पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२८२

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२८. गायवंश अन गभीमर्क शौय, वीर्य और दानादिकी विस्तर प्रशसा मिनहाजने लिखा है कि जाजनगरके सेनापतिका लिपिबद्ध हुई है। नाम 'सावनत्रा' था । यह जाजनगर राजके जामाता २य अनंगभीमके औरस और कस्त रायोको गभसे रहे। * मुसलमान ऐतिहासिक वणित जाजनगर : महाराज नसिंह देवने जन्म ग्रहण किया था। उनका उत्कलका याजपुर है। सावन्त्रा नाम नहीं, उपाधि है। "प्रतापवीरयो" उपाध रहा ।* यह वाल्यकालमे है। संस्कृत भाषाका सामन्त शब्द चलती उडियामें सावत्रा एक योड्डा हो गये थे। गनामक अन्तर्वर्ती श्रीकर्मस्वामी कहलाता है। मिनहाजने मावन्त्राको जाजनगरराजका, मन्दिरके निकट ११७२ शकको उत्को शिलाफलक | जामाता जैमा लिखा है। परन्तु हमारी विवेचनाम पढ़नसे समझ पड़ता कि प्रतापवीरथी नरसिंहदं वका विदेशी लेखकने भ्रमक्रमसे पुत्रको जामाता ममझ करके शविनाशी वाहुयुगल सुदृद रखनको माहनमन नामक एमा लिख दिया होगा. उस समय याजपुर वा समस्त एक व्यक्ति दवोद्द शसे भूमिदान करते थे । माल म होता कलग राजाम महाराज अनगभोम अधिष्ठित थे । है कि उसी समय महावीर नरसिंह देव युवराज पदपर उन्हीं के पुत्र प्रतापवीर १म श्रीनरसिंह देव रहै । २य अभिषिक्त हुए। अपने पिता अनङ्गभीमक मरने पर नर नरसिंह देवके ताम्रशासनमें लिखित है- मिह द वने ३३ वर्ष तक राजत्व किया। प्रमिड मुसलमान तिहानिक मिनहाज उद-दीनका “गदावरन्द यवनोनयनाचनानुपूरण टूर वनिवेशितकानिमयोः । तबकात दू-नामरी' नामक मायिक इतिहास पढ़नसे । सविनम्म क र पानिमसर गा ग'गापि ननममना यम नानाभन ॥" ममझ पड़ता है- राढ़ और वरेन्द्र प्रदेशको यवनियां स्वामिविरहमें ६४१ हिजरी ( १२४३ ई.) को जाजनगर राजने | मदा रोदन करती थी। उनके अश्रुजलसे जो नय जब लक्ष्मणावती राज्यमें दौरात्मा उठाया, (गौड़ाधिप) नाञ्जन धौत हो करक गङ्गामें मिलता, उममे गंगाका भी मलिक तुगरिल तुगान् खान जाजनगरके अभिमुख अपन पानो काला पड़ जाता था। इम भयानक कागड़को देख पर बढ़ाया। इस युद्धयात्रामें ऐतिहामिक मिनहाज करके मानों गंगा तरंगहीन हुई। ( वास्तविक उम उद्दीन उनके सहचर थे। जाजनगरकी मीमा कतामि समय नरसिंहके ही लिये ) गंगा यमुना बन गयौं । ममें युद्ध हुआ। पहले हिन्दुअनि पृष्ठप्रदशन किया था ____उक्त श्लोक हारा स्पष्ट समझ पड़ता है कि प्रताप- पीछको इक्षुक जगलमे ५० अश्वारोही और २०० पदातिं वीर श्रोनरसिंह देवन ही पिता राजत्वकाल लक्ष्मणा- पा करक अकस्मात मुमन्नमान मैन्य पर टट पड़े। इसमें वती आक्रमण करके सैकड़ो म सलमान सिपाहियों को विस्तर मुमलमान योडा मर । गौड़ाधिप प्राण बचा करके | मार मारा और वही राढ़ तथा वरेन्द्रको यवनियोंको स्वामि- लक्ष्मणावती नगर भाग गये। उन्होंने दिल्ली के बादशा- विरहके त थे। पून प्रतापवीरसे और भी कई वार हमे माहाय्य मांगा था। सुलतान अन्ला-उद-दीन् महः | म मलमान लड़े, किन्तु उनके प्रवल प्रतापसे उड़ीसा मूद शाहर्न अयोध्याकै सुवेदार तैमूर खां किगनको जीत न सके । एकावलोरचयिता कविवर महिम भट्ट समैन्य जाजनगरकं विपक्ष लक्ष्मगावती भेजा। जाज- उन नृसिंहदेवके सभापण्डित थे। नगरको फोजने पहले फरवर-उल-मुलकको हराया और २य नरसिंहदेवके १२१७ शकान्वित दो बृहत् ताम्र- लखनऊ प्रदेश दबाया था, फिर वह लक्ष्मणावती नगरके शासन पदनसे मालूम पड़ता है कि ११६६ शक वा १२७४ प्राकारके पाश्व में उपस्थित हो घोर युद्ध करते रही। ई०को उत्कल राजामें एक नतन संवत् चला। सम्भ- अन्तको अयोध्या-सन्यके आगमनका संवाद पा करके • Rarerty's Tablkat-i-Nasiri,765. यह लौट पड़ी। कोई कोई इस कामगा की विपुगका जेसा अनुमान करते हैं, कोलगपतनसे प्राय: कम दूर पवस्थित बोकूम स्वामी मन्दिर पास किन्तु वा ठोकामही पता S. H. Blochmanu's Contribution to ११वीर ११.१कान्वित खोदित शिला फरकम प्रतापयोर श्री उपाधियुक the Geography and History of Bengal tin Journal of the मासिका नाम डर होता। + Rarerty's Tabakat-i-Nasiri, p. 738-39. Asiatic Society of Bengal, Vol. XLII.pt.ip.237.) -