पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२८०

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२५८ गायवंश मगर अवधि अपने राजामें मिला लिया। राजा पञ्चह-| नाम गजराज लिखा हुआ है। चोड़गगके पूर्व पुरुष स्तके पुत्र राजराज वेंगी छोड़ करके कन्निगनगर गये । और चोड़गग अपने आप शैव थे तो, किन्तु पीछे यह इमी स्थान पर उनके पुत्र अनन्तधर्मा चोडगग ८८८ शक एक परम वैषणव हो गये-उक्त ताम्रफलक पाठमे स्पष्ट कुम्भ राशि, शुक्रपक्ष, रविदार, रेवती नक्षत्र पोर मिथुन प्रमाणित होता है। उत्कलराज २य नरसिंहदेव सुत् लग्नमें राजपद पर अभिषित हुए। ( अमन वर्मा चाडग'गा ताम्रशामनके २७वें श्लोकमें ऐसा लिखा है-यह विशाल सामामम) भूमण्डल जिम का चरण, अन्तरीक्ष नाभि, दशदिक कर्ण, माटना पञ्जी के माहायमे देगोयो और विदेशोयो ने सूर्यचन्द्र नयनयुगन्न, और स्वर्गलोक मस्तक है -- उम उडिया, बगन्ना तथा अङ्ग्रेजी भाषामें उडोमाका जो विलोम्व्यापी परमेश्वर पुरुषोत्तमके वासयोग्य मन्दिर इतिहास छपाया, उसमें लिखा है कि १०५४ शकमें १३ बनानको कौन व्यक्ति ममर्थ होगा। यही विचार करक आश्विनको 'चोडगगने उकल जीता था।' परन्तु वह मानो पूर्वतन नृपतियांने पुरुषोत्तमका मन्दिर निर्माण कर- बात ठीक नहीं। नमें हस्तक्षेप नहीं किया महाराज गगेश्वर (चौड़गग) १०४. शकाङ्गित ताम्रगामनमें लिखित है-चोड़ने पुरुषोत्तमका मन्दिर बना अपना कीर्तिम्तम्भ चिर गाइन पथिमम बड़ी और पूर्व में उडीमा तक जय किया । स्थाया किया है। फिर इन्होंन मन्दराधिपतिको पराजय चोडगंगके १००३ शकको प्रदत्त ताम्रशासनमें वेंगी करके उनका नगर जला डाला। और उत्कलकी कोई बात नहीं। इममे ममझ पडता कि टालिङ्ग, हगटर तथा राजा राजेन्द्रलालक मतमें और १.०३ शक अर्थात् १०८१ ई०के पीछे और १०४० शक उत्कल भाषामें रचित उड़ोमार्क मब इतिहामांको देखत वा १११८ ई०के पहले चोरगंगने उक्त दोनों प्रदेश जय राजा अनङ्गमम देवन हो जगबायका प्रसिद्ध मन्दिर किये होंगे। यही उत्कलके गङ्गवंशीय प्रथम नरपति थे । बनाया। किन्तु अब देखते हैं कि राजा अनङ्गभामसे अंगणी राषामें उड़ीमाका इतिहास लिखनेवाले बहुत पहले उत्कलके प्रथम गांगेयराज चोड़गंगने उरकल- विजयकोर्ति स्थायी करने के लिये मर्वप्रथम जगन्नाथ देव पावलोकनमानुसार महादेवके औरससे अपर का सुप्रसिद्ध मन्दिर निर्माण गया था। पुरो मन्दिरक तत् मंगा (गोदावरी ) कलम चा गाना मारगदेव हि कतक मादलापञ्जी मंरक्षणकी कथा आज.तक प्राप्त किसो बम ग्रहण किया था। ताम्रशासन वा तत्मामायक ग्रन्थम नहा ह । उपयुक्त इनके मतमें गंगवशीय उन्हीं राजाने पुरीके जगवाथ ऐतिहासिकीने मादला पञ्जोका प्रमाण दे करके जो बातें मन्दिरमें मादलापञ्जो लिखने की रीति चलायो। यह | लिखी हैं, गांगयराज हितोय नरसिंह देवके नवाविष्कत देवोके एकमात्र उपासक थे । परन्तु इमके मूलमें कुछ भी २१ तामफलक मंयुक्त ३ प्रस्थ शासनपत्री और अपरा सत्य नहीं। चोड़गंगके तीन और कटक जिन्नामे नवावि पर प्राचीन शासन शिलालिपियों में क्या वंशावली, क्या कत ३ प्रस्थ सुवृहत् तामफलकोंमें चोडगगक पिताका राजाकाल, क्या घटना वैचित्रा किसोके भी साथ कोई ऐक्य नहीं। गांगेय राजाओनि स्व स्व ताम्रशासन* और शिला •चा गगक नाममा मनका निकल बहुत दिन। गये । परन्तु कोई लिपिमें जिम ममय और जिम राजासंक्रान्त कथाको शिरकर भ सका हा हल्कन के ग ग गौम यमगजा। पब कटक लिखा है, सामयिक प्रमामाकी भांति अपगपर प्रमाण fr. २॥ मामि देवक सामफलक कीमतामय मन पाविष्कत To नसे ममझमक कि उक्त अमन्तवर्मा वीरगदेव उल्लास के म अपेक्षा समधिक प्रामाण्य है । किन्तु ऐतिहासिकोंने बांगबराम-कैसे रहे। • एकल सबमें सालिग, हर प्रभातिक निकास सामान्य से गंगवंशीय + यह अमात्मक गारंग माम पटक दापित्यक पुरातत्वविद रावट। राजाकाको विवरण पोर राजत्व काल लिम्बा, परसमस बात जा सिएल समागमाचरितवति राजरानपुसबारगर मेसा पनुमान समझ पड़तास गांगय सदमें जो लिखत, समषिक प्रामारिकमा परत है। किन्तु का अनुमान मी सन्य सामानक । बागमत" इण्टर माहबने कहा है-