पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२७९

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गाङ्गेयवंश २७७ राजराजके श्वसुर महाराजाधिराज राजेन्द्र चोल उक्त संवत्सर मानो कोई विशेष अब्दवाचक है और ( अपर नाम कुलोत्तुङ्ग ) प्रदत्त शिलाफम्लक और ताम्रशा उक्त राजाओंका “वृषभलाञ्छन" चिह्नित ताम्रशासन पाठ मनमें लिखा है कि उनमे तदीय पिटव्य (षष्ठ) विजया. करनेसे यह कलिगविजेता १म कामार्णवक वधर दित्यने वङ्गो राज्य पाया था। इन विजयादित्यन ८८५मे जैसे ममझ पड़ते हैं। पहले बतला चुके हैं कि दाना- १००० शक पर्यन्त वङ्गीमें राजत्व किया । * सुतरां र्णवके वशधर कलिङ्ग के दक्षिणांश वेंगी राज्यमें राजत्व मम्भवतः ८८५ शकके पूर्व गङ्गवशीय राजराज और करते थे । अब माल म होता है कि रय कामार्णवके उनके पिटपुरुष वङ्गी राजामे राजा रहे होंगे। गोदा वशर कलिगक उत्तरांशम अधिष्ठित रहै। किन्तु इस- वरी जिलामें हेल्लार तालुककै अन्तर्गत 'वेगी' नामक का कोई भी प्रामाणिक निदर्शन नहीं, वह संवत्सर स्थानमें जो ध्वमावशेष पड़ा है, उममें "सुरपुरी मश" किम ममयसे प्रारम्भ हुआ। कंवल इतना ही अनुमान राजराजको परित्यक्त वगीका कुछ परिचय मिलता है। लगता है कि १म कामार्णव कर्तक वालादित्यक पराजय उमोसे ३ कोम दूर प्राचीन कीर्तिशाली तडिकल पूति बार उन्हो के राज्यारम्भमे "गांर्गय शक" चला होगा।* ग्राममें अति पुरातन खोदित शिलालिपि-शोभित गांगेय चाड़गगक १०४० शकाशित ताम्रशामनमें गग- स्वामो वा “गंगवरस्वामामा मन्दिर । है। वह वशीय राजाओं का शासनकाल मिलाने पर माधारणतः देवालय आज भी गंगवंशीयोंका परिचायक खरुप वर्त ३६० शक अथवा ७२८ ई० निकलता है। उम ममय मान है। १म कामाणवका राज्याभिषेक हुआ और मम्भवतः गांगेय प्राचीन ताम्रगासन और पगतन खोदित शिलाफ 'संवत्मर' चला होगा। एमा होने पर कह मकत कि लक पढ़नेमे ममझ पड़ता, किमी ममय कलिगनगरम १म कामार्णव ७२८से ७६४, देवेन्द्रवर्माकं पिता ७७८, गंगवशो राजाांकी राजधानो रही । गन्नाम प्रदेशम दवेन्द्रवर्मा ७७८, तत् पुत्र सत्यवर्मा ७७८, राजसिंह इन्द्र- वशधरा नदी जहां जा करक ममुद्रमे मिली है, ठोक वर्मा ८१८, इन्द्रवर्मा ८५२से ८७४ ओर दूसरे अनन्त उसी स्थान पर कलिग पत्तन नामक नगर और बर्मा पुत्र देवेन्द्रवर्मा ८८२ ई०को विद्यमान थे । देवे- बन्दर है। प्राचीन कोर्ति और ध्व मावशेष देखनसे वही न्द्रवर्माक बाद मंवत्मराङ्कित दूमर किमो भी गांगयराज- कलिग राजाको राजधानी प्राचीन कलिंगनगर जैमा का ताम्रगामन आज तक आविष्कत नहीं हुआ। किन्तु स्थिरोक्त हुआ है । ताम्रशासनमें क लगनगराधिष्ठित इतना अनुमान किया जाता है कि देवेन्द्रवर्माक वंश- निम्नलिखित कई एक गांगेय राजाओंका नाम और परि धर बहुत दिनों फिर कलिग नगरके सिंहासन पर टिक चय मिला है-- न सके। उत्कलराज २य नरसिंहदेवके बहत्तामफलक ___५१ संवत्मरमें अनन्तवर्माक पुत्र देवेन्द्रवर्मा, ८७ से (१४ श्लोक ) में लिखा है-चोड़गंगके पितामह भिव १४३ संवत्मर तक राजसिंह इन्द्रवर्मा, १८३ मंवत्मरमें राज्य जय करके त्रिकलिंगनाथ हुए। चोड़गगक १०४. गुणार्णवके पुत्र देवेन्द्रवर्मा, २५४ मंवत्मरमें अनन्तवर्माके | शकान्ति ताम्रशासनानुसार ८६१ शक घा १०३८ पुत्र देवेन्द्रवर्मा, ३०४ संवत्सर, राजेन्द्रवर्माके पुत्र अन- ईको वजहम्तन राज्यारोहण किया। सम्भवत: उसी सवर्मा, ३५१ मंवत्मरमें देवेन्द्रवर्मार्क पुत्र सत्यवर्मा । समय अथवा उमसे अनतिकाल पोछे इन्हीनि कलिंग • Hnlozech, Sontin Indian Inscriptions, Vol. L. p 32. *मनमाना कि दाना यावी वगधरीने उस अवसरको पाच + Sewell's Lists of the Antiquarian Ramaina in the Pre महा किया। sidency of Madras, Vol. I. p. 36. पन्द्र वर्मा १८ मवासराहिल तामशासनम लिखा कि मार्ग या कलिग पत्तन पचा० १८.०० चौर देशा०८४५.पू.में पूर्णिमाक चन्द्र यापीपलचमै भ.मिदानापानातिष साहाय्यसै गपना सारा पिकाकोलसेवास उत्तर पस्थित है। चाणक्षकसमार पक बदर | मालुम पड़ता कि८५६०१५ सिपरको मार्गशीर्ष पूर्णिमाकै दिन मेसा सिनया एकपाली कामी । चन्द्रयालगाया। Vol. VI. 70