- किया। यह स्थान गोदावरी बिलाके तमुक तालकके यादित्यको राजधानी छोड गये।